COVID-19

रायपुर: निजी अस्पतालों ने कोरोना को बनाया कमाई का जरिया...बेड नहीं...दलाल काट रहे हैं चांदी

Janta se Rishta
6 Sep 2020 6:22 AM GMT
रायपुर: निजी अस्पतालों ने कोरोना को बनाया कमाई का जरिया...बेड नहीं...दलाल काट रहे हैं चांदी
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मेडिकल स्टोर्स वाले ही बन बैठे है डॉक्टर, अनाप-शनाप दवा देकर लूट रहे

पप्पू फरिश्ता

रायपुर। कोरोना मरीज के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने प्राइवेट अस्पताल और निजी धर्मार्थ अस्पताल में इलाज के लिए रेट निर्धारित कर दिए है, लेकिन हॉस्पिटल में जाने पर कहा जाता है कि बेड खाली नही ंहै, तब उसी हालत में मरीज के परिजन डॉक्टर साहब को या अस्पताल के मालिक को बड़ी मिन्नते करते हैं, फिर अस्पताल परिसर में ही अस्पताल के द्वारा पाले जा रहे लाइजनर , एजेंट या कहे पावर समूह के लोग मरीज के परिजन से बातचीत करते हैं और कहते है कि देखिए बेड तो खाली नहीं है, अगर आप कुछ पैसा हम लोग को ऊपर से देंगे तो मैं आपकी व्यवस्था इसी अस्पताल में करा देता हूं या फिर और कोई अस्पताल आप बोलो तो वहां एडमिट करा देता हूं। मरीज के परिजन मरता क्या नहीं करता वाली कहावत को चरितार्थ करता हैं और मजबूरी में ऊंचे दर पर अपने मरीज का निजी अस्पताल में इलाज कराते है। यह वाकया जीता जागता उदाहरण देवेंद्र नगर, पंडरी कांपा और राजा तालाब स्थित पहले से बदनाम और आरोपित अस्पचताल की कहानी है, वहीं पर परिजनों को निजी अस्पताल के मेडिकल स्टोर्स से पर्ची देकर दवाई मंगाई जाती है। उसके बाद चार घंटे के उपरांत मरीज के परिवार की हैसियत देखते हुए फिर से पर्ची काटकर दवाई दमरीज के परजिन से मंगाई जाती है लेकिन सच्चाई ये है कि मरीज को पहले आई दवाई दी गई और न बाद में आई दवाई मरीज को दी गई, न कोई इंजेक्शन दिया जाता है, जबरन मेडिकल स्टोर से दवाई मंगाई जाती है, मरीज के परिजन और 4 घंटे के बाद वही दवाई वापस उसी निजी अस्पताल स्थित मेडिकल स्टोर वापस भेज दी जाती है शाम को कहा जाता है कि और दवाई लाओ। जनता से रिश्ता के पास इसके पक्के प्रमाण मौजूद है। हम अपने नियम से बंधे होने के कारण अस्पताल का नाम उजागर नहीं कर पा रहे है। शासन-प्रशासन चाहे तो जनता से रिश्ता से संपूर्ण दस्तावेज की तस्दीक कर सकती हैं। पीडि़त मरीजों के परिजन से पूछताछ करे तो सारे मामले का भंडाफोड़ हो सकता है।

नहीं निकल रहे अन्य बीमारियों के मरीज

कोरोना काल में राजधानी के दूसरे मरीजों के लिए आफत पैदा कर दी है। एक तो अस्पतालों में इलाज नहीं हो रहा वहीं कोरोना के डर से मरीज घर से ही नहीं निकल रहे है । बल्कि आसपास के मेडिकल स्टोर्स वाले और किराना वालों से कुछ भी महंगी दवाइयां खरीद कर मर्ज को बढ़ा रहे है। स्वयं इलाज करना घातक भी हो सकता है।

