धर्म-अध्यात्म

शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए जरुर पढ़ें हनुमान चालीसा का पाठ

Manish Sahu
13 Aug 2023 10:37 AM GMT
शनि दोष से मुक्ति पाने के लिए जरुर पढ़ें हनुमान चालीसा का पाठ
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धर्म अध्यात्म: शनि देव को न्याय के देवता के रूप में जाना जाता है. व्यक्ति के अच्छे-बुरे कर्मों का हिसाब शनि देव रखते हैं. शनि देव की कू-दृष्टि से इंसान ही नहीं देवता भी कांपते हैं. लेकिन कुछ देवता ऐसे भी हैं जिनके भक्तों को शनिदेव कुछ नहीं कहते. उनमें संकटमोचन हनुमान भी शामिल है. मान्यता है कि हनुमान जी के भक्तों को शनि देव परेशान नहीं करते हैं. शनि देव ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि वे उनके भक्तों को कभी भी परेशान नहीं करेंगे. इसीलिए शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करने पर शनि दोष से मुक्ति पायी जा सकती है और शनि की पीड़ा से राहत मिलती है...
हनुमान चालीसा
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज निजमनु मुकुरु सुधारि।
बरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन वरन विराज सुवेसा। कानन कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै।
शंकर सुवन केसरीनंदन। तेज प्रताप महा जग वन्दन।।
विद्यावान गुणी अति चातुर।राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। विकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र विभीषन माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।
जुग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।
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