चंडीगढ़। याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे घोटाले की एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जांच से करीब 12 आईएएस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लोकायुक्त जस्टिस हरिपाल वर्मा के आदेश पर की गई प्राथमिक जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो ने फर्जीवाड़े के आरोपों को सही पाया है। एंटी करप्शन की टीम ने घोटाले के …
चंडीगढ़। याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे घोटाले की एंटी करप्शन ब्यूरो की प्राथमिक जांच से करीब 12 आईएएस अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। लोकायुक्त जस्टिस हरिपाल वर्मा के आदेश पर की गई प्राथमिक जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो ने फर्जीवाड़े के आरोपों को सही पाया है। एंटी करप्शन की टीम ने घोटाले के भंडाफोड के लिए विस्तृत खुली जांच की जरूरत बताई है। इसी मामले में लोकायुक्त ने शहरी निकाय विभाग के प्रधान सचिव से भी जांच रिपोर्ट मांग रखी है, मामले की सुनवाई 11 जनवरी को होगी।
आरटीआई एक्टिविस्ट पीपी कपूर ने लोकायुक्त जस्टिस हरिपाल वर्मा को गत वर्ष 19 जुलाई को निकाय मंत्री कमल गुप्ता, 12 आईएएस सहित शहरी निकाय विभाग के 88 अधिकारियों के खिलाफ़ शिकायत दी थी। शिकायत में याशी कम्पनी के प्रॉपर्टी आईडी सर्वे में घोटाले के गम्भीर आरोप लगाए थे। लोकायुक्त का नोटिस मिलते ही सरकार ने याशी कम्पनी को ब्लैक लिस्ट करते हुए 8 करोड़ रुपये की बकाया पेमेंट रोक दी थी। इसके साथ ही लाखों रुपये की परफॉर्मेंस बैंक गारन्टी भी जब्त कर ली थी। आरोप लगाया था कि प्रॉपर्टी आईडी का सर्वे बोगस होने के बावजूद अधिकारियों ने 58 करोड़ रुपये की पेमेंट कम्पनी को कर दी। इस बोगस सर्वे की त्रुटियों को ठीक कराने के लिए पब्लिक धक्के खा रही है।
लोकायुक्त के आदेश पर की गई अपनी प्राथमिक जांच में एंटी करप्शन ब्यूरो (मुख्यालय) के डीएसपी शुक्र पाल ने पीपी कपूर के आरोपों को सही पाते हुए घोटाले के पूरे खुलासे के लिए विस्तृत खुली जांच की मांग की है। बताया कि मामले में फर्जीवाड़े की जांच पूरे रिकॉर्ड को अपने कब्जे में लिए बगैर और सम्बन्धित अधिकारियों के बयान लिए बगैर सम्भव नहीं है। टेंडर एग्रीमेंट की शर्त के मुताबिक याशी कम्पनी को भुगतान से पहले सर्वे की गई सम्पतियों में से 10 पर्सेंट सम्पत्तियों का फिजिकल वेरिफिकेशन पालिका सचिवों नगर परिषदों के ईओ और नगर निगमों के जिला पालिका आयुक्तों को करना था। लेकिन य़ह कार्य सही ढंग से नहीं किया गया। इन अधिकारियों ने इस फिजिकल वेरिफिकेशन का रिकॉर्ड भी उचित ढंग से नहीं रखा, जिससे इस पूरे सर्वे कार्य के सही और प्रमाणिक होने का पता चल पाए। जबकि इसी के आधार पर साइन ऑफ सर्टिफिकेट्स जारी करके याशी कम्पनी को करोड़ों रुपये की पेमेंट कर दी। इसमें अधिकारियों की लापरवाही नजर आती है।