कोरोना संक्रमण : सरकारी अस्पतालों में पर्याप्त संसाधन नहीं, वेंटिलेटर की कमी

> निजी अस्पतालों से मरीज के सही सलामत वापसी की उम्मीद नहीं
शांतनु रॉय
रायपुर। कोरोना अब छत्तीसगढ़ में प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन चुका हैं। जहां एक ओर सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी हैं, वहीं निजी अस्पतालों में मनमाने लूट-खसोट के चलते लोग परेशान हैं। कोविड सेंटर में पर्याप्त सुविधा नहीं होने के कारण ज्यादातर लोग एम्स और मेकाहारा जा रहे हैं। जो अस्पताल व स्वास्थ्य विभाग के लिए कठिनाई पैदा कर रही हैं। कोविड सेंटरों में लोग अव्यवस्था व प्रशासन की खामियों के कारण या तो जाना नहीं चाहते या पहुंच नहीं पाते। संक्रमितों की संख्या बढऩे के साथ ही गंभीर और स्वास्थ्य की दिक्कतों वाले मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिससे ऑक्सीजऩ सिलेंडर व वेंटिलेटर की आवश्यकता भी बढ़ रही हैं। मुख्य स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी मीरा बघेल के अनुसार अस्पतालों में ऑक्सीजऩ सिलेंडर की कमी नहीं हैं। लेकिन वेंटिलेटर पर्याप्त संख्या में नहीं हैं। बघेल ने स्वीकार किया कि निजी अस्पतालों में मनमाने चार्ज के चलते वहां भर्ती मरीज़ भी एम्स और मेकाहारा की मांग करते हैं। लेकिन इन अस्पतालों में क्षमता से मरीज़ होने की वजह से इनकी मांग पूरी नहीं की जा सकती। उन्होंने बताया कि अंबेडकर अस्पताल के आईसीयू में 40 वेंटिलेटर है जिनमें कई मरीज़ों की स्तिथि बहार आने की नहीं हैं। उसके कारण दूसरे मरीज़ों को वेंटिलेटर सपोर्ट नहीं मिल पा रहा हैं। स्वास्थ्य मंत्री ने लालपुर कोविड सेंटर में 30 वेंटिलेटर की अनुमति भी दी हैं।
डॉक्टर दे रहे मरीज़ों को वेंटिलेटर : डॉक्टर अपने अस्पतालों में गंभीर मरीज़ों को वेंटिलेटर में रखवा देते हैं। मगर एक बार मरीज़ वेंटिलेटर के सपोर्ट में आता हैं फिर 2 महीने तक बाहर नहीं आ पता हैं जिससे दूसरे मरीज़ों को वेंटिलेटर की सुविधा देने में मुश्किल होने लगती हैं। स्वास्थ्यकर्मी कोरोना मरीजों के उपचार के लिए जहां ज्यादा से ज्यादा वेंटिलेटर की मांग कर रहे हैं, वहीं कुछ डॉक्टर इस जीवन रक्षक मशीन के इस्तेमाल करने से दूर भाग रहे हैं। आम लोगों को भी वेंटिलेटर का मतलब पता होता है और डॉक्टर इसे क्यों लगाते है इसका कारण भी लोगों को बखूबी से पता हैं। अस्पतालों में वेंटिलेटर पर पड़े कोरोना मरीजों की ज्यादा मौत की सूचना आई है। ऐसे में डॉक्टरों में यह भी चिंता का विषय बन गया हैं कि वेंटिलेटर मरीजों को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहा। महज एक महीने पहले सामने आए कोरोना वायरस के संक्रमण का इलाज कर रहे डॉक्टर अब भी इसके बेहतर उपचार के तरीके सीख रहे हैं। मरीजों की तेजी से हो रही मौत और बुनियादी वस्तुओं की आपूर्ति की कमी के बीच डॉक्टर रीयल टाइम डाटा पर भरोसा कर रहे हैं।
निजी अस्पताल में आ रहे मरीज़ों से हो रही लूट : रायपुर शहर में कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए मरीज़ निजी अस्पतालों के चक्कर काट रहे हैं। जिसका पूरा फायदा निजी अस्पतालों के डॉक्टरों ने उठाया भी है और उठा भी रहे हैं।
अक्सर ऐसा देखा गया है कि मरीज़ के मरने के बाद उसके परिजनों को मृत शव दे दिया जाता हैं। मगर राजातालाब में स्थित निजी अस्पताल में एक कोरोना मरीज़ की मौत हो गई और अस्पताल प्रबंधन ने मृतक के शव को कपड़ों से लपेटकर एक कोने में रख दिया और परिजनों ने जब सवाल किये तो अस्पताल प्रबंधन का जवाब था कि आपका कुछ पेमेंट रुका हुआ है उसको पूरा करिए फिर आपको डेडबॉडी ले जाने दिया जाएगा। इससे साफ़ तौर पर पता चलता है कि निजी अस्पताल के डॉक्टर सिर्फ एक हाथ लेते हैं मगर मरीज़ों की जि़न्दगी के साथ खेल भी खेलते हैं।
निजी अस्पतालों की अनाप-शनाप कमाई : कोरोना काल में जो भी मरीज़ कोरोना संक्रमित हैं वो पहले निजी अस्पतालों में जाते हैं, वहां जब पूरी तरह लूट जाते है उसके बाद सरकारी अस्पताल की ओर दौड़ लगाते है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
निजी अस्पताल के डॉक्टर मरीज़ के परिजन को पूरी तरह से लूट लेते है उसके बाद मरीज़ के शव को परिजनों को सौंप दिया जाता हैं।
मेडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट का खुला
संसदीय सचिव विकास उपाध्याय ने निजी अस्पतालों द्वारा कोविड-19 के मरीज़ों से मनमाने तरीके से पैसे वसूली करने का गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि स्वास्थ्य सेवाएं देना किसी सामान बेचने जैसा नहीं है और ऐसा कर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाले निजी अस्पताल के संचालक मेडिकल क्लीनिक कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट का खुला उलंघन कर रहे हैं। विकास उपाध्याय ने कहा 90 फीसदी पीडि़तों द्वारा लगातार ये शिकायत मिल रही है कि निजी अस्पतालों में कोरोना का डर दिखा कर उनसे मनमाने तरीके से लाखों रुपए वसूली की जा रही है। कई मरीज तो ऐसे भी हैं जो इन निजी अस्पतालों में महज 3 दिन का फीस 6 लाख रुपये तक चुकाए हैं। उन्होंने कहा पूरे देश में लगातार कोविड-19 के मरीजों की इजाफा के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी इसकी बढ़ोतरी हुई है,नतीजन सरकारी अस्पतालों में अब जगह नहीं है कि सभी पीडि़तों को भर्ती किया जा सके तो मजबूरन प्रदेश भर के संक्रमित लोग अच्छे इलाज के आशा में राजधानी रायपुर के निजी अस्पतालों का रुख कर रहे हैं और स्थिति ये है कि अब इन अस्पतालों में कोविड-19 के अलावे अन्य बीमारी से ग्रसित लोग नहीं के बराबर ही हैं। जिसका फायदा ये निजी अस्पतालों के संचालक भरपूर उठा रहे हैं।
