सम्पादकीय

तनाव की सीमा | जनता से रिश्ता

Janta se Rishta
17 Aug 2020 8:48 AM GMT
तनाव की सीमा  | जनता से रिश्ता
x

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव के मद्देनजर भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि चीन अगर अपने सैनिकों को वापस लौटने को नहीं कहता है, तो उसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ेगा। अगर चीन भारत के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को बरकरार रखना चाहता है, तो उसे सीमा पर तनाव खत्म करना ही होगा। पहले विदेश सचिव ने यह बात कही, फिर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कही। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने भी चीन का नाम लिए बगैर उसे कड़ा संदेश दे दिया।

इससे साफ है कि भारत सरकार ने मन बना लिया है कि अगर चीन के रुख में बदलाव नहीं आता है, तो वह कड़े कदम भी उठाने को तैयार है। अब तक दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है, पर गलवान, पैंगोग त्सो, गोगरा और देपसांग इलाकों से चीनी सैनिक वापस नहीं गए हैं। गलवान में शुरुआती संघर्ष और फिर सैन्य अधिकारियों के बीच बातचीत के बाद चीनी सेना कुछ पीछे जरूर लौटी थी, पर वह अपनी चौकियों में नहीं गई। वह फिंगर आठ तक आगे बढ़ आई, जो भारतीय सेना की निगरानी में आता है। अभी दोनों देशों के अधिकारियों के बीच अगले चरण की बातें होनी हैं, माना जा रहा है कि भारत के सख्त रुख के बाद चीन अपने कदम वापस लौटाने को सोचेगा।

द्विपक्षीय संबंधों को लेकर अगर भारत अपने फैसलों में कोई बदलाव करता है, तो चीन के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार है। वह किसी भी रूप में अपने व्यावसायिक हितों पर आंच नहीं आने देना चाहेगा। कोरोना महामारी के चलते पहले ही कई बड़ी कंपनियां चीन के बजाय दूसरे देशों का रुख कर चुकी हैं। उन्हें भारत में अधिक संभावनाएं नजर आ रही हैं। भारत सरकार ने भी विदेशी निवेश संबंधी नियमों को काफी लचीला बना दिया है। फिर सीमा पर तनाव के चलते भारत ने चीन से आयातित होने वाली कई वस्तुओं पर रोक लगा दी है।
आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत विदेशी वस्तुओं की खरीद पर चरणबद्ध तरीके से रोक की घोषणा की जा चुकी है। यहां तक कि फौजी साजो-सामान भी देश के भीतर ही बनाने की योजना बन गई है। इस तरह चीन पहले ही व्यावसायिक दबाव में है। अगर भारत अपने करार रद्द करने का फैसला करता है, तो उसकी मुश्किलें और बढ़ सकती हैं।
भारत के साथ चीन का कारोबार काफी बड़ा है। हालांकि दवा उत्पादन आदि मामलों में भारत भी कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है। पर भारत ने कच्चे माल के मामले में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प ले लिया है। प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से इसका एलान भी कर दिया। जाहिर है, भारत ने चीन पर अपनी निर्भरता कम करने की रणनीति बना ली है। यों भी दुनिया में संबंधों के नए समीकरण बनने शुरू हो गए हैं।
अमेरिका से भारत की नजदीकी बढ़ी है, तो चीन ने पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए निवेश के रास्ते खोल दिए हैं। इससे दुनिया में कारोबारी रिश्ते भी बदल रहे हैं। मगर भारत जैसा बड़ा बाजार खोकर पाकिस्तान और नेपाल जैसे देशों में अपना कारोबार फैलाना चीन के लिए घाटे का ही सौदा होगा। फिर आज की स्थितियों में युद्ध जैसा कदम वह उठाना नहीं चाहेगा। इसलिए उम्मीद की जाती है कि दोनों देशों के बीच होने वाली अगली बैठकों में चीन का रुख कुछ बदला हुआ नजर आएगा।

Next Story