निर्मल रानी
हमारे दैनिक जीवन की तमाम समस्यायें हमें प्रतिदिन हर समय प्रभावित करती हैं। और दूसरों के सिर अपनी इन परेशानियों का ठीकरा फोड़ने के आदी हम लोग आनन फ़ानन में इन रोज़मर्रा दरपेश आने वाली समस्याओं का ज़िम्मेदार सरकार या प्रशासन को ठहरा देते हैं। हम कभी भी इन समस्याओं की जड़ों में झांकने और आत्मावलोकन करने की कोशिश ही नहीं करते। उदाहरण के तौर पर बाज़ारों में प्रतिदिन हर समय लगने वाला जाम,पार्किंग की समस्या,जाम पड़े नाले व नालियां,गलियों व सड़कों पर फैली गंदिगी,जगह जगह फैले कूड़े के ढेर,दुर्गन्धपूर्ण वातावरण,रेलवे व बस स्टेशन पर फैली गंदिगी,जगह जगह व्यर्थ बहता पानी,नदी तालाबों के किनारे फैली गंदिगी व दुर्गन्ध,धुआं,वायु तथा ध्वनि प्रदूषण जैसी अनेकानेक ऐसी समस्यायें हैं जिनका सामना हमें चाहे अनचाहे रूप से लगभग प्रतिदिन ज़रूर करना पड़ता है। और हम सरकार,ज़िला प्रशासन अथवा स्थानीय निकाय प्रशासन को इनमें से अधिकांश समस्याओं का ज़िम्मेदार बताकर अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त होने का प्रयास करते हैं।
शहरों व क़स्बों के पुराने,मुख्य व तंग बाज़ारों में जाम की हक़ीक़त तो चौंकाने वाली है। आपको यहां अनेक दुकानदार ऐसे मिलेंगे जिन्होंने अपनी दुकान में ग्राहक के प्रवेश करने भर का रास्ता छोड़कर दुकान के सामने लगता बाहर का फुटपाथ वाला सार्वजनिक हिस्सा रेहड़ी पटरी वालों को किराये पर चढ़ाया होता है। यह वह जगह होती है जहां या तो दुकानदार या उसके ग्राहक अपना वाहन खड़ा कर सकते हैं। या फिर सड़क की यह जगह ट्रैफ़िक के सुगम संचालन के काम आती है। परन्तु तमाम दुकानदारों ने अपनी अतिरिक्त और नाजायज़ आय के लिये इसे भी अपने व्यवसाय का हिस्सा बना रखा है। चूँकि इसतरह की बाज़ारों में अनेक दुकानदार इस 'अवैध व्यवसाय' के भागीदार होते हैं इसलिये कोई एक दूसरे को मना नहीं करता। अतिक्रमण विरोधी दस्ता आते ही यह रेहड़ी पटरी वाली दुकानें कुछ समय के लिये 'चलायमान ' हो जाती हैं। और कुछ ही क्षण के बाद इसी नगर पालिका /महापालिका /निगम की विशेष 'मासिक ' या 'हफ़्तावारी' अनुकंपा की वजह से पुनः शुरू हो जाती हैं। ज़ाहिर है इसका परिणाम हमें ट्रैफ़िक जाम की शक्ल में दशकों से देखने को मिलता आ रहा है। इसी तरह की बाज़ारों में ग्राहक अपनी स्कूटर या कार अथवा ट्रांसपोर्ट की छोटी गाड़ियां मनमाने तरीक़े से अपनी सुविधानुसार ग़लत ढंग से पार्क कर देते हैं। इसलिये भी जाम की स्थिति पैदा होती है। जहां लिखा हो 'नो पार्किंग ' वहीं लोग पार्किंग कर देते हैं। उसी तरह जैसे सड़क पर खड़ा होकर पेशाब करने वाला व्यक्ति उसी जगह खड़ा मिलेगा जहां लिखा होगा कि 'यहाँ पेशाब करना मना है '।
