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सनातन धर्म में संक्रांति, पूर्णिमा और अमावस्या तिथियों पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान का विधान है। ऐसी मान्यता है कि पूर्णिमा और अमावस्या तिथियों को गंगा स्नान करने से व्यक्ति के समस्त पाप कट जाते हैं। साथ ही इन तिथियों को तिल तर्पण और दान से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, संक्रांति और पर्व त्योहार के अवसर पर भी गंगा स्नान किया जाता है। मकर संक्रांति के दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु गंगासागर में आस्था की डुबकी लगाते हैं। साथ ही प्रयागराज संगम में भी श्रद्धालु स्नान-ध्यान करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मकर संक्रांति पर प्रयागराज संगम में नहाने का महत्व क्या है? आइए जानते हैं-धार्मिक मान्यता है कि जिस जगह पर तीन नदियों का मिलन होता है। उस जगह को संगम और त्रिवेणी भी कहा जाता है। भारत में दर्जनों नदियां हैं। इनमें कई नदियां आपस में मिलती है। प्रयागराज संगम पर गंगा, यमुना और सरस्वती मिलती हैं। सनातन धर्म में गंगा को पवित्र नदी माना गया है। इसके बाद अन्य नदियों का स्थान है। राजा सगर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने हेतु मां पार्वती गंगा रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुई। सनातन शास्त्रों में निहित है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा पृथ्वी पर आई। इसके लिए मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान का विधान है। वहीं, प्रयागराज संगम में स्नान करने से भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके लिए मकर संक्रांति पर प्रयागराज संगम में स्नान किया जाता है।
श्रद्धालु गंगासागर, बिहार के सुल्तानगंज, प्रयागराज, हरिद्वार, ऋषिकेश और वाराणसी में आस्था की डुबकी लगाते हैं। हालांकि, कोरोना महामारी के चलते गंगा स्नान करना संभव है। अतः श्रद्धालु घर पर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान कर सकते हैं। साथ ही तिलांजलि दें। वहीं, पूजा पाठ करने के बाद गरीबों और जरुरतमंदों को दान दें।