लोगों की मनोवैज्ञानिक स्थिति भी जघन्य अपराधों में निभाती है प्रमुख भूमिका
नई दिल्ली (आईएएनएस)/शेखर सिंह| किसी विशेष व्यक्ति या समूह को निशाना बनाने वाली भीड़ की हिंसा की बढ़ती घटनाओं ने सख्त नियमों की आवश्यकता पर जोर दिया है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि भीड़ का हिस्सा रहे लोगों को उस वक्त पूरा विश्वास होता है कि वह कानून से बच जाएंगे। उदाहरण के लिए, गुजरात के वडोदरा में, दिवाली पर दो समुदायों के बीच पटाखे फोड़ने की लड़ाई ने सांप्रदायिक झड़पों का रूप ले लिया। भीड़ ने सार्वजनिक वाहनों में आग लगा दी, एक-दूसरे पर पथराव किया और उनमें से कुछ ने सीसीटीवी फुटेज के माध्यम से अपनी पहचान को छिपाने के लिए बिजली की तारें तोड़ दी। हालांकि किसी के गंभीर रूप से घायल होने की सूचना नहीं है। द्वारका के एचसीएमसीटी मणिपाल अस्पताल की मनोवैज्ञानिक रुचि शर्मा के अनुसार, भीड़ की हिंसा और सामूहिक गुस्सा आमतौर पर 'सामूहिक न्याय' की अवधारणा और कानूनी सजा से बचने की मानसिक प्रवृत्ति पर आधारित होती हैं। लोगों का मानना होता है कि वे अपराध कर सकते हैं और बिना किसी गंभीर परिणाम के इससे बच सकते हैं।