जानें भारत की पहली महिला न्यायाधीश के बारे में, आज है पुण्यतिथि
एक ऐसे समय में जब महिलाओं को अपने घरों तक सीमित रखा जाता था, केरल की अन्ना चांडी ने महिलाओं के लिए नये दरवाजे खोलने का काम किया. उस दौर में जब नौकरी या करियर जैसी चीजें महिलाओं के लिए होती ही नहीं थीं, केरल की रहने वाली एक युवती ने लॉ की पढ़ाई करने का फैसला किया और आगे चलकर महिलाओं के भाग्य को बदलने के लिए राजनीति में भी प्रवेश किया. चांडी को उनके पुरुष समकक्षों ने पीछे हटाने की कोशिश की, मगर उन्होंने अपनी ऐसी जगह समाज में बनाई जिसके महिलाओं का भाग्य ही बदलकर रख दिया.
अन्ना चांडी का जन्म 1905 में त्रावणकोर के पूर्व राज्य में हुआ था और उनकी परवरिश त्रिवेंद्रम में हुई थी. वह देश की पहली महिला न्यायाधीश होने के साथ-साथ उच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायाधीश भी थीं. वह एमिली मर्फी के साथ ब्रिटिश साम्राज्य की पहली महिला जज भी थीं.
उनका करियर शानदार रहा और उन्होंने केरल उच्च न्यायालय में काम करते हुए 8 साल बिताए. 1937 में त्रावणकोर के दीवान सर सी.पी. रामास्वामी अय्यर ने उन्हें इस पद पर नियुक्त किया था. चांडी ने महिलाओं के काम करने के अधिकारों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया और अपने समय की सबसे मुखर नारीवादी कहलाईं. अन्ना ने सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए कोटा की मांग की दिशा में भी काम किया. पहली पीढ़ी की नारीवादी के रूप में जानी जाने वाली चांडी ने अपने राज्य में सबसे पहले कानून की डिग्री हासिल की थी. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों की वकालत करने के साथ-साथ पत्रिका 'श्रीमती' की शुरुआत और संपादन किया.
जज होने के साथ-साथ अन्ना ने 1931 में श्री मुलम पॉपुलर असेंबली के चुनाव के लिए भी प्रचार किया. इसके लिए उन्हें अखबारों और विपक्ष की आलोचना का भी सामना करना पड़ा. अपने रिटायरमेंट के दौरान, अन्ना ने भारत के विधि आयोग में सेवा की, और इसके साथ ही उन्होंने 'आत्मकथा' नामक अपनी आत्मकथा भी लिखी. उनकी मृत्यु आज ही के दिन सन 1996 में हुई.