सहकारिता क्षेत्र में जवाबदेही तय करने एवं चुनावी प्रक्रिया में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार ने बड़ी पहल की है। लोकसभा में मंगलवार को इससे जुड़े बहुराज्यीय सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक-2022 को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि विधेयक में कई नए प्रविधान जोड़कर सहकारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली को प्रभावी एवं पारदर्शी बनाया गया है। सहकारी समितियों के प्रबंधन में मनमानी और नियुक्तियों में परिवारवाद को खत्म किया जा सकेगा, जिससे सहकारिता आंदोलन को संबल मिलेगा। व्यवसाय में आसानी के साथ नए युग की शुरुआत होगी।
दिवाली से नई सहकारी नीति लाने की तैयारी में सरकार
केंद्र सरकार इसी वर्ष विजयादशमी या दिवाली से पहले एक नई सहकारी नीति भी लाने जा रही है। विधेयक पर सरकार का पक्ष रखते हुए अमित शाह ने कहा कि सरकार ने एक समान कानून से सहकारी संस्थाओं को चलाने के लिए नई बाइलाज बनाई है, जिसे बंगाल एवं केरल को छोड़कर सभी राज्यों ने अपना लिया है। उन्होंने कहा कि सहकारिता के जरिए देश के 60 करोड़ लोगों को सशक्त बनाने की पहल की जा रही है। अभी देश में साढ़े आठ लाख सहकारी समितियां हैं, जिनसे सदस्य के रूप में 29 करोड़ लोग जुड़े हैं। ये समितियां कृषि प्रसंस्करण, डेयरी, मत्स्य पालन, बुनाई, ऋण और विपणन समेत विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रही हैं। अब इन सहकारी संस्थाओं की नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद नहीं चलेगा।
विधेयक में सहकारी सूचना अधिकारी, चुनाव प्राधिकरण एवं सहकारी लोकपाल जैसे कई नियमों का प्रविधान किया गया है। अमित शाह ने कहा कि भारत में सहकारिता आंदोलन 115 वर्ष पुराना है। इससे लाखों लोगों को रोजगार मिल रहा है। किंतु पिछले 75 वर्षों में यह क्षेत्र कमजोर पड़ता गया। राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर भी कोई विमर्श नहीं हुआ। न ही कानूनों में बदलाव की पहल हुई। किंतु वर्तमान सरकार की पहल से अगले 25 वर्ष में यह क्षेत्र फिर से देश के विकास में अहम योगदान देगा।
अमित शाह ने कहा कि सहकारिता क्षेत्र में सुधार के लिए प्राथमिक कृषि ऋण सोसाइटी (पैक्स) को पुनर्जीवित कर उसे बहुआयामी बनाया जा रहा है। अलग मंत्रालय बनने के बाद से 63 हजार पैक्सों का कंप्यूटराइजेशन किया गया है। पैक्सों से सहकारी बैंकों एवं नाबार्ड को जोड़ा गया है। अब अन्न भंडारण के साथ कई जिम्मेवारियां सौंपी जा रही हैं। कई नए व्यवसाय जोड़े जा रहे हैं।अब पैक्स एफपीओ का भी काम करेगी। सदस्यों को रुपे क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड भी दिए जाएंगे। उनकी आय भी बढ़ेगी।
निष्कासन पर तीन वर्ष तक चुनाव लड़ने के अयोग्य
नई बाइलाज के अनुसार सहकारी समितियों में एक तिहाई संख्या अगर कम हो जाती है तो चुनाव कराना अनिवार्य हो जाएगा। तीन माह में मीटिंग जरूरी होगी। सभापति या उपसभापति अगर नहीं बुलाते हैं तो सीओ की जिम्मेवारी होगी कि मीटिंग बुलाए। अगर 50 प्रतिशत सदस्य लिखकर देंगे तो मीटिंग बुलाना जरूरी हो जाएगा। किसी सदस्य को अगर निष्कासित कर दिया जाएगा तो वह तीन वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकता है। समितियों में एक सीट एससी और एक महिला के लिए आरक्षित किया गया है।