धर्म-अध्यात्म

जानें वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा विधि

Tara Tandi
27 July 2023 10:38 AM GMT
जानें वरुथिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा विधि
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हिंदू धर्म में सभी व्रतों में एकादशी के व्रत को बेहद ही खास माना जाता हैं जो कि भगवान विष्णु की पूजा आराधना को समर्पित होती हैं एकादशी का व्रत हर माह के दोनों पक्षों में मनाया जाता है। ऐसे साल में कुल 24 एकादशी का व्रत किया जाता हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी की तिथि लक्ष्मी पति विष्णु को बेहद ही प्रिय हैं ऐसे में भक्त इस दिन भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा करते हैं और दिनभर का उपवास भी रखते हैं अभी सावन का महीना चल रहा हैं इसके बाद वैशाख लग जाएगा और वैशाख में पड़ने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता हैं। पंचांग के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर किया जाएगा। ऐसे में इस साल वरुथिनी एकादशी का व्रत पूजन 16 अप्रैल को किया जाएगा। इस दिन भक्त जगत के पालनहार की विधि विधान से पूजा करते हैं और व्रत भी रखते हैं, तो ऐसे में आज हम आपको अपने इस लेख द्वारा एकादशी के दिन विष्णु पूजा की विधि बता रहे हैं।
शास्त्र अनुसार किसी भी एकादशी का व्रत करने वाले जातक को ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करना चाहिए इस दिन दूसरों की निंदा और हर गलत कार्यों से दूरी बना लेनी चाहिए। साथ ही एकादशी पर व्रत का पालन करते हुए प्याज, लहसुन व चावल का सेवन नहीं करना चाहिए और इन चीजों का सत्याग दशमी तिथि से ही कर देना बेहतर होता हैं, जिसके बाद एकादशी के दिन उपवास रखना चाहिए।
वरुथिनी एकादशी की संपूर्ण पूजा विधि—
एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें इसके बाद साफ वस्त्रों को धारण कर व्रत का संकल्प करें। साथ ही घर के पूजन स्थल की सफाई करते हुए गंगाजल का छिड़काव करके उसे पवित्र करें। फिर भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं और साफ वस्त्र पहना कर मंदिर में स्थापित करें। अब भगवान को अक्षत, दीपक सहित सभी पूजन सामग्री अर्पित करें और विधि विधार से पूजा करें। श्री हरि को पुष्प, फल और तुलसी जरूर चढ़ाएं। इस दिन प्रभु को खीर या खरबूजे का भोग जरूर लगाएं। भगवान की पूजा करते वक्त उनके मंत्रों का जाप करें। इसके बाद प्रभु की आरती करें और अंत में पूजा में होने वाली भूल चूक के लिए क्षमा मांगे। इसके बाद अपनी प्रार्थना कहें। अब दिनभर उपवास रखते हुए अगले दिन शुभ मुहूर्त में पूजा पाठ करने के बाद व्रत का पारण करें।
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