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अमरुल्ला सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का 'वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति' किया घोषित, तालिबान पर कही ये बड़ी बात
Renuka Sahu
18 Aug 2021 4:15 AM GMT
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फाइल फोटो
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए हैं और राष्ट्रपति भवन समेत पूरे देश पर तालिबान को कब्जा हो गया.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) देश छोड़कर भाग गए हैं और राष्ट्रपति भवन समेत पूरे देश पर तालिबान (Taliban) को कब्जा हो गया. हालांकि तालिबान ने अभी तक अपना प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किया है, जो अफगानिस्तान की सत्ता को संभाले. इस बीच अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने खुद को 'वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति' घोषित कर दिया है.
Amrullah Saleh ने जारी किया ऑडियो बयान
एक ऑडियो बयान जारी कर अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने कहा, 'अफगानिस्तान के संविधान के अनुसार, यदि राष्ट्रपति अनुपस्थित रहता है, भाग जाता है, इस्तीफा दे देता है या अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो जाता है तो प्रथम उपराष्ट्रपति स्वतः ही वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है. चूंकि अशरफ गनी (Ashraf Ghani) देश से भाग गए थे, उन्होंने प्रभावी ढंग से अपनी जिम्मेदारियों को छोड़ दिया और राष्ट्रपति का पद खाली है, इसलिए मैं वर्तमान में अफगानिस्तान का देखभाल करने वाला वैध राष्ट्रपति हूं, क्योंकि मैं देश के अंदर हूं. मैं अफगानिस्तान के सभी नेताओं तक पहुंच रहा हूं.'
अभी खत्म नहीं हुआ युद्ध: अमरुल्ला सालेह
अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) ने आगे कहा, 'मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस स्थिति के लिए कई कारक हैं, लेकिन मैं उस अपमान का हिस्सा बनने के लिए तैयार नहीं हूं, जिसे विदेशी सेनाओं ने झेला था. मैं अपने देश के लिए और उसके लिए खड़ा हूं और युद्ध खत्म नहीं हुआ है.'
तालिबान के निशाने पर रहे हैं सालेह
खुद को तालिबान का वैध कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले अमरुल्ला सालेह (Amrullah Saleh) अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति थे. उन्होंने फरवरी 2020 में उपराष्ट्रपति पद संभाला था. इससे पहले वे 2018 और 2019 में अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों के मंत्री और 2004 से 2010 तक राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (NDS) के प्रमुख के रूप अफगानिस्तान को अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
साल 1990 में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती होने से बचने के लिए सालेह विपक्षी मुजाहिदीन बलों में शामिल हो गए. उन्होंने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सैन्य प्रशिक्षण लिया और मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के तहत लड़ाई लड़ी. 1990 के दशक के आखिर में वे उत्तरी गठबंधन के सदस्य बने और तालिबान के विस्तार के खिलाफ भी जंग लड़ी. पिछले साल टाइम मैगजीन में लिखे लेख में उन्होंने कहा था कि 1996 में जो हुआ, उसके बाद तालिबान को लेकर मेरा नजरिया हमेशा के लिए बदल गया. उन्होंने बताया था कि कट्टरपंथियों ने उन्हें पकड़ने के लिए उनकी बहन को प्रताड़ित किया था.
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