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हर साल की तरह इस साल भी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | हर साल की तरह इस साल भी आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन किया जा रहा है। परंतु कोरोना महामारी के प्रोटोकॉल के कारण आम जनता को रथयात्रा में शामिल होने की मनाही है। इसके साथ ही कई अन्य कड़े नियमों का भी पालन किया जाएगा। परंतु रथ यात्रा की सभी रस्मों का विधिवत पालन होगा। इस साल भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा 12 जुलाई को शुरू होगी तथा इसका समापन देवशयनी एकादशी पर 20 जुलाई को होगा। पुरी का जगन्नाथ धाम हिंदुओं के प्रसिद्ध चार धामों में से एक है, इसके साथ कई रोचक और रहस्मयी पौराणिक कथाएं भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से एक रहस्य हैं भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति का, आइए जानतें हैं इस कथा को..
देवशिल्पी विश्वकर्मा की शर्त
हिंदू धर्म में खण्डित या अधूरी मूर्ति की पूजा को अशुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि हिंदुओं के चार धामों में से एक पुरी के जगन्नाथ धाम की मूर्तियों अधूरी हैं। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि क्यों जगन्नाथ भगवान की अधूरी मूर्ति की पूजा की जाती है। कथा के अनुसार राजा इंद्रदयुम्न पुरी में मंदिर बनावा रहे थे तो भगवान जगन्नाथ की मूर्ति बनाने का कार्य उन्होंने देव शिल्पी विश्वकार्मा को सौंपा। लेकिन भगवान विश्वकर्मा ने शर्त रखी की वो मूर्ति का निर्माण बंद कमरे में करेंगे और यदि किसी ने उन्हें मूर्त बनाते देखने की कोशिश की तो वो उसी क्षण कार्य छोड़ कर चले जाएंगे। राजा इंद्रदयुम्न ने शर्त मान ली और विश्वकर्मा जी ने मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ कर दिया।
राजा इंद्रदयुम्न की भूल
उत्सुकतावश राजा इंद्रदयुम्न रोज दरवाजे के बाहर से मूर्ति निर्माण की आवज सुनने जाने लगे। एक दिन राजा इंद्रदयुम्न को दरवाजे के बाहर कोई आवाज सुनाई नहीं दी तो उन्हें लगा कहीं विश्वकर्मा जी चले तो नहीं गए। ये जानने के लिए जैसे ही उन्होंने दरवाजा खोला देवशिल्पी विश्वकर्मा अंतर्ध्यान हो गए और मूर्तियां वैसी ही अधूरी रह गई। आज तक भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और बहिन सुभद्रा की मूर्तियां वैसी ही अधूरी हैं लेकिन उनके प्रति आस्था और विश्वास भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं।
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