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प्रभु राम के दर्शन पाकर भावुक हो गए थे मुनि सुतीक्ष्ण, भगवान से मांग बैठे ऐसा वर
वनवास में अगस्त्य मुनि के शिष्य सुतीक्ष्ण, प्रभु श्री राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण जी के दर्शन कर उनके चरणों में गिर पड़े. फिर प्रभु ने उन्हें उठा कर हृदय से लगा लिया. मुनि, प्रभु राम और लक्ष्मण जी को टकटकी लगा कर देखते ही रहे मानों दोनों की छवि आंखों में भर लेना चाहते हैं. फिर दोनों को अपने आश्रम में लाकर पूजन और आवभगत करने लगे.
भगवान से ही पूछा- कैसे आपकी स्तुति करूं
मुनि, प्रभु श्री राम से ही पूछते हैं कि प्रभु मैं किस प्रकार आपकी स्तुति करूं. आपकी महिमा अपार है और मेरी बुद्धि बहुत ही तुच्छ है. गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में मुनि सुतीक्ष्ण द्वारा प्रभु की विनती को बहुत ही सुंदर शब्दों में लिखा. वे लिखते हैं कि मुनि बोले हे, जटाओं का मुकुट और मुनियों के वस्त्र धारण किए हुए, हाथों में धनुष बाण लिए तथा कमर में तरकस कसे हुए श्री राम जी, मैं आपको बार-बार नमस्कार करता हूं.
प्रभु राम की अग्नि, सूर्य, सिंह और बाज से की तुलना
मुनि सुतीक्ष्ण ने प्रभु श्री राम की प्रशंसा करते हुए कहा कि जो मोह रूपी घने वन को जलाने के लिए अग्नि हैं, संत रूपी कमलों के वन को प्रसन्न करने के लिए सूर्य हैं, राक्षस रूपी हाथियों के समूह को पकड़ने के लिए सिंह हैं और इस संसार में आवागमन रूपी पक्षी को मारने के लिए बाज रूप हैं. ऐसे प्रभु सदैव हमारी रक्षा करें. हे लाल कमल के समान नेत्र और सुंदर वेश वाले, सीता जी के नेत्र रूपी चकोर के चंद्रमा, शिवजी के हृदय रूपी मानसरोवर के बाल हंस, विशाल हृदय और भुजाओं वाले श्री राम चंद्र जी, मैं आपको नमस्कार करता हूं. मुनि ने कहा कि आप तो कृपा के समूह हैं इसलिए सदैव मेरी रक्षा करें. मुनि सुतीक्ष्ण ने अनेक प्रकार से श्री राम की वंदना की तो श्री रघुनाथ जी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पुनः मुनि को हृदय से लगा लिया.
श्री राम ने मुनि सुतीक्ष्ण से वर मांगने को कहा
मुनि सुतीक्ष्ण की वंदना से प्रसन्न होकर श्री राम ने उन्हें अपने हृदय से लगाया और आग्रहपूर्वक कहा कि वह वास्तव में बहुत ही प्रसन्न हैं, उन्होंने मुनि से वर मांगने को कहा तो मुनि ने बड़ी समझदारी से कहा कि उन्होंने आज तक कभी कोई वर मांगा ही नहीं है तो समझ ही नहीं पड़ रहा कि क्या झूठ और क्या सच है, आखिर क्या मांगू और क्या न मांगूं. मुनि ने कहा कि हे रघुनाथ दासों को सुख देने वाले, आपको जो अच्छा लगे वही दे दीजिए. इस पर श्री राम ने उन्हें प्रगाढ़ भक्ति, वैराग्य, विज्ञान औस समस्त गुणों तथा ज्ञान के निधान होने का वरदान दिया.
मुनि ने प्रभु राम से मांगा ऐसा वर
प्रभु श्री राम द्वारा अपनी तरफ से वरदान देने के बाद मुनि बोले, हे प्रभो, आपको जो देना था वह तो आपने दे ही दिया है. अब मैं चाहता हूं कि आप अपने छोटे भाई लक्ष्मण जी और सीता जी सहित धनुष बाण धारी स्थिर होकर उनके हृदय में उसी तरह निवास करें जिस तरह आकाश में चंद्रमा सदैव निवास करता है. इस पर प्रभु ने कहा कि ऐसा ही होगा.