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By: divyahimachal
कांग्रेस ने चुनाव की गारंटी में अपना मस्तिष्क भांज लिया है और इस तरह जो खाका बना, वहां कर्मचारी, महिलाएं, युवा, किसान व बागबान अपने लिए कुछ न कुछ चुन सकते हैं। यानी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम की गारंटी दे कर कांग्रेस, राज्य के एक बड़े वर्ग की हितैषी होने के सबसे ऊंचे फलक पर पहुंचना चाहती है। यह वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी दुखती रग है, क्योंकि राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में भाजपा की केंद्र सरकार ओपीएस मसले पर कोई स्पष्ट निर्देश राज्य सरकारों को नहीं दे पा रही है। कांगे्रस की गारंटियों में महिलाओं को हर महीने पंद्रह सौ रुपए का भुगतान या 300 यूनिट फ्री बिजली आपूर्ति का वादा चुनावी माहौल की भले ही पेशकश कर दे, लेकिन ऐसे मोहजाल का शायद ही कोई अंत हो।
इस फेहरिस्त में आम आदमी पार्टी का तजुर्बा, राजनीति के अर्थ बदल चुका है और जब यही पार्टी इस तरह की घोषणाओं पर आगे भी उतरेगी तो मुफ्त सेवाओं पर एक अलग तरह का रंग चढ़ेगा। हिमाचल के लिए गारंटी देते हुए कांग्रेस छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आगे करके, अपने राज्य का मॉडल पेश करना चाहती है। कुछ इसी तरह 'आप' भी दिल्ली मॉडल के कालीन पर चलते हुए हिमाचल में फेरी लगा रही है। कांग्रेस ने ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के हिसाब से किसान से हर दिन 10 लीटर दूध तथा गोबर दो रुपए प्रति किलो की दर से खरीदने का वादा किया है। फलों की कीमत तय करने के लिए बागबान को दिए अधिकार से कांग्रेस अगर इस दिशा में नीतिगत फैसले ले पाती है, तो इस गारंटी का महत्त्व बढ़ जाता है। प्रदेश को स्टार्ट अप की ओर ले जाते हुए 620 करोड़ के फंड और पांच लाख युवाओं को रोजगार की गारंटी देते हुए कांग्रेस, एक नया चित्र बनाना चाहती है, लेकिन इसकी पृष्ठभूमि में शिक्षा का वर्तमान दौर निराश करता है। हिमाचल में युवाओं को जिस तरह सरकारी नौकरी के भ्रमजाल में वर्तमान राजनीति उलझाती रही है, उसके चलते स्वरोजगार के मायने ही कसूरवार समझे जाते हैं।
देखना होगा कि जब कांग्रेस अपना घोषणा पत्र तैयार करती है, तो रोजगार की गारंटी को मुकम्मल करने के लिए शिक्षा के ढर्रे में क्या बदलाव करना चाहेगी। वैसे हर विधानसभा क्षेत्र में चार इंग्लिश मीडियम स्कूल खोलकर कांग्रेस जादूगर बनना चाहती है, लेकिन यह भी एक सत्य है कि हिमाचल में इस दौरान कई निजी विश्वविद्यालय, इंजीनियरिंग कालेज व स्कूल उजडऩे के कगार पर पहुंच चुके हैं। गारंटी मोबाइल क्लीनिक से मुफ्त इलाज तक मिल रही है, लेकिन चिकित्सा क्षेत्र में गुणवत्ता के अभाव से मेडिकल कालेज जैसे संस्थान भी खिलौने साबित हो रहे हैं। बेशक अपनी गारंटियों के मार्फत कांग्रेस ने अपने इरादे चिन्हित करने के साथ-साथ भाजपा सरकार से मिशन रिपीट की सुर्खियां चुराने की कोशिश की है, लेकिन प्रदेश के लिए वास्तविक गारंटी यहां के आर्थिक संसाधनों को लेकर मिलनी चाहिए, जो लगातार हमें कर्ज के बोझ तले ले जा रहे हैं।
इसी तरह बढ़ता सरकारी व्यय, फिजूलखर्ची व वित्तीय जवाबदेही का अभाव कब तक मुफ्त की रेबडिय़ां चबाता रहेगा। कांगे्रस की गारंटियां इस फिराक में भी हैं कि जनता से संवाद सरल व सहज हो जाए तथा उसकी उपेक्षाओं की सुर्खियां कब्जे में आ जाएं, लेकिन यह गारंटी कौन देगा कि आइंदा कोई सरकारी उपक्रम घाटे में नहीं जाएगा, अनावश्यक कार्यालय नहीं खुलेंगे, स्कूल-कालेज, विश्वविद्यालय व चिकित्सालय नहीं खुलेंगे। आवासीय बस्तियों के लिए खेत नहीं बिकेंगे, बंदर पुन: जंगल और आवारा पशु लौट जाएंगे, सरकारी कार्यसंस्कृति सुधर जाएगी और सडक़ों पर वाहनों की पार्र्किंग नहीं होगी। कांग्रेस अगर यह गारंटी दे कि उसके आते ही यह सुनिश्चित होगा कि सरकारी अध्यापकों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे और तमाम राजनेताओं की बीमारी का उपचार सरकारी अस्पतालों में होगा, तो कम से कम शिक्षा व चिकित्सा क्षेत्र तो सुधर जाएंगे। पार्टी जनता से पूछ कर हिसाब लगाए कि हिमाचल में सुशासन की गारंटी के लिए क्या-क्या चाहिए।
Rani Sahu
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