धर्म-अध्यात्म

श्री रामचरित मानस का लंका कांड, जानें रास्ते में क्या क्या हुआ?

Tulsi Rao
19 Oct 2022 9:28 AM GMT
श्री रामचरित मानस का लंका कांड, जानें रास्ते में क्या क्या हुआ?
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Diwali Lord Ram Story: दिवाली करीब है, उत्सव मनाए जा रहे हैं. दिवाली मनाने के पीछे जो प्रचलित पौराणिक कथाएं हैं उनमें सबसे प्रमुख है श्री राम का अयोध्या आगमन. कथा यही है कि रावण के वध के बाद श्री राम अपनी पत्नी सीता को लेकर पुष्पक विमान से अयोध्या आए थे, और भगवान के नगर आगमन पर प्रजा ने दीप जलाकर उनका भव्य स्वागत किया था. लेकिन क्या आप ये जानते हैं कि अपनी जन्मभूमि का स्वर्ग से भी प्रिय मानने वाले भगवान श्री राम लंका से सीधे अयोध्या नहीं आए थे बल्कि उनका पुष्पक विमान उससे पहले भी कई पड़ावों से होकर गुजरा.

श्री रामचरित मानस का लंका कांड

सबसे प्रमाणिक रामकथा लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने श्री रामचरित मानस के लंका कांड में इसका विस्तार से वर्णन किया है. श्री रामचरित मानस के अनुसार जब श्री राम के अयोध्या लौटने का वक्त आया तो सुग्रीव, नील, जामवंत, अंगद, विभीषण और हनुमान बहुत दुखी हो गए, उनकी आंखों से आंसू बहने लगे. प्रभु राम ने उनकी मनस्थिति को समझ कर सीता और लक्ष्मण के साथ ही इन सभी को अपने साथ विमान में बैठा लिया.

रास्ते में क्या क्या हुआ?

सभी सवारों के बैठते ही विमान ने उत्तर दिशा में उड़ान भरी, विमान के चलने से जोरदार आवाज़ हुई और सभी ने श्रीराम का जयकारा लगाया, विमान पर मौजूद सिंहासन पर श्री राम आसीन हुए। विमान के चलते ही कई तरह के शकुन हुए तुलसीदास लिखते हैं

परम सुखद चलि त्रिबिध बयारी, सागर सर सरि निर्मल बारी

सगुन होहिं सुंदर चहुं पासा, मन प्रसन्न निर्मल नभ आसा।। (लंका कांड)

यानि अत्यंत सुख देने वाली तीन प्रकार की शीतल मंद सुगंधित वायु चलने लगी, समुद्र तालाब , नदियों का जल निर्मल हो गया, चारों ओर सुंदर शकुन होने लगे, सबके मन प्रसन्न हैं, आकाश और दिशाएं निर्मल हो गई हैं

इतना ही नहीं आकाश मार्ग से भगवान राम उत्साह के साथ सीता को युद्ध भूमि दिखाने लगे. उन्होंने बताया कि देखो सीता यहां लक्ष्मण ने मेघनाद का मारा था. दूसरी तरफ इशारा करके बताया कि ये हनुमान और अंगद के मारे गए राक्षसों से पृथ्वी पटी पड़ी है. फिर तीसरी ओर इशारा करके बताया कि देवताओं और मुनियों को दुख देने वाले कुंभकर्ण और रावण दोनों भाई यहां मारे गए.

कह रघुबीर देखु रन सीता। लछिमन इहाँ हत्यो इँद्रजीता।।

हनूमान अंगद के मारे। रन महि परे निसाचर भारे।। (लंका कांड)

कुंभकरन रावन द्वौ भाई। इहाँ हते सुर मुनि दुखदाई।।

इसके बाद पुष्पक विमान लंका की भूमि से आगे बढ़ा. जैसे ही विमान समुद्र के ऊपर से गुजरा तो श्री राम ने सीता जी को रामसेतु दिखाया और बताया कि कैसे भगवान शिव की आराधना और स्थापना करके पुल बांधा गया और वानर सेना लंका पहुंच पाई. प्रभु राम ने जहां जहां प्रवास और आराम किया था आकाश मार्ग से ही वो सारे स्थान भी सीता जी को दिखाए.

कहां-कहां उतरा पुष्पक विमान?

यहां तक तो भगवान श्री राम आकाश मार्ग से ही सब दिखा रहे थे. लेकिन लंका से उड़ा विमान भारत की धरती पर पहली बार जहां उतरा वो था अगस्त्य मुनि का आश्रम, तुलसीदास जी लिखते हैं..

तुरत बिमान तहाँ चलि आवा। दंडक बन जहँ परम सुहावा।।

कुंभजादि मुनिनायक नाना। गए रामु सब कें अस्थाना।।(लंका कांड)

यानि विमान जल्दी ही वहां पहुंचा जहां सुंदर दंडकवन था. इस स्थान पर ऋषि कुम्भज के साथ कई और मुनि भी रहते थे. कुम्भज ऋषि का एक नाम अगस्त्य भी था. राम सबके स्थान पर गए और सबका आशीर्वाद लिया. दंडकवन से पुष्पक विमान ने फिर उड़ान भरी और अब विमान सीधा चित्रकूट में उतरा, तुलसीदास ने लिखा है...

