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भारत में वायु प्रदूषण और कोरोना के संबंधों का खुलासा, ...तो कोरोना से मरने की आशंका 5.7% बढ़ेगी, पढ़े पूरी रिपोर्ट
jantaserishta.com
8 May 2021 5:27 AM GMT
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भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने पूरी दुनिया को डरा कर रख दिया है. भयावह बात तो ये है कि तीसरी लहर की भी चेतावनी दे दी गई है. लेकिन कभी किसी ने इस बात की जांच करने की कोशिश की कि भारत में कोरोना संकट अचानक तीव्र हुआ है या फिर धीरे-धीरे? कुछ लोग कह रहे हैं कि स्वास्थ्य प्रणाली को सुधारने में पैसे कम लगाए गए. कुछ लोग नए कोरोना वैरिएंट्स को दोष दे रहे हैं. ये सब सही है...लेकिन सबसे प्रमुख वजहों में से एक है भारत में जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल-डीजल-कोयला आदि. इन तीनों पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. ये रिपोर्ट प्रकाशित की है मशहूर अंतरराष्ट्रीय मैगजीन टाइम्स ने.
टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी ने बताया कि पिछली बार वैज्ञानिकों ने महामारी के शुरुआत में वायु प्रदूषण और कोरोना के संबंधों का खुलासा किया था. ये बात स्पष्ट थी कि वायु प्रदूषण से कोरोना फैलने का खतरा ज्यादा है.
भारत में तो कई ऐसे शहर हैं जो दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में गिने जाते हैं. क्योंकि ऐसी जगहों पर जो लोग रहते हैं, उनका रेस्पिरेटरी सिस्टम यानी सांस लेने की प्रणाली पहले ही प्रदूषण की वजह से कमजोर होती है. अब ऐसे लोगों को अगर कोरोना वायरस ने जकड़ लिया तो उनके फेफड़ों की हालत तो खराब हो ही जाएगी.
भारत में भी वायु प्रदूषण और कोरोना के संबंध पर कई रिसर्च हुए है, लेकिन किसी में भी बड़ी तस्वीर नहीं दिखाई गई है. पिछले साल दिसंबर में कार्डियोवस्कुलर रिसर्च जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक पर्टिकुलेट मैटर यानी PM प्रदूषण से लोगों को क्रॉनिक एक्सपोजर होता है. ये प्रदूषण पराली जलाने, गाड़ियों के धुएं और इंड्स्ट्री के धुएं की वजह से होता है. पूरी दुनिया में कोरोना वायरस से जितने लोग मारे गए. उनमें 15 फीसदी पहले से ही वायु प्रदूषण की वजह से क्रॉनिक बीमारियों के शिकार थे.
कोरोना वायरस से मारे जा रहे लोगों में 50 फीसदी तो ऐसे लोग हैं जिन्हें पहले से ही वायु प्रदूषण की वजह से दिक्कत है. ये दिक्कत हुई है उन्हें गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से. यानी पेट्रोल-डीजल और कोयले के जलने से. इसलिए आपने देखा होगा कि सर्दियों में दिल्ली-NCR के लोग कोरोना से पहले भी चेहरे पर मास्क लगाकर रखते थे.
भारत में कई स्टडीज हुई हैं, जिनमें वायु प्रदूषण और कोरोना वायरस का आपसी संबंध दिखाया गया है. लगातार वायु प्रदूषण वाले स्थान पर रहने से या गुजरने से आपको कई तरह की बीमारियां हो सकती है. जैसे- दमा या डायबिटीज या फेफड़ों या दिल संबंधी कोई बीमारी. ये सारी बीमारियां कोरोना संक्रमण के दौरान स्थिति और गंभीर कर देती हैं.
जयपुर के मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में हुई एक स्टडी के अनुसार कोविड-19 के मामलों, वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे हवा और आद्रता आदि का आपस में सीधा संबंध है. दिल्ली में कोरोना की स्थिति गंभीर करने के पीछे इन सबका हाथ है. ऐसी ही एक स्टडी वर्ल्ड बैंक ने कराई थी. जिसमें कहा गया था कि अगर पर्टिकुलेट मैटर से आपका एक्सपोजर 1 फीसदी बढ़ता है तो कोरोना से मरने की आशंका 5.7 फीसदी बढ़ जाती है.
वर्ल्ड बैंक की स्टडी में स्पष्ट तौर पर भारत की सरकार को सलाह दी गई थी कि देश के साफ-सुथरे ईंधन की व्यवस्था तत्काल करनी होगी. यातायात प्रणाली से हो रहे वायु प्रदूषण को कम करना होगा. इसके बाद ही आप कोरोना से लोगों को बचाने के लिए मास्क और वैक्सीनेशन की सलाह दे सकते हैं. देश के वैज्ञानिकों में आपसी सहमति है कि भारत में वायु गुणवत्ता को सुधारने की जरूरत है. इससे दो फायदे हो सकते हैं- पहला महामारी से जल्दी निजात मिलेगी और दूसरा कोरोना के मामले कम हो जाएंगे.
वर्ल्ड बैंक ने सलाह दी थी कि लोगों को समझाना होगा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी गाड़ियों का उपयोग कम करें. कोरोना महामारी को रोकने के लिए एक स्तर पर ही काम नहीं करना होगा. इसे थामने और इसके असर को कम करने के लिए सरकार और लोगों को अपने स्तर पर भी प्रदूषण कम करना होगा. क्योंकि जलवायु जितना ज्यादा और जल्दी-जल्दी बदलेगा, कोरोना की दिक्कत उतनी ही ज्यादा बढ़ेगी.
वैज्ञानिक महामारी के दौरान प्रदूषण कम करने को इसलिए कह रहे हैं ताकि उससे अलग-अलग क्लाइमेट को-बेनेफिट्स हों. क्लाइमेट को-बेनेफिट्स का मतलब है यातायात कम होने से, इंड्स्ट्री के रुकने से या पराली जलाना बंद करने से प्रदूषण तो कम होगा ही. लेकिन कृषि जैसे प्रदूषण मुक्त कार्यों से धरती की उर्वरता भी बढ़ेगी. इसके अलावा लोगों को रिन्यूएबल एनर्जी यानी अक्षय ऊर्जा की ओर जाने की प्रेरणा मिलेगी. जब लोग पेट्रोल-डीजल और कोयले को उपयोग कम करेंगे तो प्रदूषण भी कम होगा. इससे कोरोना के मामलों में भी कमी आएगी.
भारत में हर साल वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली क्रॉनिक बीमारियों से लाखों लोग असामयिक मौत मरते हैं. इसी तरह से चीन में भी होता है. यहां तक कि अमेरिका जैसे कड़े पर्यावरण नियमों वाले देश में हर साल 1 लाख से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण की वजह से मर जाते हैं. वायु प्रदूषण में सबसे बड़ी भूमिका निभाता है पर्टिकुलेट मैटर. इस बारे में प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में रिपोर्ट भी प्रकाशित हुई है.
भारत में जरूरत है सबसे पहले लोगों को जागरूक करने की. उसके बाद क्लीन एनर्जी को लाने की आवश्यकता है. अगर भारत की सरकार वायु प्रदूषण, पेट्रोल-डीजल-कोयले से होने वाले प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को कम करने का प्रयास करती है तो उसे तत्काल कोरोना महामारी से निजात मिलने की पूरी संभावना है. अगर ऐसा नहीं भी होता है तो कोरोना केस कम हो जाएंगे. अगर ये सारी चीजें नहीं की गई तो अगले 30 सालों में भारत में रहना मुश्किल हो जाएगा.
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