भारत
यशवंत सिन्हा बोले- आठ साल में बिगड़ा लोकतंत्र का ताना-बाना, अब सर्वोच्च पद पर स्वतंत्र व्यक्ति चाहिए
Kajal Dubey
30 Jun 2022 1:03 PM GMT
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विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति पद के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा ने ताजा हालात पर राय रखते हुए देश के सर्वोच्च पद पर स्वतंत्र व्यक्ति की आवश्यकता पर जोर दिया है। अमर उजाला से विशेष बातचीत में यशवंत सिन्हा ने कहा कि देश की संवैधानिक संस्थाएं गांधी जी के तीन बंदर की तरह हो गई हैं। इनकी हालत बुरा न देखने, बुरा न बोलने और बुरा न सुनने जैसी हो गई है। पिछले आठ साल में देश के चेक्स-बैलेंस को ध्वस्त कर दिया गया है। यशवंत सिन्हा ने कहा कि 'रबर स्टांप' राष्ट्रपति लोकतांत्रिक देश के लिए घातक होगा। इसलिए मजबूत उम्मीदवारी के इरादे से वह चुनाव लड़ रहे हैं।
'राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, पं. नेहरू और वाजपेयी का लोकतंत्र कहां है?'
सिन्हा ने कहा कि देश में फैक्ट चेक करने वाले जेल भेजे जा रहे हैं, दंगे में पीडि़तों को कानूनी सहायता दिलवाने वालों के खिलाफ बदले की कार्रवाई हो रही है, महाराष्ट्र में जो हो रहा है, उसे ही देख लीजिए। लोगों के मन में जिस तरह से विष भरा जा रहा है, क्या अब उससे आग लगनी शुरू नहीं हुई है? यशवंत सिन्हा ने कहा कि आम लोगों को ये बात समझ में नहीं आ रही है। उन्होंने कहा राजनेता इसे समझ रहे हैं, बुद्धिजीवी समझ सकते हैं, लेकिन इसे यदि समय रहते नहीं रोका गया तो देश को बड़ा और दीर्घकालिक नुकसान होगा। मेरे विचार में इस तरह का भारतीय लोकतंत्र न तो महात्मा गांधी जी चाहते थे और न ही पंडित नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री अटल वाजपेयी की परिकल्पना में भी नहीं था। उनका उद्धेश्य राष्ट्र का निर्माण और देश की तरक्की थी। वह अपनी मशहूरी और झूठी वाहवाही का मिशन नहीं चलाते थे।
मिल रहा है भरपूर समर्थन
यशवंत सिन्हा ने कहा उन्हें भरपूर समर्थन मिल रहा है। उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की वकालत की और कहा कि भारतीय लोकतंत्र, संवैधानिक संस्थाओं के पुर्नजीवन को प्राथमिकता में रखेंगे। सिन्हा ने प्रधानमंत्री मोदी की मंशा पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि देश में आपातकाल लागू हुआ था। हम सब इस परिस्थिति से लड़े थे। देश में लोकतंत्र बहाल हुआ था। मुझे समझ में नहीं आता कि लोग इसकी आलोचना विदेश में जाकर कर रहे हैं। लेकिन इस समय की अघोषित इमरजेंसी का क्या? जहां अधिनायकवादी ताकतें आपको गिरफ्त में लेती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए सर्वोच्च पद पर स्वतंत्र व्यक्ति के आसीन होने की आवश्यकता है।
'पिछले राष्ट्रपति चुनाव के बाद दलितों और देश को क्या मिला?'
यशवंत सिन्हा कहते हैं, सोचिए पिछले राष्ट्रपति चुनाव के बाद क्या मिला? क्या देश के दलितों को कोई फायदा हुआ? नहीं। बल्कि उनके (दलितों) खिलाफ हिंसक घटनाएं बढ़ गईं। सरकार की नीयत में भी दलितों के प्रति संकीर्णता आ गई। अनुसूचित जाति, जनजाति कल्याण कोष खत्म कर दिया गया। विद्यार्थियों की छात्रवृत्ति में कटौती कर दी गई। लोकतंत्र में मूल्य गिरते गए। यशवंत सिन्हा ने कहा मुझे इन सभी विषयों पर चिंता है और मैं पूरी संवेदना, प्रतिबद्धता के साथ चुनाव लड़ रहा हूं। लोग मेंरे साथ आ रहे हैं। कारवां बढ़ रहा है।
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