तनवीर जाफ़री
स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व करते हुये जिस कांग्रेस पार्टी ने भारतवर्ष को अंग्रेज़ों की ग़ुलामी की ज़ंजीरों से मुक्त कराया था,जिस कांग्रेस पार्टी को दुनिया गांधीवादी दर्शन एवं विचारों पर चलने वाली पार्टी के रूप में जानती है,उसी ऐतिहासिक कांग्रेस पार्टी को देश से समाप्त किये जाने का गोया एक अभियान दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों द्वारा दशकों से चलाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो कई बार अपनी चुनावी जन सभाओं में 'कांग्रेस मुक्त' भारत बनाये जाने जैसी बातें करते रहे हैं। निश्चित रूप से 2014 से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी को काफ़ी संकट का सामना भी करना पड़ा है। कांग्रेस को सबसे अधिक नुक़्सान पार्टी में ही छुपे बैठे दर्जनों 'जय चंदों ' और 'मीर जाफ़रों ' से उठाना पड़ा है जो सत्ता की लालच में गांधीवादी विचारधारा वाली पार्टी को छोड़कर धुर विरोधी विचारधारा रखने वाली दक्षिणपंथी पार्टी से जा मिले। तो अनेक नेताओं को सत्ता द्वारा ई डी,इनकम टैक्स या सी बी आई का भय दिखाकर उन्हें अपने पक्ष में कर लिया गया। अनेक बार यह भी देखा गया कि भ्रष्ट या अपराधी क़िस्म का कोई नेता कांग्रेस या दूसरी पार्टी छोड़कर यदि भाजपा में शामिल हुआ तो उसके विरुद्ध होने वाली जांच या कार्रवाइयां रोक दी गयीं। तभी मीडिया के एक वर्ग ने भाजपा को भ्रष्टाचार और अपराध धोने वाली 'वाशिंग मशीन ' का नाम भी दिया था। देश की संसद हो या चुनावी जानसभायें,भाजपा के शीर्ष नेताओं से लेकर राज्यों व ज़िला स्तर के छुटभैय्ये नेताओं तक, सभी एक फ़ैशन की तर्ज़ पर कांग्रेस,गांधी,नेहरू,धर्मनिरपेक्षतावादियों,गांधी-नेहरू विचारधारा के समर्थकों को किसी भी निचले स्तर तक जाकर कोसते रहते हैं। उनपर चारित्रिक हमले तक करते हैं। ये लोग कभी नेहरू को मुसलमान तो कभी फ़िरोज़ गांधी को मुसलमान बताने में अपने 'झूठ तंत्र' की सारी ऊर्जा खपा डालते हैं। और कुछ नहीं तो पिछले दिनों बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद देते हुये देश की संसद में स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने यह तक पूछ लिया कि -'नेहरू अगर महान हैं तो 'नेहरू' सरनेम लगाने में क्या शर्मिन्दिगी है? आश्चर्य है कि देश के प्रधानमंत्री केवल 'चुटकी 'लेने के लिये देश की संसद में इस तरह का वक्तव्य देकर प्रधानमंत्री पद की गरिमा को तार तार करते हैं। जबकि वे ही नहीं पूरा देश भली भांति जानता है कि भारतीय समाज में पिता का नाम सर नेम के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है जो नेहरू परिवार के लोग फ़िरोज़ गांधी की वजह से करते आ रहे हैं। ऐसे में नेहरू सर नेम इस्तेमाल करने की गुंजाईश ही कहाँ रह जाती है। परन्तु यह भी कांग्रेस पर आक्रमण की उनकी अपनी निराली शैली है।
बहरहाल कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की तमाम कोशिशों के बावजूद देश के विभिन्न राज्यों में कांग्रेस सत्ता में भी है और कई राज्यों में सत्ता की भागीदार भी। परन्तु दक्षिणपंथी भी सत्ता शक्ति का पूरा फ़ायदा उठाते हुये कांग्रेस पार्टी व इसके बड़े नेताओं को डराने धमकाने व नीचा दिखाने में लगे हैं। याद कीजिये गत वर्ष यानी अगस्त 2022 में प्रवर्तन निदेशालय यानी ई डी द्वारा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी व राहुल गांधी को ई डी के दफ़्तर में बार बार बुलाकर उन से पूछताछ की गयी थी। इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय यानी ई डी के अधिकारियों ने राहुल गांधी से 5 दिन में क़रीब 54 घंटे और सोनिया गांधी से 3 दिन में 11 घंटों से भी अधिक समय तक पूछताछ की