- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- धर्म-अध्यात्म
- /
- दत्तात्रेय जयंती आज,...
दत्तात्रेय जयंती आज, जानिए भगवान दत्तात्रेय की पूजा-विधि और कथा
इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्मोत्सव मनाया जाता है। पूर्णिमा पर पूजा-पाठ, गंगा स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर वर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा तिथि को भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान दत्तात्रेय ऐसे देवता है जिनमें भगवान शंकर,विष्णु और ब्रह्रााजी तीनों का मिलाजुला रूप है। इसके अलावा भगवान दत्तात्रेय के अंदर गुरु और भगवान दोनों का स्वरूप निहित है। इनके तीन मुख और 6 हाथ होते हैं। गाय और श्वान इन साथ हमेशा रहते हैं। भगवान दत्तात्रेय ने अपने 24 गुरु माने हैं। इनकी पूजा करने पर त्रिदेवों का आशीर्वाद एक साथ मिलता है। इसके अलावा जब तीनों देवों ने माता अनुसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा ली और उन पर प्रसन्न हुए थे तब तीनों के संयुक्त रूप में इनका जन्म हुआ था।
दत्तात्रेय जयंती 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त
दत्तात्रेय जयंती तिथि: 7 दिसंबर 2022
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 7 दिसंबर, सुबह 08 बजकर 04 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त: 8 दिसंबर सुबह 09 बजकर 40 मिनट तक
दत्तात्रेय जयंती 2022 शुभ योग
इस वर्ष बुधवार, पूर्णिमा, सिद्ध योग में भगवान दत्तात्रेय जयंती मनाई जाएगी। इस शुभ योग में भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने और गंगा स्नान से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाएगी।
भगवान दत्तात्रेय पूजा विधि
प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सूर्योदय से पहले स्नान करें और फिर स्वच्छ सात्विक रंग के वस्त्र धारण करें। पूर्व, उत्तर-पूर्व या उत्तर दिशा में चौकी बिछाएं और उसे गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। इसके उपरांत भगवान दत्तात्रेय कि तस्वीर स्थापित करें। अक्षत, रोली, पीला चन्दन, पुष्प,फल आदि से पूजन करें। भगवान को प्रसाद चढ़ाकर धूप-दीप से आरती करें।
भगवान दत्तात्रेय कथा
शास्त्रों के अनुसार महर्षि अत्रि मुनि की पत्नी अनुसूया के पतिव्रत धर्म की चर्चा तीनों लोक में होने लगी। जब नारदजी ने अनुसूया के पतिधर्म की सराहना तीनों देवियों से की तो माता पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती ने अनुसूया की परीक्षा लेने की ठान ली। सती अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेवियों के अनुरोध पर तीनों देव ब्रह्मा, विष्णु और शिव पृथ्वी लोक पहुंचे। अत्रि मुनि की अनुपस्थिति में तीनों देव साधु के भेष में अनुसूया के आश्रम में पहुंचे और माता अनसूया के सम्मुख भोजन करने की इच्छा प्रकट की। देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई। परन्तु तीनों देवताओं ने माता के सामने यह शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराए। इस पर माता को संशय हुआ। इस संकट से निकलने के लिए उन्होंने ध्यान लगाकर जब अपने पति अत्रिमुनि का स्मरण किया तो सामने खड़े साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखाई दिए। माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से जल निकलकर तीनों साधुओं पर छिड़का तो वे छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने शर्त के मुताबिक उन्हें भोजन कराया। वहीं बहुत दिन तक पति के वियोग में तीनों देवियां व्याकुल हो गईं। तब नारद मुनि ने उन्हें पृथ्वी लोक का वृत्तांत सुनाया। तीनों देवियां पृथ्वी लोक पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना की। तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। इसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया।तीनों देवों को एकसाथ बाल रूप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया।