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सुप्रीम कोर्ट ने कहा बलात्कार मामलों में अदालत न करें घिसी-पिटी...अदालतों के आदेश में पुरुषवादी सोच या रूढ़िवादी बातें न हो

jantaserishta.com
19 March 2021 4:18 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा बलात्कार मामलों में अदालत न करें घिसी-पिटी...अदालतों के आदेश में पुरुषवादी सोच या रूढ़िवादी बातें न हो
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फाइल फोटो 

छेड़छाड़ के आरोपी को विक्टिम से राखी बंधवाने की शर्त में जमानत देने के मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान देश भर के कोर्ट को सलाह दी है कि वह ऐसे मामले में अपने आदेश में रूढ़िवादी यानी घिसीपिटी ओपिनियन देने से परहेज करें।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों के आदेश में कहीं भी पुरुषवादी सोच या रूढ़िवादी बातें नहीं होनी चाहिए और विक्टिम महिलाओं के ड्रेस, उनके व्यवहार, उनके अतीत और उनके नैतिकता के बारे में ऑर्डर में कुछ भी नहीं लिखा होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने जेंडर संवेदनशीलता (संवेदीकरण) विषय को ट्रेनिंग का पार्ट बनाने को कहा ताकि जजों की मौलिक ट्रेनिंग में जेंडर संवेदनशीलता अनिवार्य तौर पर रहे।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर की अगुवाई वाली बेंच के सामने सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट अपर्णा भट्ट और अन्य 8 महिला वकीलों ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए इस मामले में तमाम निर्देश जारी किए हैं। मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने छेड़छाड़ मामले में आरोपी को जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि वह विक्टिम से राखी बंधवाए। इस फैसले को खिलाफ को सुप्रीम कोर्ट में 9 महिला वकीलों ने चुनौती दी थी और कहा था कि ये फैसला कानून के सिद्धांत के खिलाफ है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से सहयोग करने को कहा था।
राखी बंधवाकर एक छेड़छाड़ के आरोपी को भाई की तरह बदलने का आदेश स्वीकार्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि जमानत की शर्त पर राखी बंधवाने की बात रखना और छेड़छाड़ के आरोपी को भाई के तौर पर बदलने के लिए दिया गया जूडिशल आदेश पूरी तरह से अस्वीकार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस आदेश को स्वीकार नहीं कर सकते। इस तरह की शर्त सेक्शुअल अपराध की गंभीरता को कम करता है। ये नाबालिग द्वारा किया गया पाप नहीं है कि उसे सामाजिक सेवा करवा कर या राखी बांधने का आदेश देकर या गिफ्ट दिलवा कर या शादी का वादा करवा कर या माफी मंगवाकर रास्ता निकाला जाए। सेक्शुअल ऑफेंस कानून के नजर में अपराध है।
आदेश में कहीं भी पुरुषवादी सोच और रूढ़िवादी बातें नहीं होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर ने कहा कि याचिका में हाई कोर्ट और निचली अदालत के जजों को निर्देश देने की गुहार लगाई गई थी वह रेप और छेड़छाड़ जैसे केस में ऐसी शर्त न लगाएं जिससे कि विक्टिम के ट्रॉमा पर विपरीत असर हो। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि जमानत का कोई भी शर्त ऐसा न हो जिससे कि आरोपी और विक्टिम की मुलाकात हो। विक्टिम का प्रोटेक्शन होना चाहिए और ये सुनिश्चित होना चाहिए कि उसका और प्रताड़ना न हो।
'विक्टिम और आरोपी की मुलाकात नहीं होनी चाहिए'
कोर्ट ने कहा कि ये निर्देश होना चाहिए कि आरोपी और विक्टिम आपस में मुलाकात न हो ये सुनिश्चित होना चाहिए। अगर विक्टिम को खतरा हो तो पुलिस से रिपोर्ट मांगी जाए और उस पर विचार के बाद निर्देश जारी किया जाए। जब भी ऐसे केस में जमानत दी जाए तो शिकायती को जमानत के बारे में बताया जाए। जमानत की कंडिशन सीआरपीसी के मुताबिक हो। जब भी जमानत की शर्त तय हो या फिर ऑर्डर हो तो उसमें कहीं भी पुरुषवादी सोच या रूढ़िवादी बातें नहीं होनी चाहिए। जमानत के आदेश में कहीं भी विक्टिम लड़की की नौतिकता, उनके वेशभूषा, उनके पहले की सहमति और व्यवहार के बारे में कोई टिप्पणी नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा, 'जब भी जेंडर से संबंधित अपराध हो तो इस बात का कोर्ट सुझाव न दे या इस बात का बढ़ावा न दे कि विक्टिम और आरोपी को समझौता कर लेना चाहिए या फिर आरोपी को शादी कर लेनी चाहिए। कोई भी ऐसा समझौते की सलाह अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है। जज द्वारा संवेदनशीलता रखना होगा। उन्हें सुनिश्चित करना होगा कि विक्टिम को ट्रॉमा में न डाला जाए।' शीर्ष अदालत ने कहा कि जज को सुनवाई के दौरान न तो ऐसे शब्द बोलने चाहिए और न ही लिखना चाहिए जिससे कि विक्टिम का भरोसा कम हो। ऐसा करने से विक्टिम का कोर्ट के निष्पक्षता पर भरोसा कम होगा।
