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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की फिर हो सकती है पीएम मोदी से मुलाकात

jantaserishta.com
22 Nov 2021 4:56 AM GMT
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की फिर हो सकती है पीएम मोदी से मुलाकात
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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के "समिट फॉर डेमोक्रेसी" में हिस्सा लेने के उम्मीद है. अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि सरकार को 9-10 दिसंबर के बीच वर्चुअली इस सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण मिला है. शिखर सम्मेलन में व्हाइट हाउस की घोषणा के अनुसार, पीएम मोदी की भागीदारी आमंत्रित 100 से अधिक देशों के नेताओं के साथ हो सकती है.

समिट में देश और विदेश में लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए व्यक्तिगत और सामूहिक प्रतिबद्धताओं को शामिल करने की उम्मीद है. बाइडेन ने अपने चुनावी अभियान के दौरान शिखर सम्मेलन का वादा किया था. वो यह भी चाहते हैं कि शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले देश अमेरिका के मुख्य प्रतिद्वंदी चीन और रूस को एक संदेश भेजे. इस समिट में रूस और चीन शामिल नहीं होंगे. हालांकि दोनों ही कम्यूनिस्ट देश खुद को लोकतंत्र के रूप में संदर्भित करते हैं.
ये शिखर सम्मेलन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ पीएम मोदी के वार्षिक शिखर सम्मेलन और 6 दिसंबर को भारतीय और रूसी विदेश और रक्षा मंत्रियों की 2 + 2 बैठक के बाद होगा. इस दौरान दोनों देशों के बीच कई समझौतों के होने की उम्मीद है, जिसमें रक्षा के क्षेत्र में भी समझौतों की उम्मीद जताई जा रही है. रूस लोकतंत्र शिखर सम्मेलन की तीखी आलोचना करता रहा है. रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने आमंत्रित लोगों से "अधिकतम वफादारी" हासिल करने के लिए दुनिया को विभाजित करने का प्रयास कहा.
यू.एस. मीडिया में रिपोर्ट किए गए आमंत्रित देशों की लिस्ट के मुताबिक कुल 108 देशों के नेताओं को इस सम्मेलन के लिए निमंत्रण दिया गया है, जिसमें दक्षिण और मध्य एशियाई (एससीए) क्षेत्र के 4 देश भारत, मालदीव, नेपाल और पाकिस्ता शामिल हैं. यह स्पष्ट नहीं है कि श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान जैसे क्षेत्र के अन्य लोकतंत्रों को भी आमंत्रित किया जा रहा है या नहीं. अफगानिस्तान और म्यांमार, इस क्षेत्र के वो दो देश हैं, जहां लोकतांत्रिक सरकारों को इस साल जबरन उखाड़ फेंका गया था. चर्चा के मुख्य बिंदु के रूप में शामिल किया जा सकता है. व्हाइट हाउस ने तीन प्रमुख विषयों का जिक्र किया है जिसमें 'अधिनायकवाद के खिलाफ बचाव', 'भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग', 'मानवाधिकारों के लिए सम्मान बढ़ाना' शामिल है.
भारत ने पारंपरिक रूप से लोकतंत्र और मानवाधिकारों के मुद्दों को देश के लिए एक "आंतरिक मामला" माना है. पिछले कुछ सालों में विदेश मंत्रालय ने जम्मू कश्मीर में, और कृषि बिलों और नागरिकता संशोधन अधिनियम पर विरोध प्रदर्शन जैसे मुद्दों पर प्रस्ताव पारित करने के लिए अमेरिका, यूरोपीय संघ और यूके विधायिका के प्रयासों को खारिज कर दिया है. इसके विपरीत, मोदी सरकार ने अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए मालदीव, नेपाल, श्रीलंका में लोकतंत्र और पूर्ण प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने के बारे में भी काफी दृढ़ता से बात की है.


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