विज्ञान

धरती की 'मैग्नेटिक फील्ड' में हो रहा है बड़ा बदलाव...नासा पहुंचा South Atlantic

Janta se Rishta
19 Aug 2020 10:32 AM GMT
धरती की मैग्नेटिक फील्ड में हो रहा है बड़ा बदलाव...नासा पहुंचा South Atlantic
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दक्षिण अमेरिका और उसके पास अटलांटिक महासागर के बीच पिछले कुछ समय से कुछ ऐसा अजीब-ओ-गरीब सा हो रहा है कि अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA (नैशनल ऐरोनॉटिक्स ऐंड स्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन) इसकी तह ताके जाने में जुट गई है। दरअसल, यहां धरती के चुंबकीय क्षेत्र यानी मैग्नेटिक फील्ड (Magnetic Field) में हैरान कर देने वाले तरीके में बढ़ोतरी हो रही है और कहीं-कहीं दो हिस्सों में टूट रही है। वैसे यह घटना काफी समय से चली आ रही है लेकिन अब इसमें हो रहे बदलाव का धरती के ऊपर बड़ा असर हो सकता है।

कमजोर हुई Magnetic Field

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दरअसल, मैग्नेटिक फील्ड धरती पर सूरज से आने वाले चार्ज्ड पार्टिकल्स (charged particles) को ब्लॉक करती है लेकिन दक्षिण अटलांटिक में इस चुंबककीय क्षेत्र में एक डेंट पड़ गया है जिसके वजह से यह सुरक्षा-कवच कमजोर हो गया है। इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र के ऊपर से गुजरने वाले सैटलाइट्स को ज्यादा रेडिएशन का सामना करना पड़ता है। कई बार इसकी वजह से उपकरणओं में शॉर्ट-सर्किट हो जाता है।। इसकी वजह से उनमें तकनीकी खराबी हो जाती है और कई बार वे पूरी तरह काम करना बंद कर देते हैं। यह भी पता लगा है कि ये डेंट एक जगह पर रुका नहीं है बल्कि पश्चिम की ओर बढ़ रहा है और दो हिस्सों में बंट रहा है।

ऐसे सुरक्षा-कवच बनाती है मैग्नेटिक फील्ड

धरती की सबसे अंदर की परत Core में करीब 1800 मील अंदर मौजूद धातु (metal) पिघलता है और फिर केंद्र से निकलकर यह ripples में बाहर की ओर जाता है। इसकी वजह से मैग्नेटिक फील्ड पैदा होती है। यह मूवमेंट बाहरी परतों पर हो रही हलचल के अलावा कई कारणों पर निर्भर करता है। ये फील्ड सूरज से आने वाले प्लाज्मा और पार्टिकल्स को धरती तक नहीं पहुंचने देती है और धरती के magnetosphere से ही वापस भेज देती है। मैग्नेटिक फील्ड के कमजोर होने से सोलर विंड (Solar Wind) का खतरा ज्यादा हो जाता है। इसके अलावा सूरज से आने वाले गरम प्लाज्मा और रेडिएशन- coronal mass ejections की इस क्षेत्र में दाखिल होने की संभावना भी बढ़ जाती है।

स्टडी करने में जुटे वैज्ञानिक

अभी NASA को जो जानकारी मिलेगी इसकी मदद से न सिर्फ सैटलाइट्स को किसी खतरे या परेशानी के लिए आगाह किया जा सकता है बल्कि धरती के अंदर क्या चल रहा है, इसे भी समझा जा सकता है। मैरीलैंड मे NASA के Goddard Space Flight Center के जियोफिजिसिस्ट टेरी सबाका के मुताबिक, 'SAA धीरे-धीरे मूव कर रही है लेकिन इसमें कुछ बदलाव हो रहा है। इसलिए जरूरी है कि इस पर नजर रखी जाए। इसके आधार पर ही मॉडल और अनुमान किए जा सकते हैं।' साल 1992 से 2012 के बीच काम कर रहे NASA के Solar Anomalous, and Magnetosphere Particle Explorer (SAMPEX) मिशन से मिले डेटा के आधार पर ऐसी सैटलाइट्स डिजाइन करने की कोशिश की जा रही है जो मैग्नेटिक फील्ड के अभाव वाले क्षेत्र से गुजरने पर भी खराबी की शिकार न हों। यूरोपियन स्पेस एजेंसी का Swarm मिशन धरती की मैग्नेटिक फील्ड को ऑब्जर्व करता है। अलग-अलग स्रोतों से मिले डेटा के आधार पर यह खोजा जाता है कि कितनी तेजी से ये बदलाव हो रहे हैं।

ISS जैसे स्पेसक्राफ्ट्स को खतरा

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यहां से गुजरने वाले स्पेसक्राफ्ट में से एक इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन भी है लेकिन इसमें एक अतिरिक्त सुरक्षा कवच होता है क्योंकि इसके अंदर ऐस्ट्रोनॉट्स भी रहते हैं। हालांकि, इसके बाहरी ओर लगे उपकरणों को इस क्षेत्र में खतरा भी हो सकता है। इसकी वजह से ISS के बाहर लगे ग्लोबल ईकोसिस्टम डायनैमिक्स इन्वेस्टिगेशन मिशन (GEDI) के पावर बोर्ड्स हर महीने रीसेट हो जाते हैं। इससे महत्वपूर्ण डेटा गायब हो जाता है। ICON (आयोनोस्फीरिक कनेक्शन एक्सप्लोरर) जैसे दूसरे स्पेसक्राफ्ट NASA के पास इससे जुड़े जानकारी भेजते हैं कि यहां कैसे बदलाव हो रहा है। ICON को पिछले साल ही लॉन्च किया गया था और इसका काम इस कमजोर मैग्नेटिक फील्ड को मॉनिटर करना है।

न्यूज़ सोर्स:NBT

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