धर्म-अध्यात्म

शनिवार से चैत्र नवरात्र, कलश स्थापना में इन बातों का रखें ध्यान

Teja
1 April 2022 7:44 AM GMT
शनिवार से चैत्र नवरात्र, कलश स्थापना में इन बातों का रखें ध्यान
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क | शनिवार यानी कल से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत होने जा रही है। जो 11 अप्रैल 2022 को सोमवार के दिन समाप्त होंगे। वहीं 10 अप्रैल को राम नवमी मनाई जाएगी। नवरात्रि के पहले दिन बड़ी संख्या में मां दुर्गा के भक्त अपने घर पर मंगल घटस्थापना करते हैं। अखंड ज्योति जलाते हैं। साथ नौ दिनों का उपवास भी रखते हैं। नवरात्र के दौरान नौ दिनों तक माता के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है।

आइए जानते हैं चैत्र नवरात्रि के मंगल कलश स्थापना की विधि और नियम। आराधना का यह पर्व प्रथम तिथि को घट स्थापना (कलश या छोटा मटका) से आरंभ होता है। साथ ही नौ दिनों तक जलने वाली अखंड ज्योति भी जलाई जाती है। घट स्थापना करते समय यदि कुछ नियमों का पालन भी किया जाए तो और भी शुभ होता है। इन नियमों का पालन करने से माता अति प्रसन्न होती हैं।
नवरात्र में कैसे करें कलश स्थापना
अगर आप घर में कलश स्थापना कर रहे हैं तो सबसे पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएं। फिर कलश पर मौली बांधें और उसमें जल भरें। कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र और पंचरत्न व सिक्का डालें। इसमें अक्षत भी डालें।
प्रतिपदा तिथि घटस्थापना शुभ मुहूर्त
नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना के साथ नौ दिन के लिए देवी मां का पूजन शुरू किया जाता है। घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त का विशेष रूप से ध्यान रखें। इस साल चैत्र घटस्थापना के लिए शुभ मुहूर्त 2 अप्रैल 2022, शनिवार की सुबह 06:22 बजे से 08:31 मिनट तक रहेगा। यानी कि कुल अवधि 02 घण्टे 09 मिनट की रहेगी। इसके अलावा घटस्थापना को अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:08 बजे से 12:57 बजे तक रहेगा। वहीं प्रतिपदा तिथि 1 अप्रैल 2022 को सुबह 11:53 बजे से शुरू होगी और 2 अप्रैल 2022 को सुबह 11:58 पर खत्‍म होगी। इसी समय घटस्थापना करने से नवरात्रि फलदायी होते हैं।
नवरात्र में ऐसे करें कलश स्थापना
अगर आप घर में कलश स्थापना कर रहे हैं तो सबसे पहले कलश पर स्वास्तिक बनाएं। फिर कलश पर मौली बांधें और उसमें जल भरें। कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र और पंचरत्न व सिक्का डालें। इसमें अक्षत भी डालें।
कलश स्थापना में इन बातों का रखें ध्यान
- घटस्थापना हमेशा शुभ मुहूर्त में करनी चाहिए।
- नित्य कर्म और स्नान के बाद ध्यान करें।
- इसके बाद पूजन स्थल से अलग एक पाटे पर लाल व सफेद कपड़ा बिछाएं।
- इस पर अक्षत से अष्टदल बनाकर इस पर जल से भरा कलश स्थापित करें।
- कलश का मुंह खुला ना रखें, उसे किसी चीज से ढक देना चाहिए।
- अगर कलश को किसी ढक्कन से ढका है तो उसे चावलों से भर दें और उसके बीचों-बीच एक नारियल भी रखें।
- इस कलश में शतावरी जड़ी, हलकुंड, कमल गट्टे व रजत का सिक्का डालें।
- दीप प्रज्ज्वलित कर इष्ट देव का ध्यान करें।
- तत्पश्चात देवी मंत्र का जाप करें।
- अब कलश के समने गेहूं व जौ को मिट्टी के पात्र में रोंपें।
- इस ज्वारे को माताजी का स्वरूप मानकर पूजन करें।
- अंतिम दिन ज्वारे का विसर्जन करें।




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