
भूपेंद्र सिंह | इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म ट्विटर किस तरह शरारत पर उतर आया है, इसका प्रमाण है उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू के व्यक्तिगत खाते को ब्लू टिक यानी प्रमाणन से वंचित करना। ट्विटर ने यही हरकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख पदाधिकारियों के खातों के साथ भी की। अपनी इस उकसावे वाली हरकत के लिए ट्विटर ने यह जो तर्क दिया कि छह माह तक खाते का उपयोग न करने वालों का ब्लू टिक हटा दिया जाता है, वह इसलिए स्वीकार्य नहीं हो सकता, क्योंकि कई ऐसे लोगों के प्रमाणित खाते यथावत हैं, जिन्होंने वर्षों से उनका उपयोग नहीं किया है। इनमें से कई तो ऐसे लोगों के हैं, जिनका निधन हो गया है। इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि बाद में ट्विटर ने सभी के खातों का ब्लू टिक चिन्ह बहाल कर दिया। वैसे भी इससे कुल मिलाकर यही साबित हुआ कि वह यह परखना चाहता था कि उसकी इस ओछी हरकत पर क्या प्रतिक्रिया होती है? यदि उसके नियम न्यायसंगत थे तो फिर उसने उपराष्ट्रपति समेत संघ के पदाधिकारियों के ब्लू टिक वापस कैसे कर दिए? साफ है कि उसने गलत इरादे से यह हरकत की और उसके नियम ऐसे हैं, जिनका इस्तेमाल वह मनमाने तरीके से करता है। यह समझना कठिन नहीं कि अहंकारी ट्विटर ने एक खास समूह के खातों के खिलाफ ही कार्रवाई क्यों की? उसने ऐसा या तो सरकार को अपनी ताकत दिखाने के लिए किया या फिर इसलिए कि यदि उसे सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी नियम मानने के लिए बाध्य किया जाएगा तो वह इसी तरह की मनमानी करेगा?