धर्म-अध्यात्म

Papankusha Ekadashi Vrat इस पौराणिक कथा के बिना अधूरा

Tara Tandi
26 Sep 2024 12:20 PM GMT
Papankusha Ekadashi Vrat  इस पौराणिक कथा के बिना अधूरा
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Papankusha Ekadashi Vrat ज्योतिष न्यूज़ : सनातन धर्म में व्रत त्योहारों की कमी नहीं है और सभी का अपना महत्व होता है लेकिन एकादशी व्रत खास है जो कि हर माह में दो बार पड़ती है ऐसे साल में कुल 24 एकादशी मनाई जाती है यह तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु की साधना आराधना को समर्पित होती है इस दिन पूजा पाठ और व्रत का विधान होता है।
पंचांग के अनुसार हर साल आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी ​तिथि के एक दिन बाद पापांकुशा एकादशी का व्रत किया जाता है इस बार यह व्रत 13 अक्टूबर को रखा जाएगा। इस दिन श्री हरि की पूजा अर्चना के दौरान पापांकुशा एकादशी व्रत की असली कथा का पाठ जरूर करना चाहिए ऐसा करने से व्रत पूजा सफल मानी जाती है और इसका पूर्ण फल भी मिलता है तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं एकादशी व्रत की संपूर्ण कथा पाठ।
प्राचीन समय में क्रोधन नामक एक शिकारी था, जो विंध्य पर्वत पर रहता था। उसने जीवनभर पाप किए थे, लेकिन जैसे-जैसे उसकी मृत्यु का समय करीब आ रहा था। वो डरने लगा। एक दिन वो महर्षि अंगिरा के आश्रम गया। वहां जाकर उसने महर्षि अंगिरा से कहा, ‘हे ऋषिवर, मैंने जीवनभर पाप कर्म किए हैं। कृपा मुझे कोई उपाय बताइए, जिससे मुझे अपने पापों से मुक्ति मिल सके और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।’महर्षि अंगिरा ने क्रोधन को पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इसी के साथ उन्होंने व्रत के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘पापांकुशा एकादशी को पापों का नाश करने वाली एकादशी कहा जाता है। इस दिन जो साधक सच्चे मन और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे मनोवांछित फल मिलता है। साथ ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।’
इसी के आगे महर्षि ने कहा, ‘मनुष्य को कई साल तक कठोर तपस्या करने के बाद जो फल मिलता है, वो फल उसे विष्णु जी को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो लोग अज्ञानवश पापों के लिए हरि से माफी मांगते हैं, वो नरक नहीं जाते हैं। विष्णु जी के नाम जाप से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिलता है। जो साधक भगवान विष्णु की शरण में होता है, उसे कभी भी यम यातना का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिए इस एकादशी के बराबर कोई व्रत नहीं है। माना जाता है कि जब तक व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत नहीं करता है, तब तक उसकी देह में पाप वास करता है।’महर्षि अंगिरा के कहने पर क्रोधन ने श्रद्धा भाव से ये व्रत करा, जिसके प्रभाव से उसे अपने सभी पापों से छुटकारा मिल गया। इसी के बाद से पापांकुशा एकादशी व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।
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