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देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) एनवी रमना ने बुधवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस अशोक भूषण के फैसले उनके कल्याणकारी और मानवतावादी दृष्टिकोण की गवाही देते हैं। वह हमेशा एक मूल्यवान सहयोगी बने रहे। अयोध्या और आधार जैसे कई अहम मुद्दों पर ऐतिहासिक फैसला सुनाने वाली संविधान पीठ का हिस्सा रहे जस्टिस भूषण चार जुलाई को सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
जस्टिस भूषण के फैसले उनके मानवतावादी दृष्टिकोण के प्रमाण
उनको विदाई देते हुए सीजेआइ रमना ने कहा कि उन्हें उनके न्यायिक योगदान के लिए याद किया जाएगा और धन्यवाद किया जाएगा। जस्टिस भूषण को बेहतरीन इंसान बताते हुए सीजेआइ रमना ने कहा कि उच्च न्यायपालिका को ऊंचाई पर ले जाने में उन्होंने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। सीजेआइ ने कहा कि जस्टिस भूषण की यात्रा 'वास्तव में उल्लेखनीय' रही है और उन्होंने अदालतों में न्याय देने में लगभग दो दशक बिताए हैं। उन्होंने कहा कि समाज के हर वर्ग के कल्याण के लिए जस्टिस भूषण की चिंता उनके विचारों और लेखन में देखने को मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा बनना गर्व की बात
इस मौके पर जस्टिस भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का हिस्सा बनना उनके लिए बहुत ही गर्व की बात है। उन्होंने कहा, 'बार और बेंच दो पहियों का हिस्सा हैं और इनका रिश्ता समुद्र और बादलों जैसा है।' बार हमेशा लोकतंत्र और कानून के शासन के लिए खड़ा रहा है। उन्होंने सीजेआइ और सहयोगियों को धन्यवाद दिया और बेंच, बार के सदस्यों, रजिस्ट्री और निजी कर्मचारियों का आभार जताया।
2016 में सुप्रीम कोर्ट में बने थे जज
इलाहाबाद हाई कोर्ट से 13 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट में जज बने जस्टिस भूषण कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं। जस्टिस भूषण सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ के हिस्सा थे, जिसने नवंबर, 2019 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करने वाला फैसला सुनाया था और केंद्र सरकार को सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए पांच एकड़ जमीन देने का निर्देश दिया था।
2018 में आधार पर फैसला आया था
जस्टिस भूषण केंद्र सरकार की अहम आधार योजना को सितंबर, 2018 संवैधानिक रूप से वैध ठहराने वाले पांच जजों के संविधान पीठ का भी हिस्सा थे। हालांकि, संविधान पीठ ने आधार को बैंक खातों, मोबाइल फोन और स्कूल में दाखिल से लिंक करने के प्रविधान को खारिज कर दिया था।
मराठा आरक्षण पर दिया था फैसला
जस्टिस भूषण ने उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ की अध्यक्षता की थी, जिसने पिछले महीने ही 29 साल पुराने मंडल आयोग से संबंधित फैसले को दोबारा बड़ी पीठ के सामने भेजने से इन्कार कर दिया था, जिसमें आरक्षण के कोटे को अधिकतम 50 फीसद तय किया गया था।
पीठ ने महाराष्ट्र सरकार के उस कानून को भी खारिज कर दिया था, जिसमें मराठों के लिए शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरी में आरक्षण का प्रविधान किया गया था। पीठ ने कहा था कि राज्य सरकार का यह कानून समता के अधिकार का उल्लंघन करता है।
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