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भारत को पूरे विश्व में मधुमेह की राजधानी कहा जाता है।
वास्तु शास्त्र का मानना है कि हमारे आस-पास की हर वस्तु हम पर नकारात्मक या सकारात्मक ऊर्जा के जरिये प्रभाव डालती है। इन वस्तुओं का प्रभाव सिर्फ मानसिक तौर पर ही नहीं बल्कि शारीरिक तौर पर भी होता है। ऐसे में वास्तु शास्त्र में कुछ नियम रोग मुक्त होने के लिए भी बताए गए हैं। इन नियमों का अगर सही ढंग से पालन किया जाए तो रोग में सुधार होने की संभावना बढ़ जाती है।
आज हम आपको इस लेख में वास्तु शास्त्र के द्वारा अलग-अलग रोगों से छुटकारा पाने के लिए बताए गए नियमों के बारे में बताने वाले हैं लेकिन इसका ये मतलब बिलकुल भी नहीं है कि आप इन रोगों को लेकर सिर्फ और सिर्फ वास्तु के नियमों पर ही आश्रित रहें। आपको सलाह दी जाती है कि आप चिकित्सीय परामर्श के साथ-साथ वास्तु नियमों का भी पालन करेंगे तो आपके लिए इन रोगों से छुटकारा पाना ज्यादा आसान रहेगा।
आइये अब आपको रोगों के अनुसार वास्तु शास्त्र के नियमों के बारे में जानकारी दे देते हैं।
मधुमेह का रोग
भारत को पूरे विश्व में मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। यदि किसी जातक को मधुमेह यानी कि डायबिटीज की समस्या हो तो उसे नैऋत्य या दक्षिण दिशा में सिर करके नहीं सोना चाहिए। इससे उनकी समस्या में और भी इजाफा हो सकता है। मधुमेह के रोगियों को आग्नेय कोण में सिर रखकर सोने की सलाह दी जाती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आग्नेय कोण दक्षिण और पूर्व दिशा के बीच का स्थान होता है। इस दिशा का स्वामी शुक्र है और इस दिशा को अग्नि व मंगल का स्थान माना गया है।
कम रक्तचाप
कम रक्तचाप यानी कि लो बीपी। यदि किसी जातक को लो बीपी की समस्या हो तो वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार उसे पूर्व या पश्चिम दिशा में सिर रखकर बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए। वास्तु शास्त्र के नियमों के मुताबिक लो बीपी के मरीजों को भी आग्नेय कोण में सोना चाहिए। इससे उन्हें इस रोग से मुक्ति मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
उच्च रक्तचाप
आजकल की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में आम लोगों के बीच उच्च रक्तचाप यानी कि हाई बीपी की समस्या बहुत ही आम हो चुकी है। वास्तु शास्त्र के नियमों के मुताबिक उच्च रक्तचाप के मरीजों को आग्नेय कोण या पूर्व दिशा में सिर रखकर बिल्कुल भी नहीं सोना चाहिए। उच्च रक्तचाप के मरीज यदि ईशान कोण में सिर रखकर सोते हैं तो यह उनके लिए ज्यादा फायदेमंद होगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि उत्तर और पूर्व के बीच की दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। यह दिशा भगवान शिव और जल देवता का स्थान मानी जाती है।
संतान प्राप्ति
यदि किसी जातक को संतान प्राप्ति नहीं हो पा रही है तो वास्तु शास्त्र के नियमों के मुताबिक उस जातक को ईशान या आग्नेय कोण में सिर रखकर नहीं सोना चाहिए। वास्तु अनुसार ऐसे जातकों को घर के ऐसे कमरे में सोना चाहिए जो घर के बीचो-बीच हो।
आपको बता दें कि किसी भी घर के मध्य स्थान पर परमपिता ब्रह्मा और भगवान बृहस्पति का आधिपत्य माना गया है। भगवान बृहस्पति ही किसी भी जातक की कुंडली में संतान के योग बनाते हैं।
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Apurva Srivastav
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