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पोषण के पांच सूत्र रखेगें बच्चे को तंदुरूस्त...स्वस्थ समाज बनाने पोषण व्यवहार के प्रति जागरूकता लाएं

Janta se Rishta
15 Sep 2020 11:04 AM GMT
पोषण के पांच सूत्र रखेगें बच्चे को तंदुरूस्त...स्वस्थ समाज बनाने पोषण व्यवहार के प्रति जागरूकता लाएं
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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए पोषण व्यवहार में परिवर्तन आज एक आवश्यकता बन गई है। जीवन शैली के बदलाव से सामने आई कई बीमारियां हमारे लिए चुनौतियां बन गई हैं। कई देशों में मोटापा खान-पान की व्यवहारगत कमियों की वजह से तेजी से बढ़ रहा है। भोजन में पोषक तत्वों के अभाव ने लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर दिया है। पोषण के प्रति जागरूकता की कमी और समुचित पोषण का अभाव या उपेक्षा हमारे सामने कई प्रकार की बीमारियों के रूप में सामने आता है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव कुपोषण का एक विश्वव्यापी समस्या बनकर उभरना है। कोरोना काल में लोगों को इसका महत्व गहराई से समझ आने लगा है। आहार के प्रति सही व्यवहार और जागरूकता से ही एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।

रिसर्च में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का अधिक प्रभाव पाया गया है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार छत्तीसगढ़ के 5 वर्ष से कम उम्र के 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 15 से 49 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा 2 अक्टूबर 2019 गांधी जयंती के दिन से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत कर गर्भवती महिलाओं और 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए गर्म भोजन की व्यवस्था की गई है, जिससे महिलाओं और बच्चों में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सके। स्वस्थ बच्चा स्वस्थ समाज की आधारशिला होता है। इस आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए समुदाय स्तर पर सभी की सहभागिता और जन-जागरूकता बहुत जरूरी है। एक स्वस्थ जीवन के लिए तैयारी गर्भावस्था के दौरान ही शुरू कर देनी चाहिए। स्वस्थ बच्चे के लिए मां का भी स्वस्थ होना उतना ही जरूरी है। इसमें पोषण के पांच सूत्र- पहले सुनहरे 1000 दिन, पौष्टिक आहार, एनीमिया की रोकथाम, डायरिया का प्रबंधन और स्वच्छता और साफ-सफाई स्वस्थ नए जीवन के लिए महामंत्र साबित हो सकते हैं।

1) पहले सुनहरे 1000 दिन- पहले 1000 दिनों में तेजी से बच्चे का शरीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इनमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म के बाद पहले और दूसरे वर्ष के 365-365 दिन इस प्रकार कुल 1000 दिन शामिल होते हैं। इस दौरान उचित स्वास्थ्य, पर्याप्त पोषण, प्यार भरा व तनाव मुक्त माहौल और सही देखभाल बच्चों का पूरा विकास करने में मदद करते हैं। इस समय मां और बच्चे को सही पोषण और खास देखभाल की जरूरत होती है। इस समय गर्भवती की कम से कम चार ए.एन.सी. जांच होनी चाहिए। गर्भवती और धात्री महिला को कैल्शियम और आयरन की गोलियों का सेवन कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे मां और बच्चे का जीवन सुरक्षित हो सके। परिवार के लिए भी यह जानना और व्यवहार में लाना जरूरी है कि जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध देना बहुत जरूरी है,यह बच्चे में रोगों से लड़ने की शक्ति लाता है। 6 माह से बड़े उम्र के बच्चे को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार दिया जाना चाहिए। इसके साथ बच्चे को सूची अनुसर नियमित टीकाकरण और बच्चे 9 माह होने पर उसे नियमित विटामिन ए की खुराक दी जानी चाहिए।
2) पौष्टिक आहार- 6 महीने के बच्चे और उससे बड़े सभी लोगों को भी पर्याप्त मात्रा में तरह-तरह का पौष्टिक आहार आवश्य लेना चाहिए। पौष्टिक आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे कि अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल लेने चाहिए। हरी सब्जियों में पालक, मेथी, चौलाई और सरसों, पीले फल जैसे आम व पका पपीता खाए जा सकते हैं। यदि मांसाहारी हैं तो, अंडा, मांस और मछली आदि भोजन में लिया जा सकता है। खाने में दूख, दूध से बने पदार्थ और मेवे आदि शामिल करें। अपने खाने में स्थानीय रूप से उत्पादित पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें। आंगनबाड़ी से मिलने वाला पोषाहार अवश्य खाएं। यह निश्चित मात्रा में पौष्टिक पदार्थों को मिला कर तैयार किया जाता है।

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