कोर्ट बोला- फैसले में ओपिनियन व्यक्त करने से बचें
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अदालतों को कोई भी रूढ़िवादी सोच वाले ओपिनियन व्यक्त करने से बचना चाहिए। उन्हें जूडिशल ऑर्डर में ऐसा कुछ भी नहीं लिखना चाहिए जो रूढ़िवादी मत हो, जैसे कि महिलाएं शारीरिक तौर पर कमजोर होती हैं, ऐसे में उन्हें प्रोटेक्शन चाहिए, महिलाएं खुद फैसले लेने में सक्षम नहीं होती हैं, आदमी घर का मुखिया होता है और परिवार का फैसला वही लेता है, संस्कृति के तहत महिलाओं को समझौता करना चाहिए क्योंकि वह ज्यादा अनुशासित होती हैं।
अच्छी महिलाएं वह होती हैं जो सेक्शुअली पवित्र होती हैं, महिलाओं की ड्यूटी है कि उन्हें मातृत्व मिले और वह मां बनना चाहती हैं, महिलाओं पर ही बच्चों की जिम्मेदारी होती है,अगर रात में अकेली हैं या कुछ ड्रेस पहनती हैं तो वह अपने ऊपर हमले के लिए खुद जिम्मेदार हैं, अगर वह शराब पीती हैं या स्मोकिंग करती हैं तो किसी आदमी को बुरे व्यवहार के लिए खुद न्यौता देती हैं और आदमी का व्यवहार जस्टिसफाई हो जाता है।महिलाओं का सेक्शुअली ऐक्टिव होने का साक्ष्य उनके ऊपर संदेह डालता है, अगर शारीरिक विरोध नहीं है इसका मतलब सहमति से है। उक्त तमाम घिसीपटी व रूढ़िवादी बातें ऑर्डर में लिखने से अदालतों को परहेज करना चाहिए।
जजों को जेंडर संवेदनशीलता की ट्रेनिंग हो
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक संवेदनशीलता के ट्रेनिंग का सवाल है तो जजों, वकील और सरकारी वकीलों के लिए जेंडर संवेदनशीलता को ट्रेनिंग मोड्यूल में अनिवार्य तौर पर रखना होगा। सभी जजों के मौलिक ट्रेनिंग में जेंडर संवेदनशीलता को रखना होगा। इस मॉड्यूल का मकसद होगा कि सेक्शुअल असॉल्ट केस में जज ज्यादा संवेदनशील हों। उनको रोल मॉडल का रोल निभाना है। सेक्शुअल असॉल्ट की विक्टिम के प्रति निष्पक्षता, सेफ्टी और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना दायित्व है।
हम नैशनल जूडिशल अकैडमी को आग्रह है कि वह ट्रेनिंग इनपुट में इसे डालें ताकि जेंडल संवेदनशीलता सुनिश्चित हो सके। बार काउंसिल ऑफ इंडिया को भी निर्देश दिया जाता है कि वह एक्सपर्ट की सलाह लें और लॉ फैकल्टी में इसको लेकर पेपर सर्कुलेट कराएं। साथ ही ऑल इंडिया बार एग्जाम में सेक्शुअल ऑफेंस और जेंडर संवेदनशीलता को अनिवार्य तौर पर सिलेबस में रखें।
जानिए, क्या था पूरा मामला
16 अक्टूबर को हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देते हुए 9 वकीलों ने गुहार लगाई थी कि इस फैसले पर रोक लगाई जाए। सुप्रीम कोर्ट से कहा गया था कि हाई कोर्ट ने जो शर्त लगाई है कि वह कानून के सिद्धांत के खिलाफ है और उस पर रोक होनी चाहिए। 30 जुलाई के आदेश में हाई कोर्ट ने छेड़छाड के आरोपी को जमानत देते हुए शर्त लगाई थी कि वह अपनी पत्नी के साथ शिकायती लड़की के घर जाए और वह विक्टिम से आग्रह करे कि वह राखी बंधवाना चाहता है और वादा करता है कि वह उसकी रक्षा के लिए हमेशा हाजिर रहेगा।
इस फैसले पर रोक लगाने की मांग करते हुए देश भर की महिला वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, उनकी ओर से पेश सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े और वकील अपर्णा भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि इस तरह की शर्त लगाकर विक्टिम के ट्रॉमा को महत्वहीन बनाया जा रहा है। 2 नवंबर 2020 को अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि हाई कोर्ट का आदेश सेक्शुअल ऑफेंस को महत्वहीन बनाने के बराबर है और ये एक ड्रामा की तरह है और कुछ भी नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि इस तरह के आदेश की निंदा की जानी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि समय की मांग है कि जजों के लिए जेंडर संवेदनशीलता को लेकर ट्रेनिंग सेशन का आयोजन होना चाहिए।
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