सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अवमानना के क्षेत्राधिकार का इस्तेमाल करते समय अदालतों को अतिसंवेदनशील नहीं होना चाहिए या भावनाओं में नहीं बहना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने ये टिप्पणियां कलकत्ता हाई कोर्ट का आदेश रद करते हुए कीं जिसने अदालत की अवमानना के लिए एक डाक्टर का लाइसेंस निलंबित कर दिया था।
'शक्ति का इस्तेमाल करते हुए भावनाओं में ना बहें'
शीर्ष कोर्ट ने कहा,
इस अदालत ने बार-बार इस बात पर जोर दिया है कि अदालतों का अवमानना क्षेत्राधिकार सिर्फ अधिकतर न्यायिक व्यवस्थाओं को बरकरार रखने के लिए है। इस शक्ति का इस्तेमाल करते हुए अदालतों को अतिसंवेदनशील नहीं होना चाहिए या भावनाओं में नहीं बहना चाहिए, बल्कि न्यायिक तरीके से काम करना चाहिए।
कोर्ट ने क्या कुछ कहा?
पीठ ने कहा कि अवमानना कार्यवाही में दंड के तौर पर डाक्टर का लाइसेंस निलंबित नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा,
एक डाक्टर पेशेवर कदाचार के लिए भी अदालत की अवमानना का दोषी हो सकता है, लेकिन वह उस व्यक्ति के अवमाननापूर्ण आचरण की गंभीरता या प्रकृति पर निर्भर करेगा। हालांकि वे अपराध एक दूसरे से अलग और भिन्न है। एक अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत आता है और दूसरा राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के तहत।
सुप्रीम कोर्ट कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था। खंडपीठ ने एकल पीठ के विभिन्न आदेशों को बरकरार रखा था। अनधिकृत निर्माण हटाने में विफल रहने के लिए डाक्टर के विरुद्ध अवमानना कार्यवाही में एकल पीठ ने दंडस्वरूप अपीलकर्ता का मेडिकल लाइसेंस निलंबित कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डाक्टर ने पिछले भाग में लगभग 250 मिलीमीटर को छोड़कर अपेक्षित निर्माण ढहा दिया था, क्योंकि उस भाग को ढहाने से विधिसम्मत निर्मित इमारत असुरक्षित हो जाती।
पीठ ने कहा,
हुए अनधिकृत निर्माण के संबंध में हम निर्देश देते हैं कि संबंधित हाई कोर्ट के समक्ष यह शपथपत्र दिया जाए कि वर्तमान इमारत की सुरक्षा के लिए सुधारात्मक निर्माण और उसके बाद अनधिकृत निर्माण को ढहाने का काम उचित समय में पूरा कर लिया जाएगा।