मेडिकल स्टोर्स वाले बन गए है डॉक्टर

मेडिकल स्टोर्स वाले अब डॉक्टर हो गए है। मरीजों को वे ही अपनी मर्जी से अनाप-शनाप दवाई महंगे दाम में बेचकर चांदी काट रहे है। यह स्थिति रही तो 10-15 दिन में रायपुर में गरीब बस्तियों पर विस्फोटक स्थिति सामने आ सकती है । शासन और प्रशासन को चाहिए ऐसी गरीब बस्तियों में हर घर में सर्वे कराएं और परिवार में स्वस्थ और बीमार मरीजों की सूची तैयार करें। फिर गंभीर मरीजों को उचित सुविधा देकर इलाज कराए। मेडिकल वालों के भरोसे मरीजों ने जो दवा काई है वह विस्फोट रूप ले सकता है। टर्न ऑफ टर्न सरकारी स्वास्थ्य अमला भेजकर संपूर्ण जांच कराकर सभी बीमार मरीजों को तत्काल चिकित्सा सुविधा देना चाहिए ।

गुर्गे चमकाते हैं मरीजों को

राजातालाब स्थित एक बदनामशुदा निजी अस्पताल ने तो हद ही कर दी है, कोरोना मरीज के परिजन से अनाप-शनाप पैसा लेकर इलाज नहीं किया और मरीज की मौत हो गई । मरीज की लाश को ले जाने के लिए दबाव बनाया, धमकाया कि लाश को ले जाओ। परिजनों ने कहा लाश को अस्पताल प्रबंधन पीपी किट और पॉॅलीथिन में लपेट कर दे। उसके बाद भी प्रबंधन ने पीपीकिट नहीं दिया।

कोरोना मरीज को परिजन खुले में उठा कर ले गए, जिससे अब वे भी संक्रमित हो सकते। जिसकी जिम्मादारी भी संबंधित निजी अस्पताल की होगी। निजी अस्पतालों में स्थानीय और बाहर से मरीज भेजने वाले निजी अस्पतालों के लाइजनर मरीजों के परिजनों को डराने चमकाने से भी बाज नहीं आ रहे है। निजी अस्पताल में केस बिगडऩे पर या अधिक पैसा लेने पर विवाद की स्थिति आम बात है। ऐसे समय में लाइजनर मरीजों के परिजनों को चमकाते है कि हमारा सरकार में अंदर तक सोर्स है, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। राजधानी के सभी निजी अस्पतालों के प्रबंधन में पूरे प्रदेश में अपने एजेंट या यो कहे लाइजनर नियुक्त कर रखा है, जो गांव-गांव से मरीजों को इलाज के लिए भेजते है, इसके एवज में लाइजनरों को प्रति मरीज की दर अस्पताल प्रबंधन भुगतान करता है।

विधायक उपाध्याय ने भी की लाइसेंस रद्द करने की मांग

शहर के प्राइवेट अस्पताल लोगों को लूट रहे हैं, कोरोना की बीमारी के नाम पर लोगों को गुमराह कर लाखों का बिल सौंप रहे हैं। यह आरोप संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने लगाए हैं। उन्होंने इस मामले में शनिवार को मुख्यमंत्री से शिकायत की। विकास ने कहा स्वास्थ्य सेवाएं देना किसी सामान बेचने जैसा नहीं है और ऐसा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले निजी अस्पताल के संचालक मेडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट का खुला उलंघन कर रहे हैं। विकास उपाध्याय ने कहा 90 फीसदी पीडि़तों द्वारा लगातार ये शिकायत मिल रही है कि निजी अस्पतालों में कोरोना का डर दिखा कर उनसे मनमाने तरीके से लाखों रुपए वसूली की जा रही है। कई मरीज तो ऐसे भी हैं जो इन निजी अस्पतालों में महज 3 दिन की फीस 6 लाख रुपये तक दे चुके हैं। छत्तीसगढ़ में कोरोना मरीज बढ़े है,लिहाजा सरकारी अस्पतालों में अब जगह नहीं है। मजबूरन प्रदेश भर के संक्रमित लोग अच्छे इलाज के आशा में राजधानी रायपुर के निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। विकास उपाध्याय ने कहा कि इसका फायदा ये निजी अस्पतालों के संचालक भरपुर उठा रहे हैं। कई बार देखा गया है कि अगर अस्पताल का पूरा बिल न अदा किया गया हो तो मरीज़ को अस्पताल छोडऩे नहीं दिया जाता है। जिनकी मौत हुई उनकी लाश नहीं दी जाती। बाम्बे हाई कोर्ट ने इसे ग़ैर कानूनी बताया है।

