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क्या है एडीएचडी, जानिए इसके लक्षण, जांच और उपचार

Bharti sahu
22 Jan 2021 11:28 AM GMT
क्या है एडीएचडी, जानिए इसके लक्षण, जांच और उपचार
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हमेशा सक्रिय रहने में कोई बुराई नहीं है बल्कि इससे जीवन में कामयाबी ही मिलती है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हमेशा सक्रिय रहने में कोई बुराई नहीं है बल्कि इससे जीवन में कामयाबी ही मिलती है। समस्या तब होती है, जब अति सक्रियता की वजह से किसी व्यक्ति की दिनचर्या और सेहत के साथ उसके निजी, सामाजिक और प्रोफेशनल संबंध भी प्रभावित होने लगें। अगर किसी व्यक्ति के व्यवहार में चिड़चिड़ापन हो और अति सक्रिय होने के बावजूद वह कोई भी कार्य सही ढंग से पूरा न कर पाए तो यह एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपर ऐक्टिविटी डिसॉर्डर नामक मनोवैज्ञानिक समस्या का लक्षण हो सकता है। एडीएचडी को उसके लक्षणों की प्रमुखता के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जाता है-इन अटेंशन टाइप और हाइपरऐक्टिविटी। पहली स्थिति में व्यक्ति को किसी एक काम में अपना ध्यान टिकाने में बहुत परेशानी होती है। इससे उसका व्यवहार बेहद चिड़चिड़ा हो जाता है। दूसरी स्थिति में व्यक्ति अनावश्यक रूप से सक्रिय हो जाता है, पर यह सक्रियता ज्यादातर नकारात्मक होती है।

क्या है वजह
वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं और अभी तक इसके स्पष्ट कारणों की पहचान नहीं हो पाई है। फिर भी आनुवंशिकता से इसका गहरा संबंध है। अगर मात-पिता या ब्लड रिलेशन से जुड़े करीबी संबंधियों को एडीएचडी हो तो ऐसे परिवार में जन्म लेने वाले शिशु को भी जन्मजात रूप से यह समस्या हो सकती है। रिसर्च में यह भी पाया गया है कि जन्मजात रूप से मस्तिष्क की संरचना में अंतर की कारण भी यह समस्या होती है। न्यूरोट्रांसमीटर्स के अंसतुलन के कारण भी ऐसा हो सकता है और सिर में अंदरूनी चोट लगने के कारण भी।

जांच एवं उपचार
मरीज के व्यवहार और उसके परिवार वालों द्वारा बताए गए लक्षणों के आधार पर ही एक्सपर्ट द्वारा उसकी (बच्चों और बड़े दोनों) की स्थिति का आकलन किया जाता है। उसी के आधार पर उपचार के तरीके का चुनाव किया जाता है। हालांकि इसका कोई स्थायी। उपचार नहीं है, लेकिन बिहेवियर थेरेपी द्वारा इसके लक्षणों को मैनेज किया जा सकता है। दवा का इस्तेमाल अंतिम विकप्प के रूप में किया जाता है। मरीज को व्यवहार संबंधी प्रशिक्षण दिया जाता है, जो उसके लिए फायदेमंद साबित होता है। फिर भी पीड़ित के परिजनों को सचेत रहना चाहिए। एडीएचडी से ग्रस्त लोगों की क्षमता को अधिकतम बनाने के लिए उन्हें सहयोग और प्रशिक्षण देने की जरूरत होती है क्योंकि इसे पूरी तरह दूर नहीं किया जा सकता, लेकिन इसके लक्षणों को मैनेज करते हुए व्यक्ति के लिए सामान्य जीवन व्यतीत करना संभव है।


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