अजीम प्रेमजी भारत की एक ऐसी शख्सियत हैं, जिनको लोग एक बिजनेसमैन के तौर पर कम और दानवीर- परोपकारी के तौर पर ज्यादा जानते हैं। बता दें कि भारत की टॉप IT कंपनियों में से एक विप्रो कंपनी के प्रेमजी फाउंडर हैं। विप्रो की नेटवर्थ 3 लाख 46 हजार 537 करोड़ रुपए है। प्रेमजी ने एक छोटी सी कंपनी को लाखों करोड़ की मल्टी नेशनल कॉर्पोरेशन में बदल दिया। आज यानी की 24 जुलाई को अजीम प्रेमजी अपना 78वां जन्मदिन मना रहे हैं। आइए जानते हैं उनके जन्मदिन के मौके पर अजीम प्रेमजी के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में...
जन्म
मुंबई के एक मुस्लिम बिजनेसमैन के घर में 24 जुलाई 1945 को अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ। इनके पिता मो. हाशिम प्रेमजी एक नामी चावल कारोबारी के तौर पर जाने जाते थे। बर्मा जोकि अब म्यांमार का हिस्सा। उनके पिता का वहां पर चावल का बड़ा बिजनेस था। इसी कारण अजीम प्रेमजी के पिता को 'राइस किंग ऑफ बर्मा' कहा जाता था। भारत-पाकिस्तान बंटवारे के दौरान मो. अली जिन्ना ने मो. हाशिम प्रेमजी को पाकिस्तान में रहने का ऑफऱ दिया था। लेकिन उन्होंने इस ऑफऱ को ठुकरा दिया और वह गुजरात में रहने लगे। यहीं पर उन्होंने चावल का कारोबार शुरु कर दिया।
धीरे-धीरे मो. हाशिम भारत के बड़े चावल कारोबारी के तौर पर पहचाने जाने लगे थे। लेकिन साल 1945 में अंग्रेजों की कुछ नीतियों के कारण मो. हाशिम को अपना चावल का कारोबार बंद करना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने वनस्पति घी का बिजनेस शुरू किया। इस कंपनी का नाम 'वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रॉडक्ट्स लिमिडेट ' था। यह कंपनी कपड़े धोने वाला साबुन और वनस्पति तेल बनाती थी। इसी साल यानी की 24 जुलाई 1945 को अजीम प्रेमजी का जन्म हुआ था। तो वहीं 29 दिसंबर 1945 को उनके पिता ने वनस्पति घी कंपनी की स्थापना की थी।
शिक्षा
अजीम प्रेमजी के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होने के कारण उन्हें शुरूआती पढ़ाई में कोई दिक्कत नहीं आई। प्रेमजी ने मुंबई के स्कूल से शुरूआती शिक्षा पूरी की। इसके बाद वह इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी चले गए। उस दौरान अजीम की उम्र महज 21 साल थी। लेकिन अजीम प्रेमजी के साथ इसी दौरान कुछ ऐसा होने वाला था, जिससे उनकी जिंदगी पूरी तरह से बदलने वाली थी।
परीक्षा की घड़ी
साल 1966 में अजीम प्रेमजी को अमेरिका के स्टैनफोर्ड में पढ़ाई करने के दौरान पता चला कि उनके पिता मो. हाशिम का निधन हो गया। जिसके कारण उन्हें अपनी पढ़ाई को छोड़कर भारत लौटना पड़ा। बता दें कि पिता की मृत्यु के बाद अजीम प्रेमजी के लिए यह समय मुश्किलों से भरा था। कदम-कदम पर उनकी कठिन परीक्षा हो रही थी। लेकिन उन्होंने अपनी साहस और लगन से हर परीक्षा को पास किया। 21 साल की उम्र में उन्होंने कंपनी की बागडोर अपने हाथ में लेने का फैसला लिया। लेकिन इस कंपनी के शेयर होल्डर ने इस बात का विरोध किया। उनका कहना था कि 21 साल का लड़का जिसके पास काम का अनुभव नहीं है, वह कंपनी को संभालने में विफल रहेगा। लेकिन अजीम प्रेमजी ने इस बात को चैलेंज के तौर पर एक्सेप्ट किया और कंपनी की कमान संभाल ली। उन्होंने अपने पिता द्वारा स्थापित की गई कंपनी को आगे बढ़ाया।
विप्रो कंपनी
साल 1977 तक अजीम प्रेमजी ने अपनी कंपनी के कारोबार को फैलाया और इस कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया। साल 1980 के बाद जब एक बड़ी आईटी कंपनी IBM भारत से अपना बिजनेस समेटकर निकली तो अजीम प्रेमजी की पारखी दृष्टि ने इसे पहचान लिया। उन्होंने यह जान लिया कि आने वाले समय में इस क्षेत्र में काफी काम होगा। इसके बाद एक अमेरिकी कंपनी सेंटिनल कंप्यूटर्स के साथ मिलकर Wipro ने माइक्रोकंप्यूटर्स बनाने का काम शुरू कर दिया। अजीम प्रेमजी की कंपनी का सेंटिनल कंप्यूटर्स के साथ टेक्नोलॉजी शेयरिंग का एग्रीमेंट था। वहीं कुछ समय बाद Wipro कंपनी ने हार्डवेयर को सपोर्ट करने वाले सॉफ्टवेयर बनाने का काम शुरू कर दिया।
ये किस्सा है दिलचस्प
बताया जाता है कि अपने ऑफिस परिसर में अजीम प्रेमजी जहां कार पार्क किया करते थे। वहां पर किसी दिन एक कर्मचारी ने कार पार्क कर दी। जब कंपनी के बड़े अधिकारियों को यह जानकारी मिली तो उन्होंने उस पार्किंग की जगह को अजीम प्रेमजी की कार पार्क करने की जगह घोषित कर दी। लेकिन जब अजीम प्रेमजी को इस बात का पता चला तो उन्होंने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि उस जगह पर कोई भी अपनी कार पार्क कर सकता है। साथ ही अगर उन्हें इस जगह पर कार पार्क करनी है, तो अजीम प्रेमजी को दूसरों से पहले ऑफिस पहुंचना चाहिए।
दानवीर कर्ण
आप सभी दानवीर कर्ण के बारे में जानते हैं। कर्ण महाभारत के वह महावीर योद्धा थे, जिनके पास से कभी कोई खाली हाथ नहीं लौटा था। वैसे ही असीम प्रेमजी ने अपनी कमाई का एक मोटा हिस्सा परोपकारी कार्यों में लगाते हैं। अजीम प्रेमजी के हिस्से के 60 से ज्यादा शेयर उनके नाम से चल रहे फाउंडेशन के नाम कर चुके हैं। अजीम प्रेम जी के नाम से चल रही यह संस्था कई राज्यों में स्कूली शिक्षा से लेकर कई अन्य कार्यों में सहयोग देती है। आपको जानकर हैरानी होगी अजीम प्रेमजी ने साल 2019-20 में परोपकार के लिए रोजाना करीब 22 करोड़ रुपए यानी की कुल 7,904 करोड़ दान किए थे।