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'मूवी माफिया' ये सब गिने चुने रचनात्मक दिमागों की काल्पनिक कहानि हैं: नसीरुद्दीन शाह

Janta se Rishta
18 Aug 2020 8:03 AM GMT
मूवी माफिया ये सब गिने चुने रचनात्मक दिमागों की काल्पनिक कहानि हैं: नसीरुद्दीन शाह
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क|बॉलीवुड में एक तरफ जहां नेपोटिज्म, आउटसाइडर्स और इनसाइडर्स में भेदभाव जैसे मुद्दों को लेकर तीखी बहस छिड़ी हुई है वहीं सीनियर एक्टर नसीरुद्दीन शाह का कहना है कि बॉलीवुड में मूवी माफिया जैसा कुछ नहीं है. नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि ये सब कुछ गिने चुने रचनात्मक दिमागों की काल्पनिक कहानियां हैं. सुशांत सिंह राजपूत सुसाइड मामले के बाद देशभर में हो रही नेपोटिज्म की व्यापक बहस पर नसीरुद्दीन शाह ने चौंकाने वाले बयान दिए हैं.

उन्होंने कहा, "सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच अब किसी किस्म का रियलिटी शो बन गई है. क्या आप इसे फॉलो कर रहे हैं? इसमें पॉलिटिक्स शामिल है, कुछ मीडिया हाउस के द्वारा की जा रही असंवेदनशील मीडिया कवरेज शामिल है और वो लोग शामिल हैं जिन्हें लगता है कि वो सुशांत को न्याय दिलाने की जंग लड़ रहे हैं. ये पागलपन है. ये पूरी तरह पागलपन है. मैंने इस फॉलो नहीं किया है."

फ्रस्ट्रेशन निकाल रहे हैं लोग

"मुझे दिल से बहुत तकलीफ हुई जब वो जवान लड़का मर गया. मैं उसे जानता नहीं था लेकिन उसका बहुत उज्जवल भविष्य था और उसका जीवन व्यर्थ हो गया. लेकिन मैंने इस बकवास को फॉलो नहीं किया जिसे बहुत से लोगों द्वारा लगातार बढ़ाया जा रहा है. हर वो शख्स जिसके जेहन में, दिल में कॉमर्शियल इंडस्ट्री को लेकर थोड़ी सी भी फ्रस्ट्रेशन है वो प्रेस के सामने आकर इसे उगल कर दे रहा है. ये वाकई बहुत घटिया है. मेरा मतलब, आप इस शिकायतों को खुद तक रखिए, किसी को दिलचस्पी नहीं है."

उन्होंने कहा, "किसी को भी हाफ एजुकेटेड लिखे सितारों के बयानों में दिलचस्पी नहीं है जो ये हर चीज खुद पर ले लेती है कि सुशांत को न्याय दिलाना है. अगर हमें लगता है कि न्याय मिलना चाहिए तो हमें न्याय की प्रक्रिया में भरोसा रखने की जरूरत है. और यदि हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है तो मुझे लगता है कि हमें अपना काम करना चाहिए."

नसीरुद्दीन शाह ने कहा, "ये पागलपन है कि ये इंडस्ट्री और प्रेस उस मामले से से जुड़ा कुछ भी नहीं छोड़ रही है. चाहे खुशी का पल हो या दुख का, या कोई मर गया हो या किसी को मारा गया हो, या किसी का जन्म हुआ हो, शादी हुई हो, प्यार हुआ हो.... मेरा मतलब वो सब कुछ दिखाने लगते हैं जो वो दिखा सकते हैं. ये पागलपन है."

आउटसाइडर और इनसाइडर डिबेट पर कही ये बात

मुझे समझ में नहीं आता कि ये क्या इनसाइडर-आउटसाइडर चल रहा है. मेरा मतलब, ये पूरी तरह से बकवास बात है जिसे हमें साइड में रख देना चाहिए. क्यों मुझे, जिसका एक एक्टर के तौर पर सिक्योर और हैप्पी फ्यूचर रहा है, उसे अपने बेटे को उसी प्रोफेशन में जाने के लिए नहीं कहना चाहिए? क्या व्यवसायी ऐसा नहीं करते हैं? क्या एक वकील ऐसा नहीं करता है? क्या एक डॉक्टर ऐसा नहीं करता है? क्या कोई भी ऐसा है जो ऐसा नहीं करता है? मतलब आप ये कह रहे हैं कि नुसरत फतेह अली खान के वंशजों को सिंगर नहीं बनना चाहिए था? क्योंकि वो एक स्टार थे और क्योंकि हम उन्हें देख चुके थे.

नसीरुद्दीन शाह ने कहा, "मेरे बच्चों को मौके इसलिए नहीं मिले क्योंकि बहुत जरूरी है कि वो मेरे बच्चे थे, बल्कि उन्हें मौके इसलिए मिले क्योंकि लोग जानते थे कि वो और लोगों से भी जुड़े हुए हैं, उन्होंने उनका काम देखा था. तो अगर उन्हें काम अच्छा लगा तो उन्हें बुलाया. उन्हें इसलिए नहीं बुलाया गया कि वो मेरे बेटे हैं. फैक्ट ये है कि किसी तरह इन बच्चों को काम मिला. ओम पुरी किसकी रिकमंडेशन से मुंबई आए थे? ये सब इनसाइडर आउटसाइडर की बातें बकवास हैं. मुझे लगता है कि ये सब बंद होना चाहिए और हर वो शख्स जो इस शहर में एक्टर बनने आता है उसे इस बात का अहसास होना चाहिए कि उसे एक लंबी, कठिन, अकेलेपन भरी संघर्षरत जर्नी के लिए तैयार रहना है. सर्वाइव करने का बस एक ही तरीका है कि आप अपने काम को समझें. संपर्क आपको आगे पहुंचा सकते हैं लेकिन आगे ले जा नहीं सकते."

मूवी माफिया वाले बयानों पर नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि ये सब रचनात्मक दिमागों की मनघड़ंत सोच है. स्वाभाविक है कि मैं उन लोगों के साथ काम करना चाहूंगा जिन्हें मैं पसंद करता हूं और जिनके साथ मैंने सहजता से अच्छा काम किया है. चाहे वो मशहूर लोग हों या फिर मशहूर लोगों के बच्चे, ये उनकी गलती किस तरह है? कोई माफिया नहीं है. मैंने कभी महसूस नहीं किया. मेरे काम में कभी कोई अड़ंगा नहीं आया. मेरे काम में मेरी गति 40-50 सालों में बहुत धीमी रही है लेकिन मैंने कभी महसूस नहीं किया कि कोई अड़चन या रुकावट है.

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