COVID-19

इस केस ने बढ़ाई चिंता: कोरोना वायरस का आया ऐसा मामला की पूरी दुनिया चिंता में...ये है वजह

Janta se Rishta
25 Aug 2020 7:02 AM GMT
इस केस ने बढ़ाई चिंता: कोरोना वायरस का आया ऐसा मामला की पूरी दुनिया चिंता में...ये है वजह
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कोरोना वायरस के नए मामलों पर डॉक्टरों और शोधकर्ताओं की पूरी नजर है. हॉन्ग कॉन्ग के ताजे मामले ने एक बार फिर सारी दुनिया को चिंता में डाल दिया है. अप्रैल के महीने में कोरोना से ठीक हो चुका एक व्यक्ति फिर से संक्रमित पाया गया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि कई महीनों के बाद फिर से संक्रमित होने का ये पहला मामला सामने आया है.

33 साल के इस व्यक्ति को एयरपोर्ट स्क्रीनिंग से पता चला कि वो फिर संक्रमित हो गया है. ये व्यक्ति यूरोप से हॉन्ग कॉन्ग आया था. हॉन्ग कॉन्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीनोमिक सीक्वेंस के जरिए पता लगाया कि ये व्यक्ति दो अलग-अलग स्ट्रेन से संक्रमित हुआ है. शोधकर्ताओं ने बताया कि अपने दूसरे संक्रमण के दौरान इस व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं देखे गए, जिससे पता चलता है कि दूसरी बार का संक्रमण बहुत हल्का हो सकता है.

ये स्टडी क्लिनिकल इंफेक्शियस डिजीज नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है. स्टडी के मुख्य लेखक क्वोक-युंग यूएन और उनके सहयोगियों ने कहा, 'हमारे नतीजों में पता चला कि SARS-CoV-2 इंसानों में बना रह सकता है. शोधकर्ताओं ने कहा, 'भले ही मरीजों ने संक्रमण के खिलाफ इम्यूनिटी विकसित कर ली हो, फिर भी वो कोरोना वायरस को दूसरों में फैला सकते हैं.'

जबकि कुछ मरीज लक्षण खत्म होने के बावजूद कई हफ्तों तक वायरस से संक्रमित रहते हैं. शोधकर्ता अबतक इस बात को नहीं समझ पाए हैं कि क्या इस तरह के मामलों में पुराना संक्रमण फिर से हो रहा है, नया संक्रमण हो रहा है या फिर संक्रमण का पता देरी से चल रहा है. शोधकर्ताओं ने कहा, 'Covid-19 से ठीक होने के बाद दोबारा कोरोना होने वाले व्यक्ति का ये दुनिया का पहला डॉक्यूमेंट हैं.'

विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी प्रमुख मारिया वान केरखोव ने बताया कि दुनिया भर में कोरोना वायरस के लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं. केरखोव का कहना है कि जिन मरीजों में हल्का भी लक्षण है, उनमें संक्रमण के खिलाफ इम्यून रिस्पॉन्स आ जाता है लेकिन ये अबतक पता नहीं चल सका है कि ये इम्यून रिस्पॉन्स कितना मजबूत है और कितनी दिनों तक शरीर में रहता है.

वान केरखोव ने कहा, 'ये जरूरी है कि हॉन्ग कॉन्ग जैसे मामलों पर नजर रखी जाए लेकिन किसी भी नतीजे पर पहुंचना जल्दबाजी होगी.' उन्होंने कहा कि स्टडीज के दौरान इस तरह के मामलों को समझने की कोशिश की जाती है कि मरीज में किस तरह का संक्रमण हुआ है और ठीक हुए मरीज की न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी कैसी है.

स्टडी के शोधकर्ताओं ने कहा, 'इस रिपोर्ट से पहले, कई लोग मानते थे कि Covid-19 के मरीजों में इम्यूनिटी विकसित हो जाती है और वो फिर से संक्रमित नहीं हो सकते हैं. ताजा मामला इस बात का सबूत है कि कुछ लोगों में एंटीबॉडी स्तर कुछ महीनों के बाद कम हो जाता है.'

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन और ट्रॉपिकल साइंस के प्रोफेसर ब्रेंडन रेन कहते हैं कि यह दोबारा संक्रमण का बेहद दुर्लभ मामला है. वह कहते हैं कि इसकी वजह से कोविड-19 की वैक्सीन बेहद जरूरी हो जाती है और ऐसी आशंका है कि वायरस समय के साथ खुद को बदलेगा. जो लोग कोरोना वायरस से संक्रमित होते हैं, उनके शरीर में वायरस से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम विकसित हो जाता है जो वायरस को दोबारा लौटने से रोकता है.

सबसे मजबूत इम्यून उन लोगों का पाया जाता है जो गंभीर रूप से कोविड-19 से बीमार हुए हों. हालांकि, यह अभी भी साफ नहीं है कि यह सुरक्षा कितनी लंबी है और इम्युनिटी कब तक रह सकती है.

भारत में भी लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा है कि एक बार संक्रमित होने के बाद कोरोना का खतरा कितना बना रहता है. पीजीआई में इंटरनल मेडिसिन विभाग से जुड़े प्रोफेसर आशीष भल्ला का कहना है कि एक नए वायरस स्ट्रेन की मौजूदगी रिकवर्ड मरीज को दोबारा संक्रमित कर सकती है. प्रो भल्ला ने कहा, "देखें दो अलग-अलग चीजें हैं- संक्रमण और बीमारी. संक्रमण तब हो सकता है जब वायरस शरीर के अंदर पहुंचता है. बीमारी तभी होती है जब ये वायरस मल्टीप्लाई करना शुरू कर देता है और आपके इम्युन रिस्पॉन्स पर काबू पा लेता है." प्रो भल्ला ने कहा, "वायरस शरीर में तब भी मौजूद हो सकता है जब मरीज का इम्यून सिस्टम एंटीजन पर भारी पड़ता है. आपकी नाक की गुहा (नेजल कैविटी) में वायरस की महज मौजूदगी असल में बीमारी की पहचान नहीं हो सकती अन्यथा कि व्यक्ति में लक्षण साबित न हो जाएं."

प्रो भल्ला कहते हैं, "यह वायरस बहुत तेजी से म्युटेट (उत्परिवर्तन) करता है. अगर वायरस ने म्युटेट कर दिया है और एक नया स्ट्रेन विकसित हो गया है, तो आपको फिर से संक्रमण हो सकता है. यह दक्षिण कोरिया और चीन में भी देखा जा रहा है. लेकिन उनमें से कितने लोग गंभीर बीमारी की ओर जाते हैं, यह अभी भी बहुत स्पष्ट नहीं है, क्योंकि ये संख्या बहुत कम है."

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