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भगवान शिव ने पिप्लाद अवतार लिया, जिसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि पिप्लाद नाम भगवान शिव को खुद ब्रह्मदेव ने दिया था.
भगवान शिव ने पिप्लाद अवतार लिया, जिसके बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि पिप्लाद नाम भगवान शिव को खुद ब्रह्मदेव ने दिया था. पिप्लाद देव ने देवी-देवताओं से पूछा कि मेरे पिता मुझे जन्म के पहले छोड़ कर चले गए, इसके पीछे क्या कारण है. देवी-देवता ने बताया कि ऐसा शनि की कुदृष्टि के कारण हुआ. इस बात को सुनकर पिप्लाद देव बहुत नाराज हुए और उन्होंने शनिदेव को नक्षत्र मंडल से गिरने का श्राप दिया. उनके श्राप से शनिदेव आकाश से गिरने लगे. यह देख देवी-देवताओं ने पिप्लाद देव शनिदेव को माफ करने के लिए कहा. तब पिप्लाद देव ने शर्त रखी कि 16 साल की उम्र तक वह किसी को भी कष्ट ना दें, तभी से मान्यता प्रचलित हुई की शनि के कुप्रभाव से बचना हो तो पिप्लाद देव का ध्यान करना चाहिए. (Image- Shutterstock)
भगवान शिव ने वृषभ अवतार विशेष परिस्थिति में लिया. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु दैत्यों का वध करने पाताल लोक पहुंचे, तो वहां मौजूद स्त्रियां उन्हें देखकर मंत्रमुग्ध हो गईं. इन स्त्रियों ने ही भगवान विष्णु के पुत्रों को जन्म दिया था, जिन्होंने पृथ्वी से लेकर पाताल तक बहुत उत्पात मचाया था. इनके उत्पाद से परेशान होकर भगवान ब्रह्मा भगवान शिव की शरण में गए और मदद के लिए प्रार्थना की. उनकी प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने वृषभ अवतार लेकर भगवान विष्णु के पुत्रों का संहार किया था. (Image- Shutterstock)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने यतिनाथ का अवतार भील दंपत्ति की परीक्षा लेने के लिए लिया था. धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अर्बुदांचल पर्वत के पास आहूक और आहूका भील नाम के शिव भक्त रहते थे. इनके घर भगवान शिव यतिनाथ बनकर पहुंचे. आहूक ने अपना धनुष बाण उठाया और शिकार के लिए निकल पड़ा. सुबह यतिनाथ और आहूका ने देखा की आहूक को वन्य जीवों ने मार दिया. इस दुख से दुखी होकर आहूका अपने पति के साथ मुखाग्नि में जलने लगी. उस समय यतिनाथ ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान दिया कि अगले जन्म में भी वह पति पत्नी के रूप में एक दूसरे को प्राप्त करेंगे. (Image- Shutterstock)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने कृष्ण दर्शन का अवतार धर्म और यज्ञ के महत्व को समझाने के लिए लिया था. यही वजह है कि यह अवतार पूरी तरह से धर्म का प्रतीक माना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, इक्ष्वाकुवंशीय श्राद्ध देव की नवी पीढ़ी में राजा नभग का जन्म हुआ. राजा नभग ने यज्ञ भूमि पहुंचकर सुक्त के साथ यज्ञ संपन्न कराया. इसके बाद आंगरिक ब्राह्मण ने नभग को यज्ञ का अभीष्ट धन देकर चले गए. उसी समय भगवान शिव कृष्ण दर्शन रूप में प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि यज्ञ का अभीष्ट धन उनका है. तब राजा नभग और भगवान शिव के बीच विवाद हुआ. इस विवाद के दौरान भगवान शिव के अवतार कृष्ण दर्शन में नभग से इस बात का निर्णय लेने के लिए अपने पिता श्राद्ध देव से पूछने को कहा तब उन्होंने बताया यह कोई और नहीं देवों के देव महादेव हैं. इस पर राजा नभग ने भगवान शिव की स्तुति कर यज्ञ का अभीष्ट धन उन्हें सौंप दिया. (Image- Shutterstock)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने अवधूत का अवतार इंद्रदेव के घमंड को चूर करने के लिए लिया था. एक बार महादेव के दर्शन करने के लिए इंद्र देव, बृहस्पति और अन्य देवता कैलाश पर्वत के लिए निकले. रास्ते में भगवान शिव ने इंद्र देव की परीक्षा लेने के लिए अवधूत का अवतार लिया. इस दौरान इंद्र देव ने बार-बार अवधूत से उनका परिचय मांगा परंतु अवधूत देव चुप रहे, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया, जिससे क्रोधित होकर इंद्रदेव ने जैसे ही अपना वज्र उठा कर उन पर प्रहार करना चाहा उनका हाथ स्तंभित हो गया. अवधूत रूप में भगवान शिव को बृहस्पति देव ने पहचान लिया और उनकी विधि पूर्वक स्तुति करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इंद्र देव को माफ कर दिया
Ritisha Jaiswal
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