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- देवर्षि नारद का जन्म...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को नारद जयंती मनाई जाती है। इस साल नारद जयंती मंगलवार 17 मई को है। नारद मुनि भगवान विष्णु के परम भक्त थे। कहते हैं कि नारद मुनि का जन्म एक श्राप से हुआ था। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। यहां पढ़ें नारद मुनि का जन्म कैसे हुआ था और वे देवर्षि कैसे बने?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इंद्रलोक में उपबहर्ण नाम के गंधर्व हुआ करते थे। उपबर्हण को स्त्रियों के साथ समय बिताना पसंद था। स्वर्ग में वह अप्सराओं के साथ ही क्रीड़ा करते थे। एक बार गंधर्व और अप्सराएं जगदगुरु ब्रह्मा की आराधना कर रहे थे। तभी उपबहर्ण अप्सराओं के साथ क्रीड़ा करने लगे। इससे ब्रह्माजी क्रोधित हो गए और उन्हें शूद्र योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया।
ब्रह्माजी के श्राप के चलते उपबहर्ण को अगले जन्म में एक शूद्र दासी ने जन्म दिया। उनका नाम नंद रखा गया। नंद को बचपन से ब्राह्मणों की सेवा में लगा दिया गया था। वे तन-मन से ब्राह्मणों की सेवा में लीन हो गए। इससे उनके पूर्व जन्म के पाप धीरे-धीरे धुलते गए। समय के साथ उनका मन प्रभु की भक्ति में लगने लगा। वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन हो गए। इससे खुश होकर खुद प्रभु ने उन्हें दर्शन दिए और नंद को ब्रह्मपुत्र होने का वरदान मिला। इस तरह वे देवर्षि बन गए
कहते हैं कि सृष्टि के अंत के हजारों सालों बाद इसकी फिर से रचना हुई। तब ब्रह्माजी ने 10 मानस पुत्रों को जन्म दिया। इनमें से एक नारद हैं। नारद भगवान विष्णु के परम भक्त थे इसलिए तीनों लोकों में विचरण करते हुए वे विष्णुजी की महिमा का बखान करने लगे। तीनों लोकों में विचरण करने की वजह से उनके पास हर जगह की खबर होती थी। इसलिए उन्हें संसार का पहला पत्रकार भी माना जाता है।