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इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है
आचार्य चाणक्य की गणना विश्व के श्रेष्ठतम विद्वानों ने की जाती है। उनके द्वारा रचित चाणक्य नीति आज भी लाखों युवाओं का मार्गदर्शन कर रही है। चाणक्य नीति के माध्यम से कई छात्र सफलता के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि चाणक्य नीति में यह बताया गया है कि वे मनुष्य को अपने जीवन काल में क्या करना चाहिए और किन चीजों से बचना चाहिए। आचार्य चाणक्य की नीतियों के कारण ही महान चक्रवर्ती सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य ने मगध में मौर्य वंश की स्थापना की थी।
आचार्य चाणक्य की नीतियां सफलता और असफलता के भेद को उजागर करती हैं। चाणक्य नीति के इस भाग में आज हम एक ऐसे विषय जिसमें उन्होंने बताया है कि व्यक्ति को किस स्थान पर एक भी क्षण नहीं रहना चाहिए आइए जानते हैं।
चाणक्य नीति के इस श्लोक का रखें ध्यान (Chanakya Niti in Hindi)
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम् ।।
अर्थात- जिस स्थान पर आजीविका ना मिले। जहां लोगों में भय, लज्जा, उदारता या दान की प्रवृत्ति ना हो। ऐसे पांच स्थान पर व्यक्ति को निवास नहीं करना चाहिए।
इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य ने बताया है कि जिस स्थान पर आजीविका ना हो, वहां रुकना मनुष्य के लिए व्यर्थ है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे स्थान पर न तो धन का आदान-प्रदान होता है और ना ही मनुष्य की उन्नति के मार्ग खुलते हैं। इसके साथ उन्होंने बताया है कि जहां राजा अथवा प्रशासन या धर्म-अधर्म का भय और लज्जा न हो, वहां पर क्रूरता और लोभ का बोलबाला बढ़ जाता है। ऐसे स्थान पर रुकना मनुष्य के लिए नर्क के समान होता है। शास्त्रों में भी बताया गया है कि जहां लोगों में उदारता और दान की प्रवृत्ति नहीं है, वहां न तो माता लक्ष्मी रूकती है और न ही आर्थिक या भौतिक रूप से उन्नति होती है। सज्जन व्यक्ति वहां एक एक क्षण भी रुक सकते हैं, क्योंकि ऐसे स्थान पर हीन भावना का विस्तार बहुत अधिक हो जाता है।
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Apurva Srivastav
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