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सुप्रीम कोर्ट वैवाहिक बलात्कार की घोषणा करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा

Sonam
19 July 2023 11:03 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट वैवाहिक बलात्कार की घोषणा करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा
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वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम घोषित करने से संबंधित याचिकाओं पर जल्द ही उच्चतम न्यायालय में सुनवाई होगी. शीर्ष न्यायालय ने बुधवार को बोला कि संवैधानिक पीठों द्वारा कुछ सूचीबद्ध याचिकाओं पर सुनवाई पूरी करने के बाद तीन न्यायाधीशों की पीठ वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम घोषित करने से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंग ने सुनवाई के लिए मुद्दे का उल्लेख किया जिसके बाद मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, हमें वैवाहिक दुष्कर्म से संबंधित मामलों को हल करना होगा. वरिष्ठ वकील ने कहा, मेरा मामला बाल यौन उत्पीड़न मुद्दे से संबंधित है. इसपर सीजेआई ने बोला कि इन मामलों की सुनवाई तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जानी है और पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा कुछ सूचीबद्ध मामलों की सुनवाई खत्म करने के बाद इन्हें सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा.

वर्तमान में सीजेआई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ मोटर गाड़ी अधिनियम के अनुसार विभिन्न प्रकार के वाहनों के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के नियमों से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. साथ ही पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा प्रदान करने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को खारिज करने से संबंधित याचिकाएं भी सुनवाई के लिए निर्धारित हैं.

शीर्ष न्यायालय ने 22 मार्च को वैवाहिक बलात्कार से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नौ मई की तारीख तय की थी. इससे पहले, शीर्ष न्यायालय ने 16 जनवरी को वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम घोषित करने और आईपीसी प्रावधान से संबंधित याचिकाओं पर केंद्र से उत्तर मांगा था, जो पत्नी के वयस्क होने पर जबरन यौन संबंध के लिए अभियोजन के विरूद्ध पति को सुरक्षा प्रदान करता है.

केंद्र गवर्नमेंट की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बोला था कि इस मामले के कानूनी के साथ-साथ सामाजिक निहितार्थ भी हैं और गवर्नमेंट याचिकाओं पर अपना उत्तर दाखिल करना चाहेगी. इस मामले पर 11 मई, 2022 के दिल्ली हाई कोर्ट के खंडित निर्णय के संबंध में एक याचिका पंजीकृत की गई है. यह अपील दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष याचिकाकर्ताओं में से एक स्त्री द्वारा पंजीकृत की गई है. हालांकि हाईकोर्ट के दो न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति राजीव शकधर और न्यायमूर्ति सी हरि शंकर ने सर्वोच्च कोर्ट में अपील करने की अनुमति का प्रमाण पत्र देने पर सहमति व्यक्त की थी क्योंकि इस मुद्दे में कानून के जरूरी प्रश्न शामिल थे, जिसके लिए शीर्ष न्यायालय से फैसला की जरूरत थी.

जबकि खंडपीठ का नेतृत्व करने वाले न्यायमूर्ति शकधर ने असंवैधानिक होने के कारण वैवाहिक बलात्कार अपवाद को समाप्त करने का समर्थन किया था और बोला कि यह दुखद होगा यदि आईपीसी के लागू होने के 162 वर्ष बाद भी एक विवाहित स्त्री की न्याय की गुहार नहीं सुनी गई. न्यायमूर्ति शंकर ने बोला कि बलात्कार कानून के अनुसार अपवाद असंवैधानिक नहीं है और एक समझदार अंतर पर आधारित है.

एक अन्य याचिका एक आदमी ने कर्नाटक हाई कोर्ट के निर्णय के विरूद्ध पंजीकृत की है, जिसने उसकी पत्नी के साथ कथित तौर पर बलात्कार करने के लिए उसके विरूद्ध केस चलाने का रास्ता साफ कर दिया है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने पिछले वर्ष 23 मार्च को बोला था कि पति को अपनी पत्नी के साथ बलात्कार और अप्राकृतिक यौन संबंध के आरोप से छूट देना संविधान के अनुच्छेद 14 (कानून के समक्ष समानता) के विरूद्ध है.

अन्य याचिकाएं आईपीसी प्रावधान के विरूद्ध पंजीकृत की गई जनहित याचिकाएं हैं और उन्होंने आईपीसी की धारा 375 (दुष्कर्म) के अनुसार वैवाहिक बलात्कार अपवाद की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी है कि यह उन विवाहित स्त्रियों के विरूद्ध भेदभाव करता है जिनका उनके पतियों द्वारा यौन उत्पीड़न किया जाता है. आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद के तहत किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं है, यदि पत्नी नाबालिग न हो.

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