थी। उस दौरान भी कांग्रेस ने इस पूछताछ को ग़ैर ज़रूरी,उनके नेताओं को अपमानित करने वाला तथा राजनीतिक बदला बताया था। इसी तरह गत दिनों छत्तीसगढ़ में कोयला लेवी घोटाले में कार्रवाई के नाम पर प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस पार्टी के राज्य के छः नेताओं के ठिकानों पर छापे मारी की। इन में कई विधायक व संगठन के पदाधिकारी शामिल हैं। छत्तीसगढ़ में छापेमारी की कार्रवाई 24 फ़रवरी को रायपुर में शुरू हुये कांग्रेस अधिवेशन से ठीक चार दिन पूर्व की गयी थी। इस पर भी कांग्रेस ने कहा था कि सरकार द्वारा ये कार्रवाई कांग्रेस अधिवेशन को प्रभावित करने के लिए करायी गयी है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो साफ़ तौर पर यह इल्ज़ाम भी लगाया था कि- 'गत 9 वर्षों में ई डी ने जितनी भी छापेमारी की है उसमें 95% केवल विपक्षी नेता ही निशाने पर रहे हैं और इनमें भी सबसे ज़्यादा कांग्रेस नेताओं के विरुद्ध की गयी है। उस समय छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तो यह भी कहा था कि अडाणी की सच्चाई से पर्दा हटने के बाद और भारत जोड़ो यात्रा की सफलता से हताश होकर भाजपा लोगों का ध्यान भटकाने के लिये ऐसी कोशिशें कर रही है।
कांग्रेस पार्टी व उनके नेताओं के मनोबल तोड़ने का यह घिनौना खेल उस समय भी खेला गया जबकि कांग्रेस के कई बड़े नेताओं व प्रवक्ताओं को दिल्ली से रायपुर जाने वाले एक विमान को दिल्ली विमानतल पर रोका गया और कांग्रेस के तेज़ तर्रार प्रवक्ता पावनखेड़ा को विमान से उतार कर असम पुलिस द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। जिन्हें बाद में सर्वोच्च न्यायलय के निर्देश पर अंतरिम ज़मानत पर रिहा कर दिया गया। भाजपा, विपक्ष विशेषकर कांग्रेस नेताओं को केवल सत्ता का दुरूपयोग कर ही भयभीत नहीं करती बल्कि समय समय पर कांग्रेस के समक्ष 'बेचारगी ' और भावनात्मक कार्ड खेलने से भी नहीं चूकती। यानी स्वयं को कभी 'बाहुबली' साबित करना तो कभी पीड़ित असहाय व बेचारा बताना, सभी 'शस्त्रों' का इस्तेमाल भाजपा करती रहती है। उदाहरण स्वरूप पिछले दिनों मेघालय की राजधानी शिलांग में एक चुनावी सभा के दौरान उन्होंने कांग्रेस पर कुछ इस अंदाज़ में निशाना साधा कि -‘‘मैं देख रहा था कुछ लोग जिनको देश ने नकार दिया है. जिन्हें देश अब स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, जो निराशा के गर्त में डूब चुके हैं, वो आजकल माला जपते हैं और वो कह रहे हैं- मोदी तेरी क़ब्र खुदेगी.’’।
ऐसे में सवाल यह है कि दक्षिणपंथी विचारधारा के लोग कांग्रेस पार्टी से ही इतनी नफ़रत आख़िर क्यों करते हैं? जिस पार्टी ने स्वतंत्रता आंदोलन की अगुवाई की हो ऐसी पार्टी से देश को मुक्त करने तक की बात क्यों की जाती है ? दरअसल दक्षिणपंथियों को सबसे बड़ी तकलीफ़ कांग्रेस पार्टी से यही है कि वह न केवल महात्मा गांधी की सर्वधर्म समभाव नीति का परचम बुलंद करने वाली पार्टी है बल्कि दक्षिणपंथी साम्प्रदायिक विचारधारा का खुल कर मुक़ाबला करने व उसे आईना दिखने वाली भी इकलौती राष्ट्रीय पार्टी है। दूसरी तरफ़ यह बताने की ज़रुरत नहीं कि दक्षिणपंथी दलों में कितने नेता गांधी के हत्यारे और देश के पहले आतंकी नाथू राम गोडसे के समर्थक हैं जो प्रायः समय समय पर गांधी को अपमानित व गोडसे का महिमामंडन करते रहते हैं। दक्षिणपंथी यह भी भली भांति जानते हैं कि धर्मनिरपेक्षता भारतीयता का मूल स्वभाव है इसलिये उसमें ज़हर घोलते रहना ही इनकी राजनैतिक सफलता का पैमाना है। चूँकि कांग्रेस का वजूद ही दक्षिणपंथियों को अपने व अपनी विचारधारा के लिये ख़तरा नज़र आता है इसलिये इन्हें कांग्रेस से नफ़रत है और तभी यह 'कांग्रेस मुक्त भारत' के सपने भी लेते रहते हैं।