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नई दिल्ली | भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के पूर्व कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर को उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। मंसूर, उत्तर प्रदेश से भाजपा की राष्ट्रीय टीम के तीन डॉक्टरों में से एक हैं। तीन महीने के भीतर प्रोफेसर मंसूर को 'दोहरी पदोन्नति' दी गई है। माना जा रहा है कि पसमांदा समुदायों के बीच अपनी चल रही पहुंच को मजबूत करने के प्रयास में बीजेपी ने तारिक मंसूर को पदोन्नति दी है, ताकि मुस्लिम समुदाय के बीच उन्हें भेजकर पार्टी की बात उनतक सशक्त रूप से पहुंचाई जा सके। इससे पहले बीजेपी ने उन्हें यूपी विधान परिषद का सदस्य बनाया था।
बीजेपी नेताओं का कहना है कि पार्टी विवादास्पद समान नागरिक संहिता (यूसीसी) पर आम सहमति बनाने के लिए चर्चाओं की एक श्रृंखला की शुरुआत करने की भी तैयारी कर रही है, जिसमें मंसूर एक बड़ी कड़ी साबित हो सकते हैं। पार्टी की योजना है कि प्रोफेसर मंसूर समुदाय के लोगों को समझाने में कारगर साबित हो सकते हैं। बीजेपी ने नए अध्यक्षों की लिस्ट यूसीसी पर सुझाव प्रस्तुत करने के लिए विधि आयोग की विस्तारित समय सीमा शुक्रवार को समाप्त होने के ठीक एक दिन बाद जारी की है। अधिकारियों के मुताबिक, आयोग को यूसीसी पर लगभग 75 लाख सुझाव मिले हैं। यूसीसी के अलावा बीजेपी का जोर पसमांदा समाज पर भी रहा है। पार्टी के मुताबिक पसमांदा स्नेह यात्रा (जिसे हाल ही में स्थगित करना पड़ा था) को फिर से, निकाला जा सकता है। यह यात्रा उत्तर प्रदेश के लगभग 20 मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों को छूएगी।
तारिक मंसूर ने NRC और CAA के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का केंद्र रहे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 'मध्यम मार्ग' पर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और बाद में आरएसएस के साथ मिलकर मुगल राजकुमार दारा शिकोह की शिक्षाओं को बढ़ावा देने के उसके प्रोजेक्ट पर काम किया था। दारा शिकोह की शिक्षा शांतिपूर्ण हिंदू-मुस्लिम सहअस्तित्व पर आधारित थी जो उनके भाई मुगल बादशाह औरंगजेब के काम करने के तरीके के बिल्कुल विपरीत था। मंसूर की यह नियुक्ति उस दिन हुई जब गृह मंत्री अमित शाह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर एक किताब का विमोचन करने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम में थे, जो पार्टी की पसमांदा तक पहुंच बढ़ाने वाले प्रतीकों में से एक है। पार्टी के एक नेता ने कहा, "ऐसा विचार है कि एक शिक्षित मुस्लिम होने के नाते, प्रोफेसर मंसूर समुदाय से जुड़ने, यूसीसी जैसे संवेदनशील विषयों को समझाने और अल्पसंख्यकों की परवाह न करने वाली भाजपा के मिथक को ध्वस्त करने में मददगार हो सकते हैं।"
भाजपा नेताओं का कहना है कि मंसूर के माध्यम से पार्टी ने प्रभावशाली अल्पसंख्यक वोट बैंक को लुभाने के लिए शिक्षित मुसलमानों, विशेष रूप से पसमांदा (पिछड़े वर्ग के मुसलमानों) के साथ जुड़ाव बढ़ाने की योजना बनाई है। प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में, भाजपा अल्पसंख्यकों के बीच "मोदी मित्र (पीएम मोदी के मित्र)" भी बना रही है। मंसूर को पार्टी की राष्ट्रीय टीम में शामिल किए जाने से इस कदम को गति मिलेगी। एक बीजेपी नेता ने कहा, "सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि शिक्षित समुदाय के सदस्यों के माध्यम से चुनिंदा खुलासे करके भाजपा के खिलाफ जनता को उकसाने के विपक्षी प्रयास को विफल करने में भी मदद मिल सकती है।"
जून 2022 के लोकसभा उपचुनावों में मुस्लिम बहुल आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा क्षेत्रों में जीत हासिल करने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदलते हुए पसमांदा मुस्लिमों तक पहुंच बनाने की योजना पर जोरदार तरीके से काम करना शुरू किया। 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भाजपा पसमांदा मुसलमानों को प्रमुख पदों पर नियुक्त कर रही है। इसी कड़ी में पसमांदा समाज से आने वाले दानिश आज़ाद अंसारी को अल्पसंख्यक कल्याण और वक्फ विभाग का राज्य मंत्री बनाया गया, जो योगी 2.0 मंत्रालय में एकमात्र मुस्लिम चेहरा हैं। अन्य प्रमुख पदों पर भी पसमांदा मुसलमानों को नियुक्त किया गया है। मसलन, अशफाक सैफी यूपी अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष बनाए गए तो इफ्तिखार जावेद को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन का चेयरमैन बनाया गया। इतना ही नहीं, इस साल मई में हुए उत्तर प्रदेश शहरी स्थानीय निकाय चुनावों में भाजपा ने कई मुसलमानों को मैदान में उतारा, जिनमें ज्यादातर पसमांदा थे। उनमें से लगभग 100 राज्य के विभिन्न वार्डों से जीते।
जून में, भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सुनील बंसल ने पश्चिम यूपी का दौरा किया था और कहा था कि पसमांदाओं को भाजपा से जोड़ने के लिए एक विशेष अभियान चलाया जाएगा। भाजपा नेताओं ने कहा कि 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले, पसमांदा आउटरीच का उद्देश्य मुस्लिम वोटों को विपक्षी गठबंधन के पीछे एकजुट होने से रोकना भी है।
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Harrison
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