कोरोना मरीज को परिजन खुले में उठा कर ले गए, जिससे अब वे भी संक्रमित हो सकते। जिसकी जिम्मादारी भी संबंधित निजी अस्पताल की होगी। निजी अस्पतालों में स्थानीय और बाहर से मरीज भेजने वाले निजी अस्पतालों के लाइजनर मरीजों के परिजनों को डराने चमकाने से भी बाज नहीं आ रहे है। निजी अस्पताल में केस बिगडऩे पर या अधिक पैसा लेने पर विवाद की स्थिति आम बात है। ऐसे समय में लाइजनर मरीजों के परिजनों को चमकाते है कि हमारा सरकार में अंदर तक सोर्स है, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। राजधानी के सभी निजी अस्पतालों के प्रबंधन में पूरे प्रदेश में अपने एजेंट या यो कहे लाइजनर नियुक्त कर रखा है, जो गांव-गांव से मरीजों को इलाज के लिए भेजते है, इसके एवज में लाइजनरों को प्रति मरीज की दर अस्पताल प्रबंधन भुगतान करता है।

विधायक उपाध्याय ने भी की लाइसेंस रद्द करने की मांग

शहर के प्राइवेट अस्पताल लोगों को लूट रहे हैं, कोरोना की बीमारी के नाम पर लोगों को गुमराह कर लाखों का बिल सौंप रहे हैं। यह आरोप संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने लगाए हैं। उन्होंने इस मामले में शनिवार को मुख्यमंत्री से शिकायत की। विकास ने कहा स्वास्थ्य सेवाएं देना किसी सामान बेचने जैसा नहीं है और ऐसा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले निजी अस्पताल के संचालक मेडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट का खुला उलंघन कर रहे हैं। विकास उपाध्याय ने कहा 90 फीसदी पीडि़तों द्वारा लगातार ये शिकायत मिल रही है कि निजी अस्पतालों में कोरोना का डर दिखा कर उनसे मनमाने तरीके से लाखों रुपए वसूली की जा रही है। कई मरीज तो ऐसे भी हैं जो इन निजी अस्पतालों में महज 3 दिन की फीस 6 लाख रुपये तक दे चुके हैं। छत्तीसगढ़ में कोरोना मरीज बढ़े है,लिहाजा सरकारी अस्पतालों में अब जगह नहीं है। मजबूरन प्रदेश भर के संक्रमित लोग अच्छे इलाज के आशा में राजधानी रायपुर के निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं। विकास उपाध्याय ने कहा कि इसका फायदा ये निजी अस्पतालों के संचालक भरपुर उठा रहे हैं। कई बार देखा गया है कि अगर अस्पताल का पूरा बिल न अदा किया गया हो तो मरीज़ को अस्पताल छोडऩे नहीं दिया जाता है। जिनकी मौत हुई उनकी लाश नहीं दी जाती। बाम्बे हाई कोर्ट ने इसे ग़ैर कानूनी बताया है।

राजधानी कोरोना के साथ अन्य बीमारियों के मुहाने पर, विस्फोट तय

राजधानी में ऐसी कई बस्तियां है जहां कोरोना के साथ अन्य बीमारियों की स्थिति विस्फोटक है। अस्पताल जाने से डरने के कारण अकारण बिना इलाज के मौत के मुंह में समा रहे है। राजधानी में वैसे भी पानी की गुणवत्ता सबसे खराब है, 12 महीने पानी जनित बीमारियों से लोग पहले से ही पानी जनित बीमारियों पीलिया, डायरियां, डेंगू, जुड़वा बुखार,सर्दी-खांसी, जुकाम, सिरदर्द जैसी बीमारियों से ग्रसित है, जो अस्पताल में इलाज करोना के डर नहीं करवा रहे है बल्कि खुद घर में आइसोलेट होकर इलाज कर रहे या वहीं के नीमहकीम, झोलाछाप डॉक्टर के पास इलाज करा रहे है। सारे अस्पतालों को कोरोना हास्पिटल बनाने के पास सामान्य और गंभीर मरीजों के लिए कोई जगह ही नहीं है। गंभीर बीमारियों के मरीज किसी भी अस्पताल जाने से डर रहे हैं, साथ ही इलाज के भारी भरकम फीस चार्ट को देखकर-सुनकर अस्पताल जाने से कतरा रहे हैं, ऐसे में मेडिकल स्टोर वाले और बस्ती में किराना दुकान वाले चांदी काट रहे है। सर्दी खासी की दवाई बेहिसाब रेट पर बेचे जा रहे है।

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