देश में 26 विपक्षी दलों के नए गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस (इंडिया) के सूर्योदय के साथ ही करीब दो दशक तक अस्तित्व में रहे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) का सूर्यास्त हो गया है। भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के राष्ट्रवाद की सियासत का दांव थामने को कांग्रेस ने 'इंडिया' गठबंधन की पताका थामने के लिए संप्रग का राजनीतिक पर्दा गिराने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई।
बेंगलुरु बैठक में तय हुआ नाम
विपक्षी दलों के सियासी प्लेटफार्म को इंडिया नाम देने का राहुल गांधी का बेंगलुरु बैठक में दिया गया सुझाव इस बात का पुख्ता संकेत है कि कांग्रेस भी इस निष्कर्ष पर पहुंच गई थी कि चुनावों को लगातार राष्ट्रवाद की पिच पर ले जा रही भाजपा की चुनौतियों का मुकाबला करने में संप्रग अपने मौजूदा स्वरूप में प्रासंगिक नहीं रह गया है।
इस राजनीतिक हकीकत के अहसास का ही प्रमाण है कि बेंगलुरु की बैठक में विपक्ष के गठबंधन का नाम तय करने पर हुई पहली ही चर्चा में संप्रग की जगह इंडिया नाम पर हामी भरने में कांग्रेस ने देर नहीं लगाई, बल्कि कुछ विपक्षी दलों के नेताओं की आपत्तियों को दूर करने के लिए राहुल गांधी ने अपने तर्कों के साथ इसके लिए बैटिंग की।
राष्ट्रवाद की राजनीति को चुनौती देने की तैयारी
संप्रग के समय सेक्युलर राजनीति की पैरोकारी करने के लगे सियासी लेबल के साथ पीएम मोदी के राष्ट्रवाद को लेकर लगातार घेरेबंदी का विपक्ष और कांग्रेस ताकतवर जबाव नहीं दे पा रहे थे। देश के स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस को इस चुनौती से उबारने की शुरुआत राहुल गांधी ने पिछले साल सात सितंबर को कन्याकुमारी से कश्मीर तक की अपनी भारत जोड़ो यात्रा के मौके पर कर दी थी।
उन्होंने भाजपा शासन में तिरंगे पर प्रहार होने के प्रतीकों का उल्लेख किया था। यात्रा का नाम भारत जोड़ो रखने के पीछे भी कांग्रेस की यही सोच थी और अब संप्रग की जगह विपक्षी गठबंधन के इंडिया नाम का उपहास करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। संप्रग का राजनीतिक अस्तित्व 2004 के चुनाव के बाद सामने आया, जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए लोकसभा चुनाव हार गई।
सोनिया गांधी ने किया था संप्रग का गठन
कांग्रेस की तत्कालीन अध्यक्ष सोनिया गांधी ने वामपंथी दलों के साथ भाजपा की वैचारिक खिलाफत करने वाले दलों के साथ मिलकर संप्रग का गठन किया। संप्रग के गठन और साझा न्यूनतम कार्यक्रम के साथ कांग्रेस की अगुवाई में सरकार बनी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने।
संप्रग ने अपने कामकाज के बूते 2009 के चुनाव में जीत हासिल कर दूसरी बार सरकार बनाई, लेकिन 2014 के चुनाव में कांग्रेस की अगुवाई वाली संप्रग को हार का सामना करना पड़ा और 2019 के चुनाव में उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ।
संप्रग का सूर्यास्त करने की एवज में इंडिया गठबंधन के नामकरण का सबसे बड़ा फायदा कांग्रेस को यह मिला है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के सबसे मजबूत विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के साथ तृणमूल कांग्रेस, पंजाब और दिल्ली में सत्तारूढ आम आदमी पार्टी सीधे तौर पर राष्ट्रीय विपक्षी गठबंधन का हिस्सा बन गए हैं।
विपक्षी राजनीति की तीसरी धारा के किसी विकल्प का रास्ता लगभग बंद
इंडिया के उदय ने विपक्षी राजनीति की तीसरी धारा यानी तीसरे मोर्चे के किसी विकल्प का रास्ता लगभग बंद कर दिया है। ओडिशा में बीजेडी और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस चाहे तटस्थ सियासत पर चलने की बात करते हों, लेकिन राजनीतिक मोर्चों पर ये एनडीए के साथ रहे हैं। ऐसे में तेलंगाना के मुख्यमंत्री भारत राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव की समय-समय पर तीसरे मोर्चे के सियासी राग में सुर मिलाने के लिए अब ऐसा कोई दल नहीं रह गया जिसका कुछ राजनीतिक प्रभाव हो।