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- शनि प्रकोप से मुक्ति...
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आज शनिवार का दिन है और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये दिन शनि महाराज की पूजा आराधना को समर्पित होता हैं इस दिन भक्त शनिदेव की भक्ति में लीन रहते हैं और प्रभु की विधिवत पूजा करते हैं साथ ही उपवास भी रखते हैं।
मान्यता है कि शनि कृपा जिस पर हो जाती हैं वह रंक से राजा बन जाता हैं लेकिन इनका प्रकोप राजा को भी रंक बना सकता हैं ऐसे में अगर आप शनि प्रकोप से पीड़ित है और इससे मुक्ति का मार्ग तलाश रहे हैं तो हर शनिवार के दिन शनिदेव की विधि पूर्वक पूजा करें इसके साथ ही श्री शनि अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम् का संपूर्ण पाठ जरूर करें मान्यता है कि ये चमत्कारी पाठ आपको शनि पीड़ा से छुटकारा दिलाएगा।
श्री शनि अष्टोत्तरशतनामस्तोत्रम्—
शनि बीज मन्त्र – ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः ॥
शनैश्चराय शान्ताय सर्वाभीष्टप्रदायिने ।
शरण्याय वरेण्याय सर्वेशाय नमो नमः ॥ १॥
सौम्याय सुरवन्द्याय सुरलोकविहारिणे ।
सुखासनोपविष्टाय सुन्दराय नमो नमः ॥ २॥
घनाय घनरूपाय घनाभरणधारिणे ।
घनसारविलेपाय खद्योताय नमो नमः ॥ ३॥
मन्दाय मन्दचेष्टाय महनीयगुणात्मने ।
मर्त्यपावनपादाय महेशाय नमो नमः ॥ ४॥
छायापुत्राय शर्वाय शरतूणीरधारिणे ।
चरस्थिरस्वभावाय चञ्चलाय नमो नमः ॥ ५॥
नीलवर्णाय नित्याय नीलाञ्जननिभाय च ।
नीलाम्बरविभूषाय निश्चलाय नमो नमः ॥ ६॥
वेद्याय विधिरूपाय विरोधाधारभूमये ।
भेदास्पदस्वभावाय वज्रदेहाय ते नमः ॥ ७॥
वैराग्यदाय वीराय वीतरोगभयाय च ।
विपत्परम्परेशाय विश्ववन्द्याय ते नमः ॥ ८॥
गृध्नवाहाय गूढाय कूर्मांगाय कुरूपिणे ।
कुत्सिताय गुणाढ्याय गोचराय नमो नमः ॥ ९॥
अविद्यामूलनाशाय विद्याऽविद्यास्वरूपिणे ।
आयुष्यकारणायाऽपदुद्धर्त्रे च नमो नमः ॥ १०॥
विष्णुभक्ताय वशिने विविधागमवेदिने ।
विधिस्तुत्याय वन्द्याय विरूपाक्षाय ते नमः ॥ ११॥
वरिष्ठाय गरिष्ठाय वज्रांकुशधराय च ।
वरदाभयहस्ताय वामनाय नमो नमः ॥ १२॥
ज्येष्ठापत्नीसमेताय श्रेष्ठाय मितभाषिणे ।
कष्टौघनाशकर्याय पुष्टिदाय नमो नमः ॥ १३॥
स्तुत्याय स्तोत्रगम्याय भक्तिवश्याय भानवे ।
भानुपुत्राय भव्याय पावनाय नमो नमः ॥ १४॥
धनुर्मण्डलसंस्थाय धनदाय धनुष्मते ।
तनुप्रकाशदेहाय तामसाय नमो नमः ॥ १५॥
अशेषजनवन्द्याय विशेषफलदायिने ।
वशीकृतजनेशाय पशूनाम्पतये नमः ॥ १६॥
खेचराय खगेशाय घननीलाम्बराय च ।
काठिन्यमानसायाऽर्यगणस्तुत्याय ते नमः ॥ १७॥
नीलच्छत्राय नित्याय निर्गुणाय गुणात्मने ।
निरामयाय निन्द्याय वन्दनीयाय ते नमः ॥ १८॥
धीराय दिव्यदेहाय दीनार्तिहरणाय च ।
दैन्यनाशकरायाऽर्यजनगण्याय ते नमः ॥ १९॥
क्रूराय क्रूरचेष्टाय कामक्रोधकराय च ।
कळत्रपुत्रशत्रुत्वकारणाय नमो नमः ॥ २०॥
परिपोषितभक्ताय परभीतिहराय ।
भक्तसंघमनोऽभीष्टफलदाय नमो नमः ॥ २१॥
इत्थं शनैश्चरायेदं नांनामष्टोत्तरं शतम् ।
प्रत्यहं प्रजपन्मर्त्यो दीर्घमायुरवाप्नुयात् ॥
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