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दुनिया भर के देश और सरकारें इस समय ऐसे ड्रोन्स की खोज में लगे हैं, जो खुद से दुश्मन की पहचान कर उन्हें मार दें. यानी ऐसे किलर कॉम्बैट ड्रोन (Killer Combat Drones), जो एआई से लैस हों. वो दुश्मन को पहचानते हों. लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि अगर ऐसे ड्रोन्स उड़े तो वह कैसे तय करेंगे कि किसे जिंदा रहना है, किसे नहीं?
डेलीस्टार वेबसाइट ने अलजजीरा के हवाले से लिखा है कि चीन मिडिल ईस्ट के देशों को इस तरह के AI संचालित किलर कॉम्बैट ड्रोन्स दे रहा है. जो ये तय करेंगी कि कौन जिएगा और कौन नहीं. माना जा रहा है कि चीन ने सऊदी अरब, म्यांमार, ईराक और इथियोपिया को ऐसे ड्रोन्स दिए हैं. मिडिल ईस्ट के देशों को चिंता ये है कि अगर ये ड्रोन्स अपने लोगों को पहचानने में गलती कर गए तो जंग के मैदान में सबको मार डालेंगे.
सऊदी के नेतृत्व वाले एक समूह ने चीन में बने एयरक्राफ्ट को यमन भेजा. ताकि वहां पर हवाई हमला हो सके. इस एयरक्राफ्ट ने पिछले 8 साल में 8000 यमनी नागरिकों को मार डाला. न कि सैनिकों को.
ईराक में चीन के ड्रोन्स ने 2018 के मध्य से इस साल जनवरी तक इस्लामिक स्टेट के आतंकियों पर 260 हवाई हमले किए. जिसमें उन्हें 100 फीसदी सफलता मिली. ऑस्ट्रेलिया स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ एनएसडब्ल्यू के प्रोफेसर टोबी वॉल्श कहते हैं कि ये बेहद चिंता का विषय है. ऐसे ड्रोन जंग के मैदान में मौजूद किसी भी इंसान को खत्म कर देंगे. अमेरिका के पूर्व रक्षा सचिव मार्क एस्पर कहते हैं कि चीन ऐसे ड्रोन्स बेंच रहा है, जो यह तय कर सकते हैं कि कौन जिएगा और कौन मारा जाएगा.
चीन लगातार अपने सबसे एडवांस और महत्वपूर्ण मिलिट्री ड्रोन्स को मिडिल ईस्ट के देशों को बेंच रहा है. ये पूरी तरह से ऑटोनॉमस हैं. ऑस्ट्रेलिया के रक्षा विशेषज्ञ डॉ. मैल्कम डेविस भी ये मानते हैं.
डॉ. डेविस कहते हैं कि इसमें हैरान होने वाली कोई बात नहीं है. चीन और रूस अपने किलर रोबोट्स से दुनिया में कहीं भी तबाही मचा सकते हैं. वहीं, अमेरिका के डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्टस एजेंसी (DARPA) का कहना है कि वो भी जंग के मैदान में AI को लाना चाहता है
डार्पा अभी एक प्रोजेक्ट चला रहा है, जिसका नाम है- स्ट्रेटेजिक केओस इंजन फॉर प्लानिंग, टैक्टिक्स, एक्सपेरिमेंटेशन और रेजिलिएंसी (SCEPTER). इस प्रोजेक्ट के तहत वह ऐसी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी बना रहा है, जिससे जंग खत्म हो जाए. जटिल से जटिल जंग को आसानी से खत्म किया जा सके.
AI संचालित हथियार बनाना मुश्किल नहीं है. दिक्कत ये है कि जंग के मैदान में अगर थोड़ी भी गड़बड़ हुई तो AI संचालित हथियार बेहद घातक साबित हो सकते हैं. वो अपनी ही सेना पर हमला कर सकते हैं. ऐसे हथियारों को अपनी लिमिट और प्रेडिक्शन पहचानना होगा. सेप्टर जैसे प्रोजेक्ट से जंग के मैदान के नए खिलौने तैयार होंगे.
AI से चलने वाले हथियारों को नियंत्रित करने वाले इस प्रोजेक्ट को लेकर दुनियाभर में चर्चा है. इसके तहत अमेरिका की तीन कंपनियों को फंड मिल रहा है. लेकिन इस प्रोजेक्ट से जुड़े लोगों का कहना है कि वो चीन की तरह घातक हथियार नहीं बना रहे. हम लीथल ऑटोनॉमस वेपंस (LAWs) बना रहे हैं, लेकिन वो चीन की तरह नहीं हैं.
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Harrison
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