धर्म-अध्यात्म

गंगा दशहरा पर करें ये आसान उपाय, ​मिलेगा फल

Tara Tandi
22 May 2023 10:41 AM GMT
गंगा दशहरा पर करें ये आसान उपाय, ​मिलेगा फल
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सनातन धर्म में वैसे तो कई पर्व त्योहार मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता हैं लेकिन गंगा दशहरा का त्योहार बहुत ही खास माना जाता हैं जो कि हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता हैं इस दिन देवी गंगा की विधिवत पूजा होती हैं मान्यता है कि इसी पावन दिन पर गंगा धरती पर अवतरित हुई थी।
इस साल गंगा दशहरे का त्योहार 30 मई को मनाया जाएगा। गंगा दशहरा के दिन गंगा माता की पूजा करने से समस्त पापों का नाश हो जाता हैं इस दिन पवित्र नदी गंगा में स्नान व डुबकी लगाने से देवी देवताओं की अपार कृपा मिलती हैं इसी के साथ इस दिन दान पुण्य के कार्य में जीवन में सुख समृद्धि प्रदान करते हैं।
गंगा दशहरा के पावन दिन पर अगर पूजन के समय पवित्र गंगा स्तोत्र का सच्चे मन से पाठ किया जाए तो हर समस्या का समाधान हो जाता हैं साथ ही पूजन का कई गुना फल भी मिलता हैं, तो आज हम आपके लिए लेकर आए हैं ये चमत्कारी पाठ।
पवित्र गंगा स्तोत्र—
देवि सुरेश्वरि भगति गंगे त्रिभुवनतारिणि तरलतरंगे ।
शंकरमौलिविहारिणि विमले मम मतिरास्तां तव पदकमले ।।1।।
भागीरथि सुखदायिनि मातस्तव जलमहिमा निगमे ख्यात: ।
नाहं जाने तव महिमानं पाहि कृपामयि मामज्ञानम ।।2।।
हरिपदपाद्यतरंगिणि गंगे हिमविधुमुक्ताधवलतरंगे ।
दूरीकुरू मम दुष्कृतिभारं कुरु कृपया भवसागरपारम ।।3।।
तव जलममलं येन निपीतं परमपदं खलु तेन गृहीतम ।
मातर्गंगे त्वयि यो भक्त: किल तं द्रष्टुं न यम: शक्त: ।।4।।
पतितोद्धारिणि जाह्रवि गंगे खण्डितगिरिवरमण्डितभंगे ।
भीष्मजननि हेमुनिवरकन्ये पतितनिवारिणि त्रिभुवनधन्ये ।।5।।
कल्पलतामिव फलदां लोके प्रणमति यस्त्वां न पतति शोके ।
पारावारविहारिणि गंगे विमुखयुवतिकृततरलापांगे ।।6।।
तव चेन्मात: स्रोत: स्नात: पुनरपि जठरे सोsपि न जात: ।
नरकनिवारिणि जाह्रवि गंगे कलुषविनाशिनि महिमोत्तुंगे ।।7।।
पुनरसदड़्गे पुण्यतरंगे जय जय जाह्रवि करूणापाड़्गे ।
इन्द्रमुकुट मणिराजितचरणे सुखदे शुभदे भृत्यशरण्ये ।।8।।
रोगं शोकं तापं पापं हर मे भगवति कुमतिकलापम ।
त्रिभुवनसारे वसुधाहारे त्वमसि गतिर्मम खलु संसारे ।।9।।
अलकानन्दे परमानन्दे कुरु करुणामयि कातरवन्द्ये ।
तव तटनिकटे यस्य निवास: खलु वैकुण्ठे तस्य निवास: ।।10।।
वरमिह: नीरे कमठो मीन: कि वा तीरे शरट: क्षीण: ।
अथवा श्वपचो मलिनो दीनस्तव न हि दूरे नृपतिकुलीन: ।।11।।
भो भुवनेश्वरि पुण्ये धन्ये देवि द्रवमयि मुनिवरकन्ये ।
गंगास्तवमिमममलं नित्यं पठति नरो य: सजयति सत्यम ।।12।।
येषां ह्रदये गंगाभक्तिस्तेषां भवति सदा सुख मुक्ति: ।
मधुराकान्तापंझटिकाभि: परमानन्द कलितललिताभि:
गंगास्तोत्रमिदं भवसारं वांछितफलदं विमलं सारम ।
शंकरसेवकशंकरचितं पठति सुखी स्तव इति च समाप्त: ।।
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