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विदेशी मेहमान निगल रहे 2300 लोगों की रोजी-रोटी

15 Dec 2023 4:33 AM GMT
विदेशी मेहमान निगल रहे 2300 लोगों की रोजी-रोटी
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जवाली। पौंग झील में वर्षों से मछली पकडऩे का कार्य कर आजीविका कमाने वाले 2300 मछुआरों को इन दिनों मंदी के दौर से गुजरना पड़ रहा है। पौंग झील में प्रवासी परिंदों के आगमन के कारण मछली उत्पादन कम हो गया है तथा हजारों फुट गहरे पानी में जालों को देखकर मछुआरे खाली हाथ लौट रहे …

जवाली। पौंग झील में वर्षों से मछली पकडऩे का कार्य कर आजीविका कमाने वाले 2300 मछुआरों को इन दिनों मंदी के दौर से गुजरना पड़ रहा है। पौंग झील में प्रवासी परिंदों के आगमन के कारण मछली उत्पादन कम हो गया है तथा हजारों फुट गहरे पानी में जालों को देखकर मछुआरे खाली हाथ लौट रहे हैं। मछुआरे मछली न मिलने से काफी परेशान हैं तथा उनको परिवार का पालन-पोषण करना मुश्किल हो रहा है। मछुआरे सर्दी-गर्मी बरसात में सुबह 4 बजे घरों से झील की तरफ निकलते हैं तथा जालों को देखकर वापस 12 बजे लौटते हैं। इसी प्रकार शाम को चार बजे दोबारा झील में जाल लगाने को जाते हैं तथा देर रात लौटते हैं। इतनी मेहनत करने के बाद भी उनको खाली हाथ लौटना पड़ रहा है। मछुआरे काफी मायूस हो चुके हैं तथा अधिकतर मछुआरे तो जाल लगाने का कार्य छोडक़र इन दिनों दिहाड़ी लगाने को मजबूर हो गए हैं। मछुआरों का कहना है कि नवंबर माह में प्रवासी परिंदे झील में आते हैं तथा मार्च तक डेरा लगाए रखते हैं। प्रवासी परिंदे मांसाहारी होने के कारण झील में पल रही मछलियों व जाल में फंसी हुई मछलियों को अपना आहार बना लेते हैं, जिससे उत्पादन कम हो जाता है तथा मछुआरों को रोजी-रोटी के लाले पड़ जाते हैं। मछुआरों ने कहा कि साल में पांच माह तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं तथा दो माह तक मत्स्य आखेट पर प्रतिबंध रहता है। ऐसे में मात्र चार-पांच माह ही मछली उत्पादन हो पाता है, लेकिन इससे सालभर का खर्चा नहीं हो पाता है।

उन्होंने कहा कि हम पीढ़ी दर पीढ़ी इस कार्य को कर रहे हैं, लेकिन अब युवा पीढ़ी इस कार्य से तौबा कर रही है। मछुआरों ने कहा कि मत्स्य विभाग को मत्स्य आखेट से लाखों का मुनाफा होता है, लेकिन इसके बाद भी मछुआरों को कुछ भी हासिल नहीं होता है। मत्स्य विभाग लाखों का मुनाफा कमाकर अपनी जेब तो भर लेता है, लेकिन मछुआरों के हित में कुछ भी नहीं किया जाता है। बंद सीजन राहत भत्ता भी समय पर नहीं जाता है तथा प्रवासी पक्षियों के आमद पर कोई भी अतिरिक्त राहत भत्ता नहीं दिया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकार को प्रवासी परिंदों की चिंता है, लेकिन मछुआरों की कोई चिंता नहीं है। मछुआरों ने कहा कांग्रेस व भाजपा सरकार से प्रवासी पक्षियों के झील में रहने तक मछुआरों को अतिरिक्त राहत भत्ता देने की मांग हर बार उठाई जाती है, लेकिन हर बार मांग को अनसुना कर दिया जाता है। मात्र वोटों की ही राजनीति की जाती है। मछुआरों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू व मत्स्य विभाग से मांग उठाई है कि जब तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं, तब तक मछुआरों को अतिरिक्त राहत भत्ता दिया जाए अन्यथा आने वाले समय में झील में मत्स्य आखेट करने वाला कोई भी मछुआरा नहीं होगा।

दि फिशरीज एसोसिएशन पौंग डैम रिजरवियर के अध्यक्ष जसबंत सिंह ने कहा कि पौंग झील में जब प्रवासी पक्षी आते हैं, तो मछुआरों को रोजी-रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो जाता है। हर वर्ष आने वाले प्रवासी पक्षी झील में पल रही व जालों में फंसी 500 से एक किलोग्राम तक की मछली को खा जाते हैं, जिससे उत्पादन में कमी हो जाती है। उन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि जब तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं तब तक मछुआरों को अतिरिक्त राहत भत्ता दिया जाए, ताकि मछुआरे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें। संघ के महासचिव कमल सिंह ने कहा कि पौंग झील में आने वाले प्रवासी पक्षी मांसाहारी होते हैं, जो कि एक किलोग्राम तक की मछली को अपना आहार बना लेते हैं। झील में हर वर्ष लाखों की तादाद में प्रवासी पक्षी आते हैं तथा अगर एक पक्षी दिन में कम से कम पांच किलोग्राम मछली को खाता है, तो इस हिसाब से दिन में ही लाखों प्रवासी पक्षी लाखों क्विंटल मछली को खा जाते हैं, जिससे उत्पादन में गिरावट आ जाती है। मछुआरों को रोजी-रोटी का जुगाड़ करना मुश्किल हो जाता है। उन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि जब तक प्रवासी पक्षी झील में रहते हैं, तब तक मछुआरों को अतिरिक्त राहत भत्ता दिया जाए, ताकि मछुआरे अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें।

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