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पिता के निधन के बाद नौकरी छोड़ी, उगाई रेड लेडी, कमाए लाखों रुपए

Shantanu Roy
2 July 2023 4:28 PM GMT
पिता के निधन के बाद नौकरी छोड़ी, उगाई रेड लेडी, कमाए लाखों रुपए
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जानिए सफल युवक की कहानी
भरतपुर। भरतपुर मलेशिया में रेड लेडी को लेकर एक मिथ है। कहा जाता है कि वहां एक पुलिया पर लोगों को लाल कपड़े पहने महिला (रेड लेडी) नजर आती है। इस महिला की एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। आज हम जिस रेड लेडी की बात कर रहे हैं, वह एक ताइवानी किस्म का पपीता है। मलेशियन घोस्ट की तरह रेड लेडी किस्म का पपीता भी हैरान करने वाले गुण रखता है। जैसे यह पौधा न मेल है, न फीमेल, हर पौधे में फल लगता है। देसी पपीते के मुकाबले इसमें 80 किलो ज्यादा फल लगते हैं। रेड लेडी पपीते के बारे में इतने रोचक फैक्ट्स पता लगे तो हमने तलाश की ऐसे किसान की, जिसने रेड लेडी किस्म का पपीता उगाया है। हमारी तलाश पूरी हुई भरतपुर के 24 साल के युवा किसान तेजवीर सिंह से मिलकर। जयपुर से 185 किलोमीटर दूर पूर्व में यूपी से लगता जिला है भरतपुर। जिले के नदबई इलाके में मुकाम पोस्ट गोबरा का छोटा सा गांव है विजयपुरा। तेजवीर के पिता प्रेम सिंह की 60 बीघा जमीन है। 2018 तक सब ठीक था। तीन बेटों में बड़ा टीचर एग्जाम की तैयारी कर रहा था।
छोटा पढ़ रहा था और मंझला बेटा तेजवीर कोटा से वेटरनरी साइंस में ग्रेजुएशन कर रहा था। तेजवीर को पता चला कि पिता को ब्लड कैंसर है। जयपुर के एसएमएस हॉस्पिटल में प्रेम सिंह का इलाज चला। 4 महीने बाद उनकी मौत हो गई। तेजवीर को सदमा लगा। पिता लम्बी चौड़ी खेती छोड़कर गए थे। सरकारी टीचर बनना बड़े भाई का जुनून था और छोटा भाई अपनी पढ़ाई छोड़ खेती में नहीं लगना चाहता था। वेटरनरी डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले तेजवीर ने पहले तो एक ब्रांडेड डेयरी फर्म में 35 हजार मंथली की नौकरी की। फिर पिता की विरासत यानी खेतों को संभालने के लिए नौकरी छोड़ दी। वह चाहता था कि घर बैठे इतना कमा ले कि परिवार के 8 सदस्यों का पालन-पोषण कर सके। तेजवीर परंपरागत खेती से हटकर कुछ इनोवेटिव और अलग करना चाहता था। इसलिए यूट्यूब और सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों से नई तरह की फसलों के बारे में जानकारी लेता। रेड लेडी 786 ताइवानी पपीता है। यह पपीते की ही एक किस्म है, जिसे पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी, लुधियाना ने डेवलप किया है। यूट्यूब पर रेड लेडी पपीते की किस्म के बारे में कई जानकारियां थीं। तेजवीर को पता चला कि महज 11 महीने में यह पेड़ फल देने लगता है और देसी पपीते के मुकाबले 80 किलो ज्यादा फल देता है। इसमें 18 गुणकारी तत्व होते हैं। दो साल चलने वाला पौधा 2 बार (सीजन) में किसान मालामाल कर सकता है।
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