इसी तरह हम नाली नालों के जाम हो जाने के लिये, सड़कों पर इधर उधर फैले कूड़े कबाड़ के लिये, दुर्गन्धपूर्ण वातावरण के लिये केवल सरकार या प्रशासन पर दोष मढ़ते हैं। कभी इन नाले नालियों में झांककर भी देखना चाहिये कि क्या यह मरे हुए कुत्ते बिल्ली फेंकने की जगह है ? कौन फेंकता है नालों नालियों में कांच व प्लास्टिक की बोतलें,रज़ाई,गद्दे,कंबल,प्लास्टिक व पॉलीथिन की थैलियां,ईंट पत्थर,डिस्पोज़ेबल गिलास-कप-प्लेट्स,जूते चप्पल आदि ? कौन बहाता है इनमें पालतू गाय भैसों के गोबर ? शायद सरकार या ज़िला प्रशासन अथवा किसी नगर पालिका /महापालिका /निगम के कर्मचारी तो हरगिज़ नहीं? ईमानदारी से आत्मावलोकन कीजिये जवाब स्वयं मिल जायेगा। पिछले दिनों शिमला के रिज मैदान के ऊपर फ़ौवारे पर बैठकर रिज मैदान का दृश्य देखने के लिये सीढ़ियों पर चढ़ते ही देखा कि एक कोने में किसी ने पान खाकर थूका था। वहीँ किसी ड्रिंक की बोतल भी पड़ी थी। यह पर्यटन के अंतर्राष्ट्रीय महत्व का स्थान है। यहां आपको जगह जगह डस्टबीन रखी मिलेगी। परन्तु हमारे ही समाज के लोग गंदिगी फैलाकर यहाँ भी अपने 'संस्कारों ' का परिचय देना नहीं भूले ? यह हरकत शिमला या हिमाचल प्रशासन की तो नहीं,परन्तु आत्मावलोकन किये बिना यह ज़रूर कहा जायेगा कि ' रिज पर भी थूक पड़ा है,' शिमला में सफ़ाई नहीं रहती , आदि आदि ? इसी मानसिकता के 'तत्वों' द्वारा रेलवे स्टेशन,ट्रेन के डिब्बों में,ट्रेन व स्टेशन टॉयलेट में बस स्टैंड पर,पर्यटन स्थलों पर जगह जगह बेख़ौफ़ होकर गंदिगी फैलाई जाती है। और हम अपने समाज के इन 'नौनिहालों ' को दोष देने के बजाय सीधे सरकार व प्रशासन को ही कटघरे में खड़ा कर देते हैं।
वायु प्रदूषण का दुष्प्रभाव हमारे आपके स्वास्थ्य से लेकर ग्लोबल वार्मिंग तक पर सीधा पड़ता है। परन्तु अनेकानेक लोग शायद इस बात से अनभिज्ञ हैं या जान बूझकर घने शहरी इलाक़ों में कभी रबड़ जलाने लगते हैं तो कभी थर्मोकोल,प्लास्टिक आदि बे रोकटोक जलाकर ज़हरीला धुंआ फैलाते हैं। कबाड़ के काम से जुड़े कुछ लोग तो तांबे लोहे की तार निकालने के लिये प्रतिदिन रबड़ के तार जलाते ही रहते हैं। अनेक गाय भैसों की डेयरियों में मच्छर भगाने के नाम पर रोज़ाना धुंआ किया जाता है। इससे मच्छर भागे या न भागे परन्तु आसपास के लोगों का दम ज़रूर घुटने लगता है। सरकार तो हरगिज़ यह नहीं कहती कि वातावरण में ज़हरीला धुआं फैलाकर कर मच्छर भगाइये ?
हमारे समाज में ही इस तरह की अनेक 'व्याधियां ' हैं जो हमारे लिये ट्रैफ़िक जाम,जलभराव,गंदिगी,बीमारी,प्रदूषण यहाँ तक कि बदनामी का भी कारण बनती हैं। निश्चित रूप से इनमें कई विषय ऐसे भी हैं जिनका संबंध सरकारी भ्रष्टाचार,लापरवाही,अनदेखी और लेट लतीफ़ी से भी है। परन्तु केवल सरकार या प्रशासन अकेला इन विसंगतियों के लिये हरगिज़ ज़िम्मेदार नहीं। बेहतर होगा कि हम और आप सरकार या अन्य विभागों को उपरोक्त समस्याओं का ज़िम्मेदार ठहराने से पहले कभी आत्मावलोकन भी कर लिया करें ?