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धर्म-अध्यात्म
संकष्टी चतुर्थी पर करें विघ्नहर्ता की आराधना, धन की कमी होगी दूर
Teja
18 May 2022 10:41 AM GMT
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संकष्टी चतुर्थी का पावन पर्व कल यानी 19 मई (गुरुवार) को है। मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश की पूजा- अर्चना करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | संकष्टी चतुर्थी का पावन पर्व कल यानी 19 मई (गुरुवार) को है। मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश की पूजा- अर्चना करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख- शांति का वास होता है। मान्यता के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से भगवान गणेश प्रसन्न होते हैं।
जिन लोगों के घर में मांगलिक कार्य नहीं होते हैं या जिनकी संतान का विवाह नहीं हो पा रहा है। उन्हें संकष्टी चतुर्थी का व्रत कर भगवान गणेश को प्रसन्न करना चाहिए। भगवान गणेश को शुभता का कारक माना जाता है। इसलिए कहते हैं कि उनका व्रत करने से घर-परिवार में शुभता का वास होता है। साथ ही जिन लोगों का व्यापार ठीक से नहीं चल रहा हो, वो लोग भी इस दिन व्रत रखकर गणेश जी को 4 बेसन के लड्डुओं का भोग लगाएं। ऐसा करने से व्यापार में तरक्की होने लगेगी।
संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें. साफ कपड़े पहनें। भगवान गणेश का ध्यान करें। पूजा घर साफ करें, गंगाजल छिड़कें। चौकी पर पीले रंग का साफ कपड़ा बिछाएं। इस पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं। भगवान को जल और फूल अर्पित करें। रोली, अक्षत और चांदी की वर्क लगाएं। लाल रंग के फूल, जनेऊ, दूब, पान में सुपारी, लौंग और इलायची अर्पित करें। नारियल और मोदक का भोग लगाएं। भगवान गणेश की आरती करें। शाम के समय चांद के निकलने से पहले संकष्टी व्रत कथा का पाठ कर गणपति की पूजा करें। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद बाटें। रात को चांद देखने के बाद व्रत खोला जाता है और इस प्रकार संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूर्ण होता है।
संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 18 मई दिन बुधवार की रात 11 बजकर 36 मिनट से शुरु हो रही है। वहीं इस तिथि का समापन अगले दिन 19 मई गुरुवार को रात 08 बजकर 23 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत एवं पूजा 19 मई को की जाएगी। एकदंत संकष्टी चतुर्थी वाले दिन सुबह से साध्य योग है, जो दोपहर 02 बजकर 58 मिनट तक रहेगा। इसके बाद शुभ योग शुरु हो जाएगा। पंचांग के अनुसार, ये दोनों ही योग पूजा पाठ के लिए शुभ फलदायाी हैं। ऐसे में आप आप प्रात:काल से पूजा पाठ कर सकते हैं।
हर महीने पड़ती है दो चतुर्थी
आपको बता दें कि हर महीने दो चतुर्थी पड़ती है। एक पूर्णिमा के बाद, दूसरी अमावस्या के बाद। दोनों चतुर्थी को अलग-अलग नाम से जाना जाता है। पूर्णिमा के बाद यानी कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। जबकि अमावस्या के बाद यानी शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है। धर्मशास्त्र में पूर्णिमा के बाद पड़ने वाली चतुर्थी का खास महत्व है। इस दिन समस्त दुखों का निवारण करने वाले संकटमोचन विघ्नहर्ता भगवान गणेश की खास पूजा-अर्चना की जाती है।
Teja
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