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धर्म-अध्यात्म
कब है मकर संक्रांति ? जानें इस त्योहार से जुड़ी धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
Rani Sahu
11 Jan 2023 6:09 PM GMT
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हिंदू धर्म में मकर संक्रांति के त्योहार का विशेष महत्व होता है। मकर सक्रांति का त्योहार धार्मिक,ज्योतिषीय और सांस्कृतिक नजरिए से यह पर्व खास होता है।
हिंदू धर्म में जहां पर सभी त्योहारों की गणना चंद्रमा की गणना पर तिथियों के अनुसार मनाया जाता है, वहीं मकर संक्रांति का त्योहार सूर्य पर आधारित पंचांग की गणना के आधार पर मनाया जाता है। सौर कैरेंडर के अनुसार हर वर्ष मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी को मनाई जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, सूर्य 14 जनवरी 2023 की रात 8 बजकर 21 मिनट पर मकर राशि में गोचर करेंगे। उदया तिथि 15 जनवरी को प्राप्त हो रही है। ऐसे में मकर संक्रांति नए साल में 15 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। ज्योतिष शास्त्र की मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि की यात्रा को विराम देते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं। इस कारण से मकर संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति पर सूर्य उत्तरायण होते हैं। मकर संक्रांति से मौसम में बदलाव शुरू होने लगते हैं। शरद ऋतु जाने लगती है और बसंत ऋतु का आगमन शुरू हो जाता है। मकर संक्रांति के बाद से दिन लंबे होने लगते हैं और रात छोटी होने लगती है। इन सबके अलावा मकर संक्रांति के त्योहार का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं देशभर में मकर संक्रांति को लेकल क्या है परंपरा और मान्यताएं।
मकर संक्रांति से जुड़ी प्रमुख धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताएं
मकर संक्रांति पर सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर चलते हैं। सूर्य के उत्तरायण होने पर सूर्यदेव की पूजा-पाठ का महत्व बढ़ जाता है। इस दिन पूजा-पाठ और दान करने का विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका फल कई गुना ज्यादा हो जाता है।
मकर संक्रांति के पर्व का ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व होता है। मकर संक्रांति पर सूर्य धनु राशि की यात्रा को विराम देते हुए मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने को देवता का दिन प्रारंभ हो जाता है। शास्त्रों में सूर्य के दक्षिणायन को देवताओं का रात मानी जाती है।
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य और शनि दोनों की आपस में शत्रुता का भाव रहता है। मकर संक्रांति पर सूर्यदेव अपने पुत्र शनि की मकर राशि में प्रवेश करते हैं। सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से सूर्यदेव की उपासना, दान और स्नान का महत्व बढ़ जाता है।
मकर संक्रांति से शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु का शुभारंभ माना जाता है।
मकर संक्रांति से नई फसलें तैयार हो जाती है। जिसकी कटाई करने के बाद यह त्योहार माना जाता है।
मकर संक्रांति को देश के अलग-अलग राज्यों में कई नामों से इस त्योहार को मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है। दक्षिण भारत में मकर संक्रांति को पोंगल और गुजरात में मकर संक्रांति को उत्तरायण के रूप में मनाया जाता है।
पंजाब में मकर संक्रांति को लोहड़ी के रूप में विशेष तौर पर धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन शाम को लोहड़ी जलाई जाती है जिसमें तिल,गुड़,मक्का और तिल के लड्डू को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
असम में मकर संक्रांति के त्योहार को माघ बिहू और भोगाली बिहू के रूप मनाया जाता है।
मकर संक्रांति पर सूर्य देव के उत्तरायण होने पर ही भीष्म पितामह ने अपने प्राण त्यागे थे।
मकर संक्रांति पर पवित्र नदियों में स्नान करने के परंपरा होती है। इस त्योहार पर बड़ी संख्या में गंगासागर और प्रयाग में लोग गंगा में डुबकी लगाकर स्नान करते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति पर जो देह का त्याग करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
{जनता से रिश्ता इस खबर की पुष्टि नहीं करता है ये खबर जनसरोकार के माध्यम से मिली है और ये खबर सोशल मीडिया में वायरलहो रही थी जिसके चलते इस खबर को प्रकाशित की जा रही है। इस पर जनता से रिश्ता खबर की सच्चाई को लेकर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं करता है।}
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