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अमेरिका | मेक न्यू फ्रेंड्स बट किप द ओल्ड ये लाइन 1990 के दशक में कही गई थी। लेकिन आज भी ये बात प्रासंगिक हैं। न केवल निजी रिश्तें में अपितु जियो पॉलिटिक्स में भी इसके अहम मायने हैं। पाकिस्तान की कैबिनेट ने वाशिंगटन के साथ प्रमुख सुरक्षा समझौते सीआईएस-एमओए को मंजूरी दी है। इससे पहले अमेरिका ने साल 2018 में भारत के साथ ही इसी तरह की डील की थी। इस डील के बाद पाकिस्तान के लिए अमेरिका से घातक हथियार पाने का रास्ता साफ हो गया है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या अमेरिका इस्लामाबाद को हथियार बेचने की योजना बना रहा है। अगर इस खबर में थोड़ी सी भी सच्चाई है तो भारत को लेकर इसके क्या मायने हैं? जो बाइडेन पाकिस्तान के प्रति अमेरिका के जुनून को क्यों नहीं बदल सकते?
पाकिस्तान कैबिनेट ने अमेरिका के साथ एक नए सुरक्षा समझौते पर दस्तखत करने को मंजूरी दी है। यह कदम पाकिस्तान के लिए अमेरिका से सैन्य उपकरण पाने के रास्ते खोल सकता है। समझौते पर दस्तखत करने को लेकर किसी भी पक्ष की ओर से कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान और अमेरिका रक्षा क्षेत्र में संबंधों को और बढ़ावा देने
अमेरिका इस तरह का 15 सालों वाला समझौता किसी देश के साथ नहीं करता है। यह समझौता सहयोगियों के लिए आरक्षित है। अगर पाकिस्तान ये डील साइन कर लेता है तो अमेरिका से हथियार खरीदना आसान हो जाएगा। ऐसे में ये सवाल उठ रहे हैं कि अमेरिका क्या पाकिस्तान को हथियार बेचने की योजना बना रहा है। अगर हां, तो ये खतरनाक हो सकता है। पिछले साल पेंटागन ने 450 मिलियन डॉलर के पाकिस्तान के लिए एफ 16 पैकेज को मंजूरी दी थी। लेकिन अमेरिका का ये कदम भारत को उस वक्त रास नहीं आया था। इन दिनों भारत के साथ अपनी नजदीकियां बढ़ाने में लगा अमेरिका क्या इस डील के तहत क्या इसे बिगाड़ना चाहेगा। इसकी संभावना बहुत कम है। लेकिन जिस तरह से गुपचुप तरीके से इस इस डील पर काम हो रहा है वो
अमेरिका और पाकिस्तान का हथियारों को लेकर लंबा इतिहास रहा है। 2006 में दोनों देशों ने 3.5 बिलियन डॉलर की रक्षा डील साइन की थी। पाकिस्तान उस साल अमेरिका का सबसे बड़ा खरीदार देश था। एफ 16 फाइटर जेट से होवित्जर तक। लेकिन पिछले साल एक नए विक्रेता की इस हथियारों के बाजार में एंट्री हुई। वो कोई और नहीं पाकिस्तान का पुराना दोस्त चीन है। 2017 से 2021 तक चीन ने 72 प्रतिशत पाकिस्तान की मांग को पूरा किया। बस एक ही चीज थी कि उत्पाद निम्न मानक के रहे। पाकिस्तान की आर्मी ने चीनी हार्डवेयर को लेकर शिकायतें भी की थी। आज भी एफ 16 पाकिस्तानी वायु सेना के फ्रंट लाइन जेट हैं। इसके रख रखवा और आधुनिकिरण के लिए पाकिस्तान को अमेरिका के सहयोग की आवश्यकता है।
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