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गन्ना किसानों की खुशहाली और चीनी उद्योग में... तालमेल बिठाना मुश्किल...

Janta se Rishta
21 Aug 2020 4:15 PM GMT
गन्ना किसानों की खुशहाली और चीनी उद्योग में... तालमेल बिठाना मुश्किल...
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नई दिल्ली। गन्ना किसानों की खुशहाली और चीनी उद्योग के विकास के बीच तालमेल बिठाना मुश्किल साबित होता जा रहा है। एक तरफ जहां केंद्र सरकार ने दो दिन पहले ही गन्ना की कीमत में बढ़ोत्तरी की है, वहीं नीति आयोग का कहना है कि गन्ने की कीमत चीनी की कीमत पर तय होना चाहिए। जो आज की स्थिति में किसानों को रास नहीं आएगा। पर नीति आयोग का मानना है कि इस सेक्टर को उबारने के लिए कुछ कड़वे फैसले की दरकार है। इसमें विलंब होने का दीर्घकालिक प्रभाव गन्ना किसानों को भी उठाना पड़ सकता है। नीति आयोग की गन्ना और चीनी उद्योग पर गठित टास्क फोर्स की रिपोर्ट में विस्तार से खामियां गिनाने के साथ कुछ कड़े कदम उठाने की सिफारिश की गई है। रिपोर्ट में चीनी के मूल्य से गन्ने का तय करने की बात कही गई है। चीनी उद्योग की दशा सुधारने को लेकर कई कमेटियां और टास्क फोर्स गठित हुए, उनकी रिपोर्ट आईं और ठंडे बस्ते में चली गईं। दूसरी ओर, वैश्विक चीनी बाजार समय के साथ डूबता-उतराता रहा और घरेलू उद्योग उससे अनजान बना रहा। नीतियों में विरोधाभास से उद्योग का बहुत नुकसान हुआ। केंद्र की ओर से गन्ने का वैधानिक न्यूनतम मूल्य घोषित होता रहा, जिसे कुछ राज्यों ने स्वीकार किया। लेकिन ज्यादातर राज्यों ने ठेंगा दिखाकर अपना मूल्य घोषित किया, जो तर्कसंगत नहीं रहा। लिहाजा घरेलू जिंस बाजार से लेकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में हमारी चीनी की कोई पूछ नहीं रही। इन सारी खामियों को दूर करने की सख्त जरूरत है। पिछले एक दशक में गन्ना और चीनी मूल्य की वृद्धि दर में बहुत अंतर आया है। जिंस बाजार के इस समीकरण को साधने में घरेलू उद्योग विफल रहा। लेकिन चीनी उद्योग खुद को बदलने में नाकाम रहा, जिसका खामियाजा भी वह उठा रहा है। पूर्व कृषि व खाद्य मंत्री शरद पवार ने एक समारोह में चीनी उद्योग को खरी खोटी सुनाते हुए कहा था 'आधी मुट्ठी बंद और आधी खुली नहीं रखी जा सकती।' पवार ने यह बात उद्योग जगत की नीतियों में कछ बदलाव की मांग पर तल्ख टिप्पणी की थी। नीति आयोग ने चीनी उद्योग पर हाल ही में एक समग्र रिपोर्ट जारी की है। टास्क फोर्स की इस रिपोर्ट में कई कड़वी-कड़वी सिफारिशें भी उद्योग के साथ गन्ना किसानों के लिए भी हैं। सरकार ने अगर इन सिफारिशों को लागू करने की मंशा जाहिर की तो एक अक्तूबर से शुरु होने वाले आगामी पेराई सीजन 2020-21 अथवा 2021-2022 में राजस्व वितरण फार्मूले (रेवन्यू शेयरिंग फार्मूला) की शुरुआत की जा सकती है। चीनी उद्योग इसे हाथोंहाथ लेगा तो गन्ना किसान इसका विरोध कर सकते हैं। दरअसल यह फार्मूला वर्ष 2012 में रंगराजन कमेटी की रिपोर्ट में भी शामिल था। गन्ना मूल्य के भुगतान की अवधि को बढ़ाने की भी रिपोर्ट में सिफारिश की गई है।नीति आयोग की रिपोर्ट में चीनी के बफर स्टॉक बनाए जाने की सख्त खिलाफत की है। जबकि हर संकट में चीनी उद्योग की पहली मांग बफर स्टॉक के गठन की रहती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जब न्यूनतम बिक्री मूल्य (एमएसपी) निर्धारित कर दी गई तो फिर इसकी क्या जरूरत है। समूचे चीनी उद्योग के चरणबद्ध तरीके से पुनरोद्धार करना चाहिए।

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