सकल रिषिन्ह सन पाइ असीसा। चित्रकूट आए जगदीसा।।

तहँ करि मुनिन्ह केर संतोषा। चला बिमानु तहाँ ते चोखा।।(लंका कांड)

चित्रकूट मौजूदा बुंदेलखंड में आता है. इसका आधा हिस्सा मध्य प्रदेश और आधा उत्तर प्रदेश में आता है. चित्रकूट में प्रभु का इंतजार कर रहे मुनियों को संतोष दिलाने के बाद विमान ने फिर उड़ा भरी और आकाश मार्ग से सबसे पहले यमुना नदी के दर्शन किए. फिर गंगा जी के दर्शन किए और सीता से दोनों नदियों को प्रणाम करने को कहा. ये दोनों नदियां जहां साथ-साथ दिखाई दें, तो समझिए आप संगम के करीब हैं. मतलब भगवान ने तीर्थराज प्रयाग के दर्शन किए और सीता जी को प्रयाग के महत्व को समझाया. यहीं से 14 वर्ष के बाद पहली बार भगवान ने अयोध्या के दर्शन किए, प्रणाम किया और सीता को अवध की महिमा भी सुनाई.

पुनि देखु अवधपुरी अति पावनि। त्रिबिध ताप भव रोग नसावनि। (लंका कांड)

इस दौरान प्रभु का मन प्रसन्न था और आँखों में आंसू थे. लेकिन प्रभु राम सीधे अयोध्या नहीं गए... बल्कि प्रयागराज में ही रुके यानि पुष्पक विमान इस बार प्रयाग में उतरा. भगवान ने त्रिवेणी में स्नान किया. बंदरों और ब्राह्मणों को दान किया.

पुनि प्रभु आइ त्रिबेनीं हरषित मज्जनु कीन्ह।

कपिन्ह सहित बिप्रन्ह कहुँ दान बिबिध बिधि दीन्ह।।120(ख)।।(लंका कांड)

यहां से भगवान राम ने अपने आगमन की पहली सूचना अयोध्या भेजी. श्री राम ने हनुमान को आदेश दिया कि ब्राह्मण का रूप धारण करके अयोध्या जाओ. भरत को मेरे सकुशल होने की सूचना दो और वहां का समाचार लेकर वापस लौटो. इसके बाद भगवान ऋषि भरद्वाज के आश्रम गए और वहां मुनि से आशीर्वाद लिया. इसके बाद पुष्पक विमान ने फिर उड़ान भरी, विमान का अगला पड़ाव था निषाद राज का. जब तक निषाद राज किनारे पर आते विमान ने गंगा पार की और गंगा के इस छोर पर आकर उतरा. सीता जी ने वहां गंगा जी की पूजा की और उनसे आशीर्वाद लिया. तब तक निषादराज भी वहां पहुंचे और भगवान के चरणों में गिर गए. भगवान ने निषाद राज को सस्नेह भरत की तरह गले लगा लिया. अब अयोध्या पहुंचने में सिर्फ एक दिन का वक्त रह गया था... आगे के कहानी उत्तर कांड में मिलती है जहां भरत जी इस सोच में थे कि प्रभु ने कहीं मुझे भुला तो नहीं दिया. तभी व्याकुल होते भरत के पास हनुमान पहुंचे और उन्हें श्री राम की कुशलता और वापसी का समाचार दिया. वापस लौट कर जैसे ही हनुमान श्री राम के पास आए.. पुष्पक विमान ने फिर उड़ान भरी, तुलसीदास जी ने एक सोरठे में सब कह दिया.

सो0-भरत चरन सिरु नाइ तुरित गयउ कपि राम पहिं।

कही कुसल सब जाइ हरषि चलेउ प्रभु जान चढ़ि।।2(ख)।।(उत्तर कांड)

आकाश मार्ग से अपने नगर के बारे में भगवान ने सबको बताया, और ये भी बताया कि उन्हे अवधपुरी बैकुंठ से भी ज्यादा प्यारी है. वो नगरी जहां की उत्तर दिशा में सरयू नदी बहती है. वहां के लोग भी मुझे बहुत प्रिय हैं. ऐसा कहते हुए पहली बार पुष्पक विमान अयोध्या में उतरा.

दो0-आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान।

नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान।।4(क)।। (उत्तर कांड)

उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु।

प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु।।4(ख)।।(उत्तर कांड)

विमान से उतरने के बाद भगवान ने पुष्पक को वापस कुबेर के पास जाने का आदेश दिया. भगवान के काम आने से पुष्पक प्रसन्न भी था और उनसे दूर जाने से दुखी भी.

ये पड़ाव बताने का मतलब सिर्फ इतना था कि श्री राम जहां भी गए, जहां से जो सहयोग लिया उन सबके प्रति कृतज्ञता जताते हुए वापस लौटे. ना कि जीत की खुशी में डूबकर सीधे अपने घर. प्रभु राम का ये चरित्र हमें सिखाता है कि हमें कृतघ्न (एहसान फरामोश) होने से बचना चाहिए.

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