विज्ञान

अगले 50-100 सालों में दुनिया के 65 प्रतिशत कीड़े विलुप्त हो जाएंगे

Subhi
15 Nov 2022 3:09 AM GMT
अगले 50-100 सालों में दुनिया के 65 प्रतिशत कीड़े विलुप्त हो जाएंगे
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जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण हो रहे नुकसान का अधिकांश आंकलन इंसानों और उनसे संबंधित प्रक्रियाओं पर किया जाता है. इसके अलावा पशु-पक्षियों और पेड़ पौधों पर भी होने वाले प्रभावों पर भी शोध हुए हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन और कीट पतंगों (Insects) के बीच के संबंधों पर बहुत कम ही अध्ययन हुए हैं. इस विषय पर हुए नए अध्ययन ने दर्शाया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से पृथ्वी की अधिकांश कीट पतंगों की आबादी विलुप्त (Extinct) होने वाली है. इस अध्ययन में यह भी बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से जानवरों और अन्य जीवों में विलुप्त होने का जोखिम पूर्व अनुमानों की तुलना में ज्यादा हो गया है.

65 प्रतिशत से ज्यादा

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि अगली एक सदी तक हमारे ग्रह की 65 प्रतिशत कीट पतंगों की जनसंख्या विलृप्त हो जाएगी. इस अध्ययन के नतीजे नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुए हैं. इसमें बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऊष्मीय दबाव के जानवरों की जनसंख्या को अस्थिर कर सकती है और इससे विलुप्त जोखिम को बढ़ावा दे सकता है. इतना ही नहीं इस तरह के प्रभाव पहले के पूर्वानुमानों की तुलना में और ज्यादा तीव्र हो सकते हैं.

तापमान की विविधता का असर

शोधकर्ताओं ने बताया कि उन्हें एक प्रतिमान उपकरण की जरूरत थी जिससे वे समझ सकें कि कीड़ों की जनसंख्या कैसे तापमान की विविधता से प्रभावित होते हैं. उन्होंने इसी को अपने अध्ययन का लक्ष्य बनाया. इसके जरिए वे इस प्रक्रिया को समझने का प्रयास कर रहे थे. उन्होंने उन्नत प्रतिमानों के जरिए यह जानने का प्रयास किया कि अगली सदी तक कैसे ठंडे खून के कीड़ों की जनसंख्या तापमान बदलावों के प्रति प्रतिक्रिया करेगी.

25 प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा

शोधकर्ताओं ने पाया कि उनके द्वारा अध्ययन की गई 38 में से 25 कीड़ों की प्रजातियों में विलुप्त होने का जोखिम बढ़ सकता है. इसकी सबसे बड़ा कारण उनके स्थानीय वातावरण के तापमान में नाटकीय और असमान्य या अप्रत्याशित बदलाव होंगे. वैज्ञानिकों ने लंबे समय से अनुमान लगाया हुआ है कि जलवायु परिवर्तन जैवविविधता पर नकारात्मक असर डालेगी.

बदलाव और इंसानों की जरूरत

जलवायु परिवर्तन के असर के रूप में शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र, जीन्स और प्रजातियों में बहुत ज्यादा बदलाव देखने को मिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि विविधता को बनाए रखना पूरी दुनिया में इंसानों की सेहत, खाद्य सुरक्षा, स्वच्छ हवा और पानी, कृषि आदि के लिए बहुत जरूरी है.

अगले 50 से 100 सालों में

संरक्षण के लिए किए जा रहे प्रयास जैविविधता की हानि को कम करने के लिए उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन इन कोशिशों की सफलता पारिस्थितिकी तंत्रों परर्यावरणीय बदलाव की प्रतिक्रियाओं के अनुमान लगाने की हमारी क्षमता पर निर्भर करेगी. अपने विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने दर्शाया कि तापमान में चरम बदलाव के कारण अगले 50 से 100 सालों में अध्ययन की गई 38 प्रजातियां का 65 प्रतिशत हिस्सा विलुप्त होने के जोकिम का सामना कर सकता है.

कीड़ों की भूमिका

तापमान में बदलाव विशेष तौर पर ठंडे खून वाले कीड़ों के लिए खतरा बनता जा रहा है क्योंकि इन जीवों में ऐसी किसी भी तरह की कोई प्रणाली नहीं है जिससे वे ज्यादा तापमान बदलावों की स्थितियों में अपने शरीर का तापमान नियंत्रित कर सकें. वैसे तो हर जीव की तरह कीड़ों की भी पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र में अपनी एक भूमिका है, लेकिन कीड़े, फल, सब्जियां, फूल, आदि के उत्पादन में एक बहुत ही अहम भूमिका निभाते हैं क्योंकि वे परागण के रूप में योगदान देते हैं और साथ जैविक पदर्थ के विखंडन की प्रक्रिया में भी भूमिका निभाते हैं.

कीड़े हानिकारक कीटों को नियंत्रित करने में मददगार होते हैं. इसके अलावा वे एक स्वच्छता विशेषज्ञ के रूप में भी कार्य करते हैं. वे इंसानों के लिए तमाम तरह के कचरे की श्रेणी में आने वाले पदार्थों का विखंडन कर दूसरे उपयोगी या गैर हानिकारक पदार्थों में बदलने का काम करते हैं. कीड़ों को गंवाना पृथ्वी के संतुलन को बहुत ही ज्यादा प्रभावित करेगा. लेकिन उससे कहीं ज्यादा नुकसानदायी इंसानों के लिए होगा.


क्रेडिट ; न्यूज